बहुत से लोग शायद
केएल राहुल से बेहतर नहीं जानते होंगे कि क्रिकेट (खासकर टेस्ट बैटिंग) में नतीजे हमेशा आपकी स्किल, तैयारी, फ़िटनेस और समर्पण के अनुपात के अनुसार नहीं आते। राहुल का टेस्ट करियर इसकी मिसाल है। इस टेस्ट से पहले उन्होंने दुनिया के सबसे मुश्किल हालात में शतक लगाए थे। उनके आठ में से सात शतक विदेशों में आए लेकिन फिर भी वह कभी उस स्तर के दबदबे वाले टेस्ट बल्लेबाज़ नहीं बन पाए, जिसकी उनकी तकनीक गवाही देती है।
हेडिंग्ली टेस्ट से पहले उनका औसत 33.57 था। यह औसत एक ऐसे बल्लेबाज़ के लिए थोड़ा कम है, जो कई यादगार पारियां खेल चुका है।
राहुल ने
भारत की तीसरी पारी में 137 रन बनाने के बाद कहा, "जितना जल्दी आप यह समझ लेते हैं कि आपकी खेल, तैयारी वगैरह का नतीजों से कोई सीधा संबंध नहीं है, आप उतने शांत रह सकते हैं। और मुझे लगता है कि लंबे समय तक इस स्तर पर खेलने का यही सबसे अच्छा तरीका है। मैंने भी यह बात जानबूझकर अपनाई है।
"मैंने जिन सीनियर खिलाड़ियों को देखा और फ़ॉलो किया, उनसे यह बात सीखी और इसे समझा है। न सिर्फ टेस्ट क्रिकेट बल्कि सभी फ़ॉर्मैट में यह बात लागू होती है। तैयारी एक ऐसी चीज़ है, जो आपके हाथ में है। आप अच्छी तैयारी कर के ख़ुद को सफल होने का अच्छा मौक़ा दे सकते हैं। लेकिन फिर भी कोई गारंटी नहीं होती कि आपको सफलता मिलेगी या नहीं। जब दिन अच्छा हो, तो आप खु़श होते हैं। जब बुरा दिन हो, तब भी इस बात की खु़शी होती है कि खेलने का मौक़ा मिला। मैं क्रिकेट को इसी तरह देखता हूं।"
राहुल के करियर का ताज़ा उदाहरण ऑस्ट्रेलिया दौरा है, जहां रोहित शर्मा की गैरमौजूदगी में उन्हें पारी की शुरुआत करने का मौक़ा मिला। उन्होंने पर्थ में 26 और 77, फिर ब्रिसबेन में 84 रन बनाए। लेकिन सीरीज़ के अंत में उनका औसत सिर्फ़ 30.66 रहा।
राहुल ने कहा, "जब आप अच्छी शुरुआत करते हैं लेकिन उसे बड़ी पारी में नहीं बदल पाते, तो यह किसी भी बल्लेबाज़ के लिए निराशाजनक होता है। ऑस्ट्रेलिया में अपनी बैटिंग से मैं खु़श था, लेकिन सीरीज़ के बाद काफ़ी निराशा थी कि मैं उन शुरुआतों को शतक में नहीं बदल सका। हर मैच में मेरे पास मौक़ा था, मैं हर बार सेट हो गया था। और एक आदर्श स्थिति में मैं चाहता था कि इन सभी पारियों को बड़ी पारी में बदलूं।"
"लेकिन दुर्भाग्य से मैं ऐसा नहीं कर सका। हालांकि क्रिकेट में ऐसा होता रहता है। कभी अच्छी गेंद मिल जाती है, तो कभी आप ग़लत शॉट खेल बैठते हैं। यह खेल का हिस्सा है, और इससे आप सीखते हैं। उस सीरीज़ से मैंने यही सीखा कि जब भी सेट हो जाओ, उसे बड़ी पारी में बदलने की पूरी कोशिश करो और जितना हो सके उतना रन निकालो।"
यह राहुल के करियर की एक चलन बन गई है - उन्होंने कभी किसी एक सीरीज़ में 400 रन नहीं बनाए। शायद यही वजह रही है कि वह कभी बैटिंग ऑर्डर में अपनी जगह पक्की नहीं कर सके। पिछले इंग्लैंड दौरे पर उन्हें सिर्फ़ इसलिए मौका मिला क्योंकि नेट्स में उनके दोस्त मयंक अग्रवाल चोटिल हो गए थे। बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी में उन्हें ओपनिंग का मौक़ा मिला क्योंकि पहले टेस्ट में रोहित पितृत्व अवकाश पर थे।
राहुल ने अलग-अलग बैटिंग पोज़ीशन को सहजता से निभाया है। राहुल ने कहा, "पिछले कुछ सालों में तो मैं भूल ही गया हूं कि मेरी असली बैटिंग पोजिशन क्या है। मुझे अलग-अलग ज़िम्मेदारियां और रोल दिए गए, जिससे खेल मज़ेदार भी बना और मुझे अपने खेल को और निखारने की प्रेरणा भी मिली। मुझे मेहनत करने और खु़द को चुनौती देने में मज़ा आता है।"
"पिछली कुछ सीरीज़ में मेरा रोल ओपनिंग करने का रहा है, और मुझे उसमें भी मज़ा आया है। मैंने अपने शुरुआती क्रिकेटिंग सालों में हमेशा ओपनिंग ही की है, इसलिए अच्छा लग रहा है कि मैं फिर से वही कर रहा हूं और टीम के लिए काम आ रहा हूं।"