मैच (13)
IPL (2)
त्रिकोणीय वनडे सीरीज़, श्रीलंका (1)
County DIV1 (3)
County DIV2 (4)
QUAD T20 Series (MAL) (2)
PSL (1)
फ़ीचर्स

भारतीय क्रिकेट के कई अहम ऐतिहासिक और अंदरूनी घटनाओं का शानदार विश्लेषण

अमृत ​​​​माथुर की पुस्तक क्रिकेट के तीन दशकों के उतार-चढ़ाव की पर्दे के पीछे की दुर्लभ झलक पेश करती है

(Second from left onwards) Amrit Mathur, Nelson Mandela and Ali Bacher at the second Test, South Africa v India, Johannesburg, November 1992

साउथ अफ़्रीका में 2003 विश्व कप में नेल्सन मंडेला और अली बाकर के साथ अमृित माथुर  •  ESPNcricinfo Ltd

अगर आप भारतीय क्रिकेट प्रेमी हैं, तो आपने ज़रूर कई बार सोचा होगा कि सचिन तेंदुलकर और सौरव गांगुली जैसे सूरमा मैच से ठीक पहले ख़ुद को कैसे तैयार करते थे? या इंडियन प्रीमियर लीग (आईपीएल) के शुरुआती साल कितने अस्तव्यस्त रहे होंगे? या यह भी सोचा होगा कि बीसीसीआई में कुछ ऐसे लोग इतने चतुर क्यों होते थे कि हर चुनाव में वह गणित समझकर कुर्सी पर वापसी करने की कला जानते थे?
ऐसे कई जवाब अमृत माथुर की नई क़िताब 'पिचसाइड : माय लाइफ़ इन इंडियन क्रिकेट' में आपको मिलेंगे। माथुर ने पिछले चार दशकों में भारतीय क्रिकेट में कई भूमिकाएं निभाईं हैं - प्रशासन का हिस्सा. पत्रकार, कुछ ऐतिहासिक दौरों पर मैनेजर, विश्व कप में आयोजक समिति के सदस्य, आईपीएल में एक टीम के सलाहकार और साथ ही बोर्ड के सदस्य।
माथुर ख़ुद की तुलना 'कंकशन सब' से करते हुए कहते हैं कि कई भूमिकाओं में उनकी एंट्री अकस्मात् ही हुई। भारतीय रेल से जुड़े नौकरी के ज़रिए पूर्व बीसीसीआई अध्यक्ष माधवराव सिंधिया ने उन्हें बोर्ड में बड़ी ज़िम्मेदारी देना शुरू किया और वहीं से उनके लिए और कई दरवाज़े खुलते गए। 'पिचसाइड...' की ख़ास बात यह है कि नाम के मुताबिक़ माथुर ख़ुद को घटनाक्रमों में घुसाए बिना आप को हर चीज़ को अपने दृष्टिकोण से बताते हैं।
भारत के कई ऐतिहासिक दौरों से कुछ मज़ेदार क़िस्से शामिल हैं - 1992 में साउथ अफ़्रीका में 'फ़्रेंडशिप सीरीज़', उसी देश में 2003 विश्व कप का यादगार अभियान और 2004 में पाकिस्तान में वनडे और टेस्ट सीरीज़ में पहली जीत। पाकिस्तान दौरे से पहले बोर्ड और सरकार के बीच तनातनी का भी अच्छा वर्णन है। यह भी बताया गया है कि आख़िरी समय में एक वरिष्ठ मंत्री ने कैसे तब के अध्यक्ष जगमोहन डालमिया पर दौरे पर रोक लगाने का दबाव डाला लेकिन सफल नहीं हुए। माथुर ने दिल्ली डेयरडेविल्स के साथ बिताए समय पर भी काफ़ी कुछ लिखा है।
