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हारिस रउफ़ : पाकिस्तान में घूम-घूम कर टेप बॉल क्रिकेट खेलने वाले 'टेपिया' की कहानी

चार साल पहले हारिस रउफ़ ने अपनी ज़िंदगी का पहला क्रिकेट ट्रायल दिया और इसके बाद से फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा

Haris Rauf holds up a ball, Lahore

23 साल की उम्र तक हारिस रउफ़ ने लेदर गेंद से क्रिकेट नहीं खेला था  •  Lahore Qalandars

2017 की गर्मियों में तीन दोस्त लगभग साढ़े चार घंटे का सफ़र करके इस्लामाबाद से गुजरांवाला पहुंचे थे, ताकि वे एक क्रिकेट ट्रायल में भाग ले सकें। हालांकि सफ़र के दौरान उनको देर हो गई और जब वे स्टेडियम पहुंचे तो स्टेडियम पूरी तरह से भर चुका था। लेकिन वे बिना ट्रायल दिए वापिस भी नहीं जाना चाहते थे। ऐसे में उन्हें किसी ने एक ऐसे गेट से स्टेडियम में घुसने की सलाह दी, जहां थोड़ी कम भीड़ थी। वे उस गेट पर पहुंचे और ताला तोड़कर स्टेडियम में प्रवेश किया, जहां पहले से ही हज़ारों की संख्या में लड़के अपनी बारी के इंतज़ार में थे।
ये तीनों दोस्त तेज़ गेंदबाज़ थे, जिन्होंने आज तक कभी भी सीज़न गेंद/लेदर गेंद से क्रिकेट नहीं खेला था। वे एक प्रोफ़ेशनल 'टेप बॉल क्रिकेटर' थे, जो पूरे पाकिस्तान में घूम-घूम कर क्रिकेट खेलते थे। पाकिस्तान में ऐसे लोगों को 'टेपिया' भी कहा जाता है।
वे किसी भी गांव, मौहल्ला या क्लब के लिए क्रिकेट खेल सकते थे बशर्ते उन्हें आने-जाने का ख़र्चा और एक उचित मेहनताना मिले। उन्होंने कभी भी सीज़न गेंद से क्रिकेट नहीं खेला था और ना ही वे कभी खेलना चाहते थे, क्योंकि उनका मानना था कि सीज़न गेंद में वही क्रिकेटर सफल हो सकते हैं, जिनका ऊपर तक 'संपर्क' और 'गुज़ारिश' हो। हालांकि वे पीएसएल टीम लाहौर क़लंदर्स द्वारा आयोजित इस ट्रायल में भाग लेने से ख़ुद को नहीं रोक सके।
इन तीनों के पास गति और डीलडौल से भरा जवान शरीर था, जो कि एक तेज़ गेंदबाज़ के लिए बहुत ज़रूरी होता है। इसलिए तीनों ने पहला राउंड बहुत आसानी से पास कर लिया। हालांकि इन तीनों दोस्तों में से सिर्फ़ एक ही अंतिम राउंड तक पहुंच सका, जहां पर प्रतिभागियों की संख्या हज़ारों से दर्जन भर में सीमित हो गई। इस दोस्त का नाम हारिस रउफ़ था और उन्होंने उस दिन 92.3 मील/घंटे की रफ़्तार से गेंदबाज़ी की थी।
पाकिस्तान क्रिकेट बोर्ड (पीसीबी) के पास देश भर के कुल 3822 क्लब रजिस्टर्ड हैं, जिसमे क़रीब 80 हज़ार खिलाड़ी खेलते हैं। इसके इतर पूरे पाकिस्तान में लाखों खिलाड़ी ऐसे हैं, जिनका कोई रिकॉर्ड नहीं है। रउफ़ भी उन्हीं लाखों खिलाड़ियों में से एक थे।

