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आर अश्विन: एक ऐसा सुपर स्टार जो कभी शांत नहीं बैठता

लंबे समय से अश्विन के साथी रहे अभिनव मुकुंद ने बताया कि अश्विन किस तरह बड़े हुए और कैसे एक बेहतरीन इंसान और खिलाड़ी बने

Abhinav Mukund and R Ashwin after the win,

मुकुंद और अश्विन नौ साल से ही एक-दूसरे के साथी रहे हैं  •  Abhinav Mukund

मैं पहली बार अश्विन से तब मिला था, जब मैं छह साल का था और वह नौ साल के। वह अपने पिताजी की हीरो होंडा सीडी100 पर आते थे। हम दोनों सीएस उमापति की कोचिंग में थे, जो एक बहुत अनुशासनप्रिय व्यक्ति थे।
जब सुबह 6 बजे की प्रैक्टिस शुरू होती थी, तो बल्लेबाज़ों के लिए एक ही बात महत्वपूर्ण होती थी - गेंद की लंबाई का अनुमान लगाना, हाफ़-वॉली आए तो ड्राइव, गुडलेंथ पर डिफेंस और शॉर्ट बॉल पर बैक फु़ट पर जाकर खेलना। यह हमें उतनी बार करना होता था, जितना कि कराटे किड फ़िल्म ड्रे पार्कर में "वैक्स-ऑन, वैक्स-ऑफ़" किया करते थे।
तब मैंने अश्विन पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया। हम सभी क्रिकेट सिर्फ़ इस कारण से खेलते थे क्योंकि हमें यह बहुत पसंद था। अगली बार मैंने उन्हें एक अंडर-12 टूर्नामेंट के दौरान उनके स्कूल में देखा, जहां वह चोटिल थे और स्कोरिंग का काम कर रहे थे।
जब मैंने स्कूल क्रिकेट में अपना पहला शतक बनाया था, तो उसका एक बहुत ही मज़ेदार क़िस्सा मुझे आज भी याद हैं। मैंने 90 रन के आसपास ही एक बार जश्न मना लिया था और फिर कुछ रन बाद मुझे तालियां सुनाई दीं। तब मुझे एहसास हुआ कि स्कोरर ने नंबर गड़बड़ कर दिए थे। मेरे टीम-मेट्स को भी राहत मिली कि मैंने अपना शतक पूरा कर लिया। मैंने भी पहली बार जश्न मनाने के बाद अगली बार भी जश्न मनाने के मौक़े को नहीं गंवाया।
अश्विन एक ऐसे स्कूल में जाते थे, जो अकादमिक रूप से बहुत अच्छा था। तब मुझे उस समय लगा कि वह चोट के कारण अब क्रिकेट नहीं खेलेंगे और पढ़ाई पर ध्यान देंगे। हालांकि स्कोरिंग वाले मामले में मुझे बस यही याद है कि मैंने सोचा, "क्या वह स्कोरिंग भी ठीक से नहीं कर सकते?"
हम 2004-05 में एक ही स्कूल में थे। वह 11वीं में थे और मैं 8वीं में था। वह उस समय काफ़ी बड़े थे और गंभीर चोट से वापसी कर रहे थे। हम दोनों ने साथ में बैटिंग की शुरुआत की थी। वह उस आयु वर्ग के अधिकांश लड़कों से लंबे थे और शॉर्ट-पिच गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ बहुत अच्छे खिलाड़ी थे।
मैटिंग विकेट्स उनकी बल्लेबाज़ी के लिए अनुकूल थी। उनके कट और पुल बहुत अच्छे थे। मुझे उस समय लगा था कि शायद उनके पिता को गुंडप्पा विश्वनाथ काफ़ी पसंद थे। उसी कारण से अश्विन भी उसी तरह से खेल रहे थे। चेन्नई के बच्चों के पिता लंबे समय से विश्वनाथ के प्रति अपने प्यार को व्यक्त करते आए हैं। अक्सर कहा जाता था कि "उनकी तरह कट खेलो!"
