विराट कोहली और अजिंक्य रहाणे आने वाली टेस्ट सीरीज़ में बढ़िया प्रदर्शन करने का प्रयास करेंगे • ICC/Getty Images
दुनिया में बहुत कम लोग स्पष्टवादिता के मामले में रवि शास्त्री की बराबरी कर सकते है। 2014 में इंग्लैंड सीरीज़ के वनडे चरण के लिए टीम के क्रिकेट निदेशक के रूप में नियुक्त किए जाने पर उन्होंने कहा था कि एम एस धोनी की टीम इंडिया 3-1 से पटौदी ट्रॉफ़ी हारी थी क्योंकि उन्होंने "स्पाइन-लेस" (कमज़ोर) क्रिकेट खेला था। शास्त्री ने भारतीय खिलाड़ियों को "ग्लैम बॉइज़" करार दिया था। ख़ासकर उन्होंने विराट कोहली और चेतेश्वर पुजारा की ओर इशारा किया था जो स्विंग गेंदबाज़ी के ख़िलाफ़ लगातार एक ही गलती दोहरा रहे थे।
2018 तक शास्त्री पूरी तरह भारत के मुख्य कोच के रूप में मोर्चा संभाले हुए थे, जब भारत एक बार फिर पांच मैचों की सीरीज़ 4-1 से हार गया था लेकिन सब सहमत थे कि भारत अधिक प्रतिस्पर्धी था और शास्त्री के अनुसार टीम ने अवसर तो पैदा किए परंतु वह उसे पूरी तरह अपने नाम करने में असमर्थ रहे।
शास्त्री चाहते थे कि टीम उन दो दौरों के अपने प्रदर्शन में सुधार करे। तीन साल बाद, क्या टीम इंडिया उनकी बात पर अमल कर पाई है?
एक तरफ़ आप कहोगे - हां। भारत ने ऑस्ट्रेलिया में लगातार दो टेस्ट सीरीज़ जीती, साल की शुरुआत में इंग्लैंड को 3-1 से घर पर हराया और पहली विश्व टेस्ट चैंपियनशिप (डब्ल्यूटीसी) की उपविजेता भी रही। साथ ही इस भारतीय टीम को बेन स्टोक्स, जोफ़्रा आर्चर और क्रिस वोक्स की गैरमौजूदगी वाली मेज़बान टीम इंग्लैंड के ख़िलाफ़ सीरीज़ जीतने का प्रबल दावेदार कहा जा सकता है।
2 जून को यूके पहुंचने के बाद टीम इंडिया को इंग्लैंड की परिस्थितियों से अनुकूलित होने के लिए भरपूर समय मिला। न्यूज़ीलैंड के ख़िलाफ़ डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल के बाद खिलाड़ियों को तीन हफ़्तों की छुट्टी दी गई जहां उन्होंने अपने परिवारों के साथ समय बिताया। गुरुवार को ट्रेंट ब्रिज में शुरू हो रहे पहले टेस्ट मैच से पहले भारतीय खिलाड़ी शारीरिक और मानसिक रूप से इससे बेहतर तैयार नहीं हो सकते थे।
दूसरी ओर, भारत ने 2018 के इंग्लैंड दौरे पर परेशान करने वाले मुद्दों को पूरी तरह दूर नहीं किया है - एक अस्थिर शॉर्ष क्रम और विपक्षियों की तुलना में एक कमज़ोर निचला बल्लेबाज़ी क्रम। इस मुद्दे ने कई महत्वपूर्ण अवसरों पर भारत को परेशान किया है, ख़ासकर डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल में।
2020 की शुरुआत से भारत को घर से बाहर खेलते हुए चार बार टेस्ट मैचों में हार का सामना करना पड़ा है - न्यूज़ीलैंड में 2-0 से सीरीज़ हार, एडिलेड में डे-नाइट टेस्ट मैच की शिकस्त और डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल। इन सभी हारों में एक सामान्य कारक भारत के तीन सबसे अनुभवी बल्लेबाज़ों - विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे की असंगति रही है। जबकि 2018 के इंग्लैंड दौरे के अंत से साल 2019 के अंत तक कोहली की औसत 62.05, रहाणे की 56.58 और पुजारा की औसत 49.00 की थी, 2020 की शुरुआत से तीनों की औसत 30 से भी कम है।
कोहली ने आख़िरी बार 2019 में बांग्लादेश के ख़िलाफ़ पिंक बॉल टेस्ट मैच में शतक बनाया था। तब से वह शतक लगाए बिना 14 टेस्ट मैच और 46 पारियां खेल चुके हैं। हालांकि इस बात से कोहली को ज़्यादा फ़र्क नहीं पड़ेगा, डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल की अंतिम सुबह अपने आउट होने का तरीक़ा उन्हें परेशान कर सकता है जहां वह काइल जेमीसन की वाइड गेंद का पीछा करने चले गए थे। यह बिल्कुल वैसी ही गेंद थी जिसपर कोहली 2014 के दौरे पर लगातार आउट हो रहे थे, ख़ासकर जेम्स एंडरसन के ख़िलाफ़ जहां उनकी औसत 20 से भी कम की रही थी।