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उस साल इस ट्रायल में क़रीब पांच लाख युवा खिलाड़ियों ने भाग लिया था, जिसमें लगभग एक लाख अस्सी हज़ार गेंदबाज़ थे। ये ट्रायल पीएसएल टीम लाहौर क़लंदर्स द्वारा 'खिलाड़ी विकास कार्यक्रम' के अंतर्गत 2016 से ही चलाए जा रहे थे, ताकि ज़मीनी स्तर से प्रतिभाओं को पहचान कर उन्हें क्रिकेट का सही प्रशिक्षण दिया जा सके।
इन ट्रायल का पाकिस्तान के हर उम्र और हर वर्ग के लोगों ने स्वागत किया और उसमें हिस्सा लिया। कुछ लड़के नंगे पांव ही ट्रायल के लिए आते थे, उन्हें जूते दिए गए। कुछ पारंपरिक सलवार-कमीज़ में ही भाग लेने आते थे, उन्हें भी ट्रायल का हिस्सा बनने का मौक़ा दिया गया। सभी को अपनी गेंदबाज़ी और बल्लेबाज़ी प्रतिभा दिखाने के लिए पर्याप्त अवसर दिए जाते थे।
इन ट्रायल में जिनका चयन हुआ, उन्हें आठ अलग-अलग शहरों के आधार पर टीमों में बांटा गया। इसके बाद इन आठ टीमों का एक टूर्नामेंट हुआ और टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ 15 खिलाड़ियों को मिलाकर एक नई टीम बनाई गई। इस टीम को ना सिर्फ़ पाकिस्तान की अलग-अलग क्लबों के ख़िलाफ़ खेलने का अवसर मिला बल्कि उन्हें ऑस्ट्रेलिया में भी क्लब क्रिकेट खेलने का मौक़ा मिला। इसके बाद 2018 में इस टीम ने अबू धाबी में एक टी20 टूर्नामेंट जीता, जिसमें साउथ अफ़्रीका की शीर्ष टी20 टीम टाइटंस भी भाग ले रही थी।
लाहौर क़लंदर्स के प्रमुख कोच और इस ट्रायल कार्यक्रम के प्रमुख आक़िब जावेद कहते हैं, "आप प्रतिभाओं को कुछ सेकंड में ही पहचान सकते हैं, प्रतिभाएं नैसर्गिक होती हैं। जैसे आप किसी गायक को उसकी 10 सेकंड की गायकी से पहचान सकते हैं, वैसे भी किसी क्रिकेट प्रतिभा को पहचानने के लिए दो से तीन गेंद ही लगते हैं। हमारे ट्रायल में लाखों युवा खिलाड़ी आते हैं, लेकिन उनमें से सिर्फ़ दहाई की संख्या में ही लड़कों का चुनाव होता है। हम ट्रेनिंग ले रहे ऐकेडमी के खिलाड़ियों को नहीं बल्कि कच्ची प्रतिभाओं को ढूंढ़ते हैं, जिन्हें तराशा जा सके और जिनमें निवेश किया जा सके। रउफ़ ने ट्रायल के 92.3 मील/घंटे की रफ़्तार से गेंदबाज़ी की थी, जो कि मामूली नहीं था। हमने उनमें प्रतिभा दिखी, लेकिन उसे तराशे जाने की ज़रूरत थी। उनके पास गति तो थी, लेकिन उन्हें एक तेज़ गेंदबाज़ बनने के लिए कम से कम दो साल के सही ट्रेनिंग की ज़रूरत थी, जो हमने उन्हें दिया।"

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23 साल की उम्र तक रउफ़ के पास सीज़न गेंद का अनुभव नहीं था। वह इस्लामाबाद के सबसे बड़े डायमंड क्रिकेट क्लब के ही निकट रहते थे, लेकिन कभी भी उन्होंने इस क्लब में जाने की इच्छा नहीं जताई। उनके पिता लोक कार्य विभाग में एक वेल्डर थे, जो बिल्डिंग का काम किया करते थे। इंटरमीडिएट करने के बाद रउफ़ ने ख़ुद को एक आईटी डिग्री लेने के लिए रजिस्टर किया था। इसके साथ ही वह एक मोबाइल के दुकान पर सेल्समैन का भी काम करते थे। अतिरिक्त पैसा कमाने के लिए वह टेप-बॉल से क्रिकेट खेलते थे। उनकी कोई एक टीम नहीं थी, जो भी उन्हें ठीक-ठाक पैसा देने को तैयार हो जाता था, वह उनके लिए खेलने के लिए तैयार हो जाते थे।
अगर आपकी टीम को हर गेंद पर यॉर्कर चाहिए, तो आप रउफ़ को फ़ोन कर लीजिए, वह आसानी से उपलब्ध थे। जो टीम उनको सबसे अधिक पैसा देती थी, उनके लिए वह खेलते थे। वह एक टूर्नामेंट से लगभग 50 हज़ार रुपये कमा लेते थे। हालांकि कई बार उनके लिए ख़राब दिन भी होता था।
रउफ़ के माता-पिता कभी भी उन्हें क्रिकेटर नहीं बनने देना चाहते थे, क्योंकि यह एक जोखिम भरा करियर था। उनके मुताबिक़ इस खेल में ऊपर तक जगह बनाने के लिए आपको सिफ़ारिश लगानी होगी। यह खेल भले ही आम लोगों के द्वारा खेला जाता है, लेकिन इसे एलीट लोग ही चलाते हैं, ऐसा उनका मानना था।
रउफ़ भी इससे कहीं ना कहीं सहमत थे। क्रिकेट उनके लिए महज़ मनोरंजन और पैसे कमाने का साधन था। हालांकि एक क्रिकेटर बनना उनका भी एक सपना था, लेकिन 'रिस्क' के कारण वह अपने आप को पीछे खींच लेते थे।
2019 में ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो से बातचीत में उन्होंने कहा था, "मैंने उस एकमात्र ट्रायल के अलावा और कोई ट्रायल नहीं दिया था। मुझे कभी भी विश्वास नहीं था कि ट्रायल सही तरीके से होता है और मैं कभी भी चुना जा सकूंगा। मैंने इसलिए कभी सीज़न गेंद से क्लब क्रिकेट नहीं खेला क्योंकि मुझको लगता था कि वे अपने लड़कों को ही आगे तक ले जाएंगे। जब लाहौर क़लंदर्स मेरे घर के बहुत पास रावलपिंडी ट्रायल के लिए आया था, तब भी मैं ट्रायल के लिए नहीं गया क्योंकि मैं अटक में एक टेप-बॉल मैच में व्यस्त था।"
उन्होंने आगे बताया, "लेकिन उस ट्रायल के लिए मेरे दोस्त मुझे गुजरांवाला लेकर गए। हम सब वहां पर घूमने और मस्ती करने के मूड में गए थे। सही कहें तो कोई भी ट्रायल के लिए गंभीर नहीं था। लेकिन जब ट्रायल शुरू हुआ, तब हमने अपना 100 प्रतिशत दिया। मेरे एक दोस्त ने 87 या 88 मील/घंटे की रफ़्तार से गेंद फेंकी। मैं उससे आगे जाना चाहता था। मैंने 92.3 की रफ़्तार से गेंद फेंकी। आक़िब भाई की इस पर नज़र गई और मैं सेलेक्ट कर लिया गया। यह बस एक गेंद की बात थी।"
इसके बाद रउफ़ को एक कॉन्ट्रैक्ट दिया गया। क़लंदर्स की तरफ़ से उन्हें कठिन ट्रेनिंग और न्यूट्रिशन प्लान दिए गए और आक़िब ने उन पर व्यक्तिगत तौर पर नज़र रखी। इसके बाद उन्हें विकास कार्यक्रम के अंतर्गत क्लब क्रिकेट खेलने के लिए ऑस्ट्रेलिया भेजा गया। उन्होंने होबार्ट हरिकेंस के ख़िलाफ़ क़लंदर्स के लिए 2018 में डेब्यू किया और टाइटंस के विरुद्ध ख़िताबी जीत में 23 रन देकर एक विकेट झटका। 2018-19 के सीज़न में उन्होंने पीएसएल में डेब्यू करते हुए 10 मैचों में 11 विकेट झटके, जिसमें कराची किंग्स के विरुद्ध 23/4 की मैच जिताऊ गेंदबाज़ी शामिल थी।
उन्हें उसी साल ऑस्ट्रेलिया में बिग बैश लीग खेलने का भी मौक़ा मिल गया, जो उनके लिए किसी जैकपॉट से कम नहीं था। वह चोटिल डेल स्टेन की जगह मेलबर्न स्टार्स की टीम में शामिल हुए। क़लंदर्स के मालिकों में से एक समीन राणा ने मेलबर्न स्टार्स टीम प्रबंधन को रउफ़ को लेने की सिफ़ारिश की और यह भी कहा कि अगर रउफ़ असफल होते हैं तो उनकी बातों को आगे फिर कभी नहीं सुना जाए। उस समय रउफ़ ऑस्ट्रेलिया में ही थे।
इस सीज़न में ना सिर्फ़ रउफ़ खेले बल्कि सीज़न के सबसे बड़े स्टार भी साबित हुए। उन्होंने 10 मैच खेलने के बावजूद हर मैच में लगतार तेज़ गति से गेंदबाज़ी की और 11.3 के बेहतरीन स्ट्राइक रेट से 20 विकेट झटके। उन्होंने इस सीज़न में हैट्रिक भी लिया। घर आने पर उन्हें दो महीने के अंदर ही पीसीबी की तरफ़ से इमर्जिंग सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट मिल गया।
"मैं चाहता था कि रउफ़- वसीम, वक़ार और इमरान बनने के भार से मुक्त रहे और तेज़ गेंदबाज़ के रूप में अपनी एक अलग पहचान बनाए"
आक़िब जावेद, प्रमुख कोच, लाहौर क़लंदर्स
आक़िब कहते हैं, "वह स्पेशल है। उसे पता है कि वह क्या कर रहा है और आगे क्या करना है। मैं कई ऐसी प्रतिभाओं को जानता हूं जो ज़ल्दी ही अपना फ़ोकस खो देते हैं, लेकिन रउफ़ ऐसा नहीं है। प्रतिभा होना एक अलग बात है और उस प्रतिभा को बनाए रखना अलग। रउफ़ दूसरे वाले किस्म के गेंदबाज़ हैं। मैं चाहता हूं कि वह आगे भी ऐसे बना रहे।"
गली क्रिकेट खेलने वाले एक टेप-बॉल क्रिकेटर के लिए क्रिकेट स्टेडियम में खेलना एक बड़ी बात है और वह ऐसा सपनों में ही सोच सकता है। यह भी एक सपने जैसा है कि चार साल पहले जिस क्रिकेटर ने कभी सीज़न गेंद से क्रिकेट नहीं खेला था, वह आज विश्व कप खेल रहा है।
आक़िब अपनी बात ख़त्म करते हुए कहते हैं, "मुझे गर्व और ख़ुशी है कि लाहौर क़लंदर्स ने पाकिस्तान क्रिकेट को एक नगीना दिया है।"

उमर फ़ारूक़ ESPNcricinfo के पाकिस्तान संवाददाता हैं, अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के दया सागर ने किया है