अश्विन के और मेरे पिताजी की पीढ़ी भी इस मामले में बिल्कुल भी अलग नहीं थी। फिर भी मुझे नहीं लगता था कि अश्विन एक पेशेवर क्रिकेटर बनेंगे, क्योंकि उनके खेल में कुछ असाधारण नहीं था।
तब वह अपनी चोट के कारण न के बराबर गेंदबाज़ी करते थे। बस कभी-कभार पार्ट-टाइम ऑफ़ स्पिन गेंदबाज़ी करते थे और हमारी टीम में दो अच्छे ऑफ़ स्पिनर थे।लेकिन हमारी एक समस्या थी। हमारा स्कूल सेंट बेड्स समुद्र के पास था और दोपहर में यहां बहुत तेज़ हवा चलती थी। तेज़ गेंदबाज पहले 15 ओवरों में स्विंग को नियंत्रित करने में मुश्किल महसूस करते थे और हम अतिरिक्त रन दे देते थे।
इस समस्या का हमने एक तात्कालिक समाधान निकाला। गेंद अश्विन को दी जाती थी, जो हरभजन सिंह की गेंदबाज़ी शैली के साथ गेंदबाज़ी थे। ऑफ़ साइड में छह फ़ील्डर होते थे - तीन कवर के पीछे कट के लिए। एक भी गेंद नहीं घुमती थी, लेकिन वे ड्रिफ़्ट के साथ तेज़ी से निकलती थीं।
ऐसी गेंदों पर स्कूल के बच्चों के लिए बल्लेबाज़ी करना नामुमकिन जैसा था। इसी कारण से वे प्वाइंट के पास खड़े तीन फ़ील्डर्स के घेरे में फंस जाते थे। यह हमारे स्कूल की टीम के लिए एक शानदार रणनीति थी। हम अश्विन के साथ सफल रहे और बाक़ी के दोनों ऑफ़ स्पिनर मध्य और अंतिम ओवर्स को पूरा करते थे।
फिर भी मैंने सोचा, "ऐसा ऑफ़ स्पिनर जो एक भी गेंद नहीं घुमाता, वह कैसे बड़ा बनेगा?" इस समय के बारे में उनके क़िताब में काफ़ी अच्छी तरह से लिखा गया है। हम स्कूल से पास होने के बाद फिर से लीग क्रिकेट में विरोधी बनकर मिले। वह अल्वरपेट की एक युवा टीम में खेल रहे थे, जिसका नेतृत्व डी. वासु कर रहे थे। वासु एक ऐसे खिलाड़ी थे जो तेज़ और स्पिन दोनों तरह की गेंदबाज़ी कर सकते थे। अश्विन ने उस मैच में पांच विकेट लिए, लेकिन हमारी टीम नौसिखिया थी।
गेंद घूम रही थी और तब तक उनका खुद का गेंदबाज़ी एक्शन भी बन चुका था। मैंने उन्हें थोड़ी गंभीरता से लेना शुरू किया क्योंकि वह उस टीम के लिए नंबर 4 पर बैटिंग कर रहे थे और पांच विकेट भी ले रहे थे।
2006 के अंत तक उन्हें रणजी टीम में शामिल कर लिया गया और उन्होंने तमिलनाडु को एक महत्वपूर्ण मैच में बड़ौदा के ख़िलाफ़ जीत दिलाई। उस समय तमिलनाडु टीम में कुछ बदलाव हो रहे थे, क्योंकि कई खिलाड़ी इंडियन क्रिकेट लीग (ICL) में शामिल हो गए थे।
उन्हें एमजे गोपालन ट्रॉफ़ी में श्रीलंका के ख़िलाफ़ होने वाले मैच में कप्तानी सौंपी गई। तब तक उन्होंने सिर्फ़ चार प्रथम श्रेणी मैच खेले थे और इस मैच में हममें से पांच खिलाड़ी (जिसमें मैं भी शामिल था) अपना प्रथम श्रेणी डेब्यू कर रहे थे।
हम एक मज़बूत श्रीलंकाई टीम से एक पारी से हार गए, लेकिन उस मैच में जो चीज़ मुझे सबसे अच्छी तरह से याद आई, वह यह थी कि अश्विन एक बेहतरीन तरीक़े से सोचने वाले ऑफ़स्पिनर के रूप में परिपक्व हो चुके थे, जो नई रणनीतियों को अपनाने से डरते नहीं थे।
माइकल वांडोर्ट एक असामान्य रूप से लंबे ओपनर थे। वह अपने सामने का पैर आगे बढ़ाते और गुडलेंथ गेंदों को भी ब्लॉक कर देते थे। उनके लिए अश्विन ने मुझे एक असामान्य सिली प्वाइंट/मिड-ऑफ़ पर पिच के पास खड़ा किया और वांडोर्ट एक गेंद को सीधे मेरे हाथों में खेल बैठे। यह मेरे लिए अश्विन के साथ एक सफल साझेदारी की शुरुआत थी।
2008 तक हम क्लब क्रिकेट में टीममेट बन गए। ये तीन साल हमारे क्लब के लिए कुछ बेहतरीन थे। मैं इस बात का शुक्रगुजार हूं कि उसके बाद मुझे उन्हें नेट्स के अलावा और कहीं भी सामना नहीं करना पड़ा।
हम उस समय तमिलनाडु के लिए खेलते हुए रूममेट भी थे। मुझे एक बार याद है कि हम नागपुर में उत्तर प्रदेश (यूपी) के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल खेल रहे थे और मैच से पहले की रात अश्विन ने अपनी डायरी निकाली और फ़ोन पर अपनी मां से अगले दिन की योजना पर लंबी बातचीत की। जैसे ही घड़ी ने आठ बजे का समय दिखाया, टीवी चालू हो गया, और वह अपनी पसंदीदा रूटीन में लग गए - रात 8 बजे का तमिल मूवी देखना।
एसी सबसे कम तापमान पर चलता और टीवी की ज़ोरदार आवाज़ के बीच मैं अश्विन से यह कहता, "कृपया ऐश, थोड़ी गर्मी बढ़ा और आवाज़ कम कर दे, ताकि मैं सो सकूं। प्लीज ऐश… नालायक मैच है कल!"