2018 के इंग्लैंड दौरे पर, कोहली ऑफ़ स्टंप के बाहर कहीं अधिक अनुशासित थे, और पांच टेस्ट मैचों की सीरीज़ में दोनों पक्षों में सबसे अधिक रन बनाने वाले और 500 रन के आंकड़े को पार करने वाले एकमात्र बल्लेबाज़ रहे थे। कोई कारण नहीं है कि वह इस बार उस तरह का प्रदर्शन दोहरा सकते हैं, ख़ासकर तब जब उन्होंने टेस्ट क्रिकेट में तीन आंकड़े हासिल किए बिना काफ़ी शानदार पारियां खेली हैं, जैसे कि एडिलेड की पहली पारी में 74 रन, चेन्नई में इंग्लैंड के ख़िलाफ़ दूसरी पारी में 72 रन और डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल के दौरान कठिन परिस्थितियों में पहली पारी में 44 रन।
भारत को अधिक चिंता पुजारा के फ़ॉर्म से होगी। 2018-19 के ऑस्ट्रेलिया दौरे पर तीन शतक लगाने के बाद 18 टेस्ट मैचों में पुजारा ने 28.03 की औसत से रन बनाए हैं। उन्होंने इस साल सिडनी में मैच बचाऊ और ब्रिस्बेन में मैच जिताऊ अर्धशतकों के साथ इस दौरान कुल 9 अर्धशतक बनाए हैं। लेकिन गुणवत्ता वाले तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण के सामने स्विंग के अनुकूल परिस्थितयों में विकेट गंवाने से पहले पुजारा पर तेज़ी से रन बनाने का दबाव ज़रूर होगा।
इसी बीच रहाणे को एक परिचित समस्या का सामना करना पड़ता है - उनका शॉट चयन अक्सर उन्हें ले डूबता है, ख़ासकर तब जब वह अच्छी लय पकड़ लेते है। 2020 की शुरुआत से रहाणे की औसत 28.15 की है, और मेलबर्न में उनके मैच जिताऊ शतक के अलावा उन्होंने 19 पारियों में मात्र एक पार 50 का आंकड़ा पार किया है।
इस दौरे पर रोहित शर्मा पहली बार इंग्लैंड में टेस्ट क्रिकेट में ओपन करेंगे। साथ ही भारत ने पूरी सीरीज़ के लिए शुभमन गिल और पहले टेस्ट के लिए मयंक अग्रवाल को खो दिया है। ऐसे में टीम की बल्लेबाज़ी का भार पुजारा, कोहली और रहाणे के कंधों पर होगा। यह इन तीनों खिलाड़ियों के लिए इंग्लैंड का तीसरा और संभवतः आख़िरी दौरा है और वह अपने अच्छे प्रदर्शन से इस पर अपनी छाप छोड़ने का प्रयास ज़रूर करेंगे।
गेंदबाज़ी में भारत उन्हीं तीन तेज़ गेंदबाज़ों के साथ उतरेगा - इशांत शर्मा, मोहम्मद शमी और जसप्रीत बुमराह - जिन्होंने तीन साल पहले इंग्लैंड के नाज़ुक शीर्ष क्रम को परेशान किया था। इस बार तो मोहम्मद सिराज के रूप में टीम के पास एक युवा प्रतिभाशाली तेज़ गेंदबाज़ भी मौजूद है। टीम प्रबंधन किसी भी संयोजन के साथ जाए, वह उम्मीद करेंगे कि गेंदबाज़ टीम को लगातार परेशान करते आ रहे मुद्दे को हल कर सकें - विपक्षी टीमों के निचले क्रम को जल्दी आउट करने की असर्थता।
2018 के इंग्लैंड दौरे पर भारत ने इंग्लैंड को एजबेस्टन की पहली पारी में 7 विकेट पर 87 रन और साउथैंप्टन में 6 विकेट पर 86 रन की स्थिति पर ला खड़ा किया था। परंतु सैम करन के नेतृत्व में निचले क्रम ने बढ़िया वापसी की जो हार और जीत के बीच का अंतर साबित हुई। डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल की पहली पारी में न्यूज़ीलैंड ने 162 रन पर 6 विकेट गंवाने के बाद कुल 249 रन बनाए, और निचले क्रम के बल्लेबाज़ जेमीसन और साउदी के प्रयासों के कारण महत्वपूर्ण बढ़त हासिल की।
यह वहीं अहम क्षण हैं जो शास्त्री चाहते हैं कि भारतीय टीम अपने नाम करे।