माथुर खेल से प्रेम की शुरुआत की कहानी सुनाते हैं। सेंट स्टीवेंस कॉलेज में वह अरुण लाल, पियूष पांडे, रजिंदर अमरनाथ और रामचंद्र गुहा के साथ खेले और दिल्ली विश्वविद्यालय की टीम में कीर्ति आज़ाद, सुनील वालसन और रणधीर सिंह जैसे भविष्य के अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी भी जुड़ते हैं। इत्तेफ़ाक़ से मैं भी उसी कॉलेज में लगभग दो दशक बाद पढ़ा, जहां इंटर-डिपार्टमेंटल मैच में आप कभी भी दिल्ली, हिमाचल प्रदेश, हरयाणा या पंजाब के रणजी प्लेयर्स को विरुद्ध खेल सकते थे। मेरे आख़िरी साल में चिर प्रतिद्वंद्वी हिंदू कॉलेज की टीम में गौतम गंभीर शामिल हुए।
माथुर के कॉलेज के संपर्क अक्सर आगे की घटनाक्रम का हिस्सा होते हैं। लिखने का अंदाज़ काफ़ी सरल और सहज है। कुछ अंशों में भारतीय क्रिकेट के दिग्गजों के साथ भोजन के वक़्त उनके विचारों को आख़िर में प्रस्तुत किया गया है। मुझे व्यक्तिगत तौर पर 2002 के इंग्लैंड दौरे से संभंधित क़िस्से सबसे अच्छे लगे। नैटवेस्ट ट्रॉफ़ी जीतने और टेस्ट सीरीज़ में बेहतरीन वापसी करने के समय स्वच्छंदी कप्तान गांगुली और स्थिर और गणनात्मक कोच जॉन राइट के बीच की साझेदारी के बारे में पढ़ना दिलचस्प है।
क़िताब में कुछ साल और तारीख़ ग़लत हैं लेकिन ऐसा तो हर क़िताब में होना सामान्य बात है। हालिया दौरों की बात को शायद थोड़ा जल्दी में छापा गया है और इसलिए कुछ ग़लतियां प्रूफ़रीड में पकड़ी नहीं गईं।
व्यक्तिगत तौर पर मेरी दो छोटी सी शिकायतें हैं। पहला यह कि माथुर जिन वर्षों में भारतीय क्रिकेट में सबसे ज़्यादा क़रीबी तौर पर जुड़े थे, वहां एक नहीं दो बड़े मैच-फ़िक्सिंग के क़िस्से पता चले थे। लेकिन इस क़िताब में उनका कोई वर्णन नहीं। शायद इतने सालों से बोर्ड में काम करते हुए माथुर अपने व्यक्तिगत संपर्कों को ख़राब नहीं करना चाहते हों, या ऐसा भी संभव है कि उन्हें दरअसल काफ़ी चीज़ें मालूम नहीं और इसीलिए उन्होंने उस पर टिप्पणी करना सही नहीं समझा।
क़िताब के अंत में माथुर ने कुछ ख़ास व्यक्तियों पर कुछ लघु निबंध लिखे हैं। हालांकि इनमें पहली बार पूरा नाम डालने के बाद उन्होंने कहीं तो सचिन, सौरव/दादा, गावस्कर, ललित, जग्गू-दा लिखना सही समझा, तो कहीं और मिस्टर सिंधिया या मिस्टर जेटली।
शायद यह केवल दिवंगत व्यक्तियों के प्रति श्रद्धा की बात है। लेकिन ऐसा भी लगता है कि भारतीय क्रिकेट में राजनीति से जुड़े लोग अभी भी मकान रूपी क्रिकेट के सबसे ऊंचे पटल पर ही स्थित हैं, जहां बड़े से बड़ा खिलाड़ी का अंदर आना वर्जित है।
ऐसा मेरा नहीं, लेकिन भारतीय क्रिकेट के सबसे ईमानदार और बहुमुखी व्यक्तित्वों में से एक का मानना है।

देबायन सेन Espncricinfo हिंदी के स्थानीय भाषा लीड और सहायक एडिटर हैं