कुछ मिनटों के लिए सब शांत हो जाता, फिर अचानक वह फिल्म के किसी सीन पर हंस पड़ते, जो मुझे काफ़ी परेशान करता था। वह हमेशा अच्छे छात्र की तरह थे, जो एक मैच के लिए पूरी तैयारी करके आता था और मैच से पहले का दिन आराम से अपनी मूवी रूटीन में बिताना चाहता था।
यह रूटीन उन्हें कभी-कभी समस्याओं में भी डाल देता था। वह कभी भी मैच से एक दिन पहले के वैकल्पिक अभ्यास सत्रों में नहीं आते थे। एक युवा क्रिकेटर के लिए ऐसी आदतें आपकी कार्य नैतिकता पर सवाल उठाती हैं और इसे आलसीपन के रूप में देखा जा सकता है। लेकिन अश्विन ने कभी इसके बारे में नहीं सोचा। उनका केवल यही जवाब होता: "मै अगर खेल में अच्छा प्रदर्शन नहीं करता हूं तो फिर सवाल उठाओ।"
यह उनकी जिद और प्रदर्शन करने की इच्छाशक्ति को दर्शाता है। मुझे नहीं लगता कि पिछले दशक में मैंने कोई ऐसा क्रिकेटर देखा है, जो हमेशा अपने करियर में "बाहर होने की कगार पर" रहता था।
जब अश्विन कप्तान बने, तो वह अन्य खिलाड़ियों की मदद के लिए वैकल्पिक अभ्यास सत्रों में आते थे, लेकिन कभी अपने लिए नहीं। उनका मस्तिष्क हमेशा सक्रिय रहता था। आप उन्हें कभी भी शांत नहीं रख सकते थे।
रणजी ट्रॉफ़ी के लिए यात्रा करते समय लंबी बस यात्राओं के दौरान, वह हमेशा बैक बेंचर होते थे। वह कुछ लड़कों का समूह बनाते और एक अजीब सा खेल खेलते, जिसका नाम "माफिया" था - यह एक साधारण डिडक्शन (निष्कर्ष निकालने) का खेल था, जिसमें वह मॉडरेटर होते और खेल देखते।
मुझे हमारे क्लब क्रिकेट के शुरुआती सालों की भी याद आती है, जब हम ड्रेसिंग रूम में बैठे होते थे और वह पेन और काग़ज लेकर आते थे और हम हर IPL टीम के लिए मॉक ऑक्शन करते थे और योजना बनाते थे कि टीमें कैसे संतुलित होंगी।
उस बेहद सक्रिय प्रक्रिया में वह हर बार आपको हैरान कर देते थे। उदाहरण के लिए मैंने उन्हें पिछले IPL के दौरान फोन किया था और वह 45 मिनट तक न्यूरल नेटवर्क्स और ए.आई. के बारे में बात करते रहे और यह बता रहे थे कि कैसे यह खेल के सबसे छोटे प्रारूप (T20) पर प्रभाव डाल रहा था। उन्होंने मुझे ऑक्शन से ठीक पहले एक संदेश भेजा, जिसमें उन्होंने ESPNcricinfo के Impact नंबर की लिस्ट भेजी, जो IPL सीज़न के दोनों हिस्सों के लिए विभाजित थी।
उनकी कई रुचियों ने उन्हें कई अवातरों में बदल दिया है। एक क्रिकेटर जो अपने नोट्स हमेशा तैयार रखता है, एक ऐसा आदमी जो अपना यूट्यूब चैनल चलाता है, एक आदमी जो अपनी अकादमी में कोच है। मुझे यक़ीन है कि वह नए फिल्मों के बारे में सब कुछ जानते हैं, जबकि कभी-कभी 8 बजे एक पुरानी क्लासिक फिल्म का आनंद भी लेते हैं। (मुझे खु़शी है कि उसने क्रिकेट स्कोरिंग काम कभी नहीं किया!)