जबकि तेज़ गेंदबाज़ भारतीय टीम के लिए अहम भूमिका निभाएंगे, आर अश्विन भी उतने ही महत्वपूर्ण होंगे। ऑस्ट्रेलिया दौरे की शुरुआत से अश्विन अपने करियर के सबसे बढ़िया दौर का आनंद ले रहे हैं। सभी परिस्थितियों में गेंद के साथ अपनी फ़िरकी का जादू बिखेरने के साथ-साथ अश्विन ने फिर से अपनी बल्लेबाज़ी की क्षमता खोज ली है। एक मास्टर खिलाड़ी होने का बोझ यह है कि लोग हर समय गुणवत्ता की अपेक्षा करते रहते हैं।
2018 के दौरे पर उन्होंने साउथैंप्टन में चोटिल होने के बावजूद गेंदबाज़ी की। स्पिन के लिए मददगार उस पिच पर अश्विन की गेंदों में वह तीख़ापन नज़र नहीं आया और इस वजह से मोइन अली ने उनसे बेहतर प्रदर्शन किया था। इस बार वह फ़िट हैं, अपने परिवार के साथ मानसिक रूप से ख़ुश है और उन्होंने सरे के लिए खेलते हुए एकमात्र काउंटी मैच में ओवल मैदान पर दूसरी पारी में छह विकेट भी चटकाए। भारत और इंग्लैंड की बीच चौथा टेस्ट मैच इसी ओवल मैदान पर खेला जाना है। भले ही उन्होंने ऑस्ट्रेलिया में भारत की सीरीज़ जीत में अहम भूमिका निभाई थी, अश्विन का एशिया और वेस्टइंडीज़ से बाहर किसी विपक्ष पर पूरी तरह हावी होना बाकी है, जो इस बहस को ख़त्म कर देगा कि क्या उन्हें आख़िरकार विश्व के महान स्पिन गेंदबाज़ों की सूची में शामिल किया जाना चाहिए।
कौशल, इच्छाशक्ति और स्वभाव के साथ-साथ भाग्य भी समान रूप से मेल खाती टीमों के बीच सीरीज़ में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। आप तर्क दे सकते हैं कि यह निश्चित रूप से 2018 में हुआ था, जब कोहली ने उस दौरे पर एक भी टॉस नहीं जीता था। जितना वह भारत के पक्ष में सिक्का गिरने की उम्मीद करेंगे, कोहली और कोचों को अपने एकादश में उतना ही संतुलन सही रखने की आवश्यकता होगी। भारत ने डब्ल्यूटीसी फ़ाइनल के लिए टीम में दो स्पिनरों को चुनकर सबको हैरान कर दिया, जबकि पूर्वानुमान स्पष्ट रूप से मैच के दौरान बादल छाए रहने का संकेत दे रहा था। भारत रवींद्र जाडेजा की बल्लेबाज़ी को महत्व देता है, लेकिन क्या उन्हें इस बात का अफ़सोस था कि उन्होंने उस पिच पर चौथा तेज़ गेंदबाज़ नहीं चुना?
जब से उन्होंने दक्षिण अफ़्रीका के अपने 2017-18 दौरे का अंतिम टेस्ट जीता है, शास्त्री और कोहली अपने विश्वास में जुझारू रहे हैं कि भारत विदेशों में हावी होकर लगातार टेस्ट सीरीज़ जीत सकता है। टीम इंडिया ने ऑस्ट्रेलिया में श्रृंखला ज़रूर जीती, पर वह इंग्लैंड और न्यूजीलैंड के दौरों पर काफ़ी पीछे रह गए। इंग्लैंड का यह दौरा, और इसके बाद दिसंबर-जनवरी में दक्षिण अफ़्रीका में तीन टेस्ट मैचों की सीरीज़, भारत के लिए एक अग्नि परीक्षा होगी।
2018 में भी भारत को पटौदी ट्रॉफ़ी जीतने का दांवेदार समझा गया था। लेकिन सीम गेंदबाज़ी के लिए अनुकूल परिस्थितियों में करन, स्टोक्स और वोक्स के हरफ़नमौला प्रदर्शन ने उन्हें नाकाम कर दिया। इस बार भारत और भी अधिक विश्वास के साथ आगे बढ़ेगा, खिलाड़ियों के अनुभव और ज्ञान में बढ़ौतरी हुई है, और रोहित शर्मा और ऋषभ पंत में सकारात्मकता के दो स्रोतों को भारत ने अपनी लाइन-अप में जोड़ा है।
कोहली ने हाल ही में इस बारे में बात की है कि कैसे उनकी टीम केवल परिणामों पर ध्यान केंद्रित करने के बजाए उत्कृष्टता का पीछा करती है। लेकिन जीत उत्कृष्टता का अंतिम प्रतीक हैं। और कोहली की टीम इंडिया के पास इंग्लैंड में सीरीज़ जीतने का सुनहरा मौका है। अगर वे इसे हासिल कर लेते हैं, तो शास्त्री स्पष्टवादिता का ध्यान रख लेंगे।