ख़्वाजा का ड्रीम रन
यह सीरीज़
उस्मान ख़्वाजा के लिए काफ़ी शानदार रही है। वह इस सीरीज़ के प्लेयर ऑफ़ द मैच भी थे। आपको बता दें कि ख़्वाजा का जन्म पाकिस्तान में हुआ है। ऐसे में उनके लिए यह सीरीज़ किसी सपने से कम नहीं था। इस सीरीज़ में उन्होंने दो शतक लगाए और दो बार नर्वस नाइंटीज़ का भी शिकार हुए। उन्होंने इस सीरीज़ में कुल 496 रन बनाए। किसी भी विदेशी सलामी बल्लेबाज़ के लिए यह
दूसरा सबसे बड़ा स्कोर है। साल 1998 में मार्क टेलर ने एक सीरीज़ के दौरान 513 रन बनाया था।
इस सीरीज़ में ख़्वाजा का स्कोर 165.33 का था। यह भी किसी सलामी बल्लेबाज़ के द्वारा (कम से कम पांच पारी)
दूसरा सर्वाधिक था। इस मामले में शोएब मोहम्मद टॉप पर हैं। 1990 में न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ उनका औसत 169 का था।
विदेशों में सीरीज़ जीतने का सूखा ख़त्म
ऑस्ट्रेलिया ने इस सीरीज़ के तीसरे मैच को जीत कर विदेशी पिचों पर सीरीज़ जीत के सूखे को ख़त्म कर दिया है। ऑस्ट्रेलिया के लिए छह साल बाद अपने घर से दूर कोई सीरीज़ जीती है। इससे पहले उन्होंने साल 2016 में न्यूज़ीलैंड को 2-0 से हराया था।
यही नहीं एशियाई धरती पर ऑस्ट्रेलिया ने 2011 के बाद कोई सीरीज़ जीता है। इससे पहले उन्होंने 2011 मे श्रीलंका को 1-0 से हराया था।
सलामी बल्लेबाज़ो के लिए शानदार सीरीज़
इस सीरीज़ में सलामी बल्लेबाज़ों ने जम कर रन बटोरे हैं। अगर दोनों टीम के ओपनिंग बल्लेबाज़ों के बारे में बात करें तो उन्होंने कुल 5 शतक और 7 अर्धशतक लगाए हैं। इमाम उल हक़ और अबदुल्लाह शफ़ीक ने इस सीरीज़ में तीन शतक लगाए, वहीं ख़्वाजा ने दो शतक लगाएं।
कुल मिलाकर चारों बल्लेबाज़ों ने इस श्रृंखला में 79.55 के औसत से 1432 रन बनाए। किसी भी तीन या तीन से ज़्यादा मैच की टेस्ट श्रृंखला में सलामी बल्लेबाज़ों के यह सबसे अधिक रन है। 2009 में भारत और श्रीलंका के बीच तीन मैचों की श्रृंखला के दौरान पिछला उच्चतम 72.66 था।
इससे पहले श्रीलंका और भारत के ओपनिंग बल्लेबाज़ों ने 2009 में 72.66 की औसत से रन बनाए थे। इस सीरीज़ में ओपनिंग का औसत 84.4 था, जो किसी भी टेस्ट सीरीज में न्यूनतम दस ओपनिंग साझेदारी के साथ सबसे अधिक रनों की ओपनिंग पार्टनरशिप है।
गेंदबाज़ों के लिए मुश्किल सीरीज़
पहले दो मैचों में ख़ास कर गेंदबाज़ों के पिच से ज़्यादा मदद नहीं मिल रही थी। गेंदबाज़ों के लिए किसी भी तरह से बल्लेबाज़ों को आउट करना मुश्किल हो रहा था। दोनों टीमों के गेंदबाज़ों ने इस सीरीज़ कुल 71 विकेट लेने में क़ामयाब रहे। गेंदबाज़ों को 102.9 नंबर की गेंद पर विकेट मिल रहा था। 2001 के बाद से यह सबसे ख़राब आंकड़े हैं।
इस सीरीज़ में गेंदबाज़ों का औसत 48.47 था। 2011 के बाद से किसी भी तीन मैचों की टेस्ट सीरीज़ में यह सबसे ख़राब औसत हैं।
रिवर्स स्विंग ने गेंदबाज़ों को बचाया
रावलपिंडी टेस्ट में तेज़ गेंदबाजों के लिए काफ़ी कम मदद थी। उन्हें वहां सिर्फ़ चार विकेट मिले थे। कराची और लाहौर का माहौल भी कुछ अलग नहीं था। हालांकि कम उछाल और रिवर्स स्विंग ने उन्हें बचा लिया। पूरी श्रृंखला के दौरान 30 ओवर पुरानी गेंद से तेज़ गेंदबाज़ों ने 19 विकेट लिए। गेंदबाज़ो ने 31-60 और 111-140 ओवरों की चअवधि के दौरान 20.05 के औसत और 47.7 के स्ट्राइक रेट से गेंदबाज़ी की।
बाक़ी के ओवरों में उन्होंने 50.22 की औसत से 23 विकेट लिए। पूरी श्रृंखला में पहली नई गेंद अप्रभावी रही और पहले 20 ओवरों के दौरान 80.20 के औसत से तेज़ गेंदबाज़ों ने केवल पांच विकेट लिए। किसी भी तीन मैचों की टेस्ट सीरीज़ में गेंदबाज़ो का यह आंकड़ा भी सबसे ज़्यादा ख़राब है।
संपत बंडारूपल्ली ESPNcricinfo में स्टैटिशियन हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर राजन राज ने किया है।