क़रीब तीन महीने पहले दिनेश कार्तिक, अश्विन के पिता और मैं चेपॉक में टेस्ट मैच देख रहे थे। भारत बांग्लादेश के ख़िलाफ़ 144/6 पर था, जब अश्विन मैदान पर आए। उनके चेहरे पर कुछ तनाव साफ़ दिखाई दिया। DK और मैंने उनके पिता से कहा, "अंकल, आज आपके बेटे का दिन है। अगर वह क्रीज़ पर टिके रहते हैं, तो वह निश्चित रूप से बड़ा स्कोर करेंगे।"
यह बात हल्के में नहीं कही गई थी। चेपॉक पर अश्विन हमेशा अपना सर्वश्रेष्ठ गेम लेकर आते हैं। जब वह लाल मिट्टी की पिच पर बल्लेबाज़ी करते हैं, तो यह उनके स्वाभाविक खेल (कट और पुल) के लिए उपयुक्त होती है।
मैं उनसे उस टेस्ट मैच के बाद मिला, जिसमें उन्होंने अपना सबसे तेज़ टेस्ट शतक बनाया था, जबकि उनके परिवार वाले स्टैंड्स से उन्हें देख रहे थे। मैंने एक कप कॉफ़ी मंगवाई और उनकी पत्नी ने उनके लिए एक नारियल पानी मंगवाया।
मैंने उन्हें मज़ाक करते हुए कहा, "क्या तुम्हें इलेक्ट्रोलाइट्स की जरूरत है, बूढ़े आदमी?" वह बस मुस्कुराए और फिर अपनी बेटियों से उनके दिन के बारे में पूछने लगे। उन्होंने कहा कि सबसे अच्छा पल वह था जब उनके पिता ने शतक बनाने के बाद उन्हें देखा।
यह साफ़ दिख रहा था कि यह अश्विन के लिए शतक से भी ज़्यादा मायने रखता था। परिवार के साथ बिताया गया समय उन्हें मैदान पर बनाए गए उपलब्धियों से कहीं अधिक प्रिय था। मुझे पता है कि वह महीनों से संन्यास के बारे में सोच रहे थे और यह कोई जल्दबाज़ी वाला निर्णय नहीं था। शिखर तक पहुंचने का कोई भी सफर आसान नहीं होता, लेकिन मुझे पता है कि उनका जीवन शारीरिक और मानसिक दोनों रूपों में अधिकांश लोगों से कहीं ज़्यादा कठिन रहा है।
मैं फिर से कहूंगा कि मैंने कभी नहीं सोचा था कि अश्विन आज जो हैं, वो बन पाएंगे। वह यूसैन बोल्ट या माइकल फ़ेल्प्स की तरह प्रतिभाशाली नहीं थे। वह सिर्फ़ एक मध्यम वर्गीय लड़का था, जिनके पास डॉक्टर या अकाउंटेंट बनने का दिमाग़ था -- या इंजीनियर जो वह आख़िरकार बन ही गए। मैंने एक बार कमेंट्री करते हुए कहा था: "आर अश्विन आपके नवीनतम स्मार्टफोन की तरह हैं; उनका सॉफ़्टवेयर हमेशा अपडेट रहता है।"
फोन की बात करें, तो उनका रिंगटोन काफ़ी समय तक एक तमिल गाना था, जो इस प्रकार था: "Naan pogiren mele mele, boologam eh kaalin kizhe." इसका अनुवाद होता है: "मैं हमेशा ऊपर की ओर बढ़ रहा हूं, पृथ्वी मेरे पैरों के नीचे है।" अब उनके करियर को देखते हुए, यह बहुत उपयुक्त लगता है।
अश्विन लाखों मध्यमवर्गीय लड़कों और लड़कियों के लिए एक झंडा वाहक हैं, जो शारीरिक या तकनीकी रूप से ज़्यादा प्रतिभाशाली नहीं होते, लेकिन उन्हें यह संदेश देते हैं कि जो कुछ भी उनके पास है, उसका पूरा फ़ायदा उठाएं, मेहनत और स्मार्ट तरीके़ से काम करें; अपने सपनों का पीछा करें और महानता प्राप्त करें।
हम तमिलनाडु में बड़े हुए, जहां फ़िल्मी सितारों की पूजा करना आम बात थी और किसी बड़ी फ़िल्म के पहले दिन का एक सामान्य रिवाज था, "पलाभिषेकम", जो एक धार्मिक अनुष्ठान से लिया गया है, जिसमें देवता को दूध से नहलाया जाता है।
बस इस मामले में यह फ़िल्मी सितारों की जीवन आकार की कटआउट होती है, जिसे दूध से नहलाया जाता है। मुझे यक़ीन है कि अश्विन के लिए भी अब एक ऐसा ही आयोजन होगा, जब वह CSK के साथ अपने नए सफ़र पर निकलेंगे।

अभिनव मुकुंद, भारत और तमिलनाडु टीम में आर अश्विन के साथी रहे हैं