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वॉर्न को खेलना एक जादू था, एक कला थी और नायाब काम था

द्रविड़, जयवर्दने, बेल, यूनिस, और किर्स्टन ने दुनिया के सर्वश्रेष्ठ लेग स्पिनर को खेलने के अपने समय को याद किया

The scoreboard at the MCG pays tribute to Shane Warne, Melbourne, March 5, 2022

एमसीजी के स्कोरबोर्ड पर वॉर्न को श्रद्धांजलि  •  Darrian Traynor/Getty Images

दुनिया सर्वश्रेष्ठ लेग स्पिनर को विदाई दे रही है, ऐसे में ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो ने भी दुनिया के कुछ दिग्गज़ बल्लेबाज़ों से शेन वॉर्न को खेलने की चुनौतियों के बारे में बात की, कैसे वह उनकी ड्रिफ्ट, एंगल्स, बड़ी टर्न, फ्लिपर और उनकी टिप्पणी को झेलते थे। यही सब चीज़ें थी जिसने उन्हें दुनिया के सर्वश्रेष्ठ क्रिकेटरों में से एक बनाया।
आप वॉर्न के स्मृति समोराह को यहां लाइव देख सकेंगे।

'हर गेंद खेलना एक संघर्ष था' - राहुल द्रविड़

एक चीज़ जो हमेशा वॉर्नी के ख़िलाफ़ खेलते हुए सबसे अलग थी वह यह थी कि ऐसा महसूस होता था कि वह हमेशा आपको किसी चीज़ के लिए तैयार कर रहा है, जैसे हमेशा चूहें और बिल्ली का खेल जारी हो। जब आप सोचते थे, 'मैं इन साइड आउट खेलने जा रहा हूं,' तो वह फ्लिपर डाल देते थे। या जब आप सोचते थे कि वह मुझे पीछे धकेल रहा है तो मुझे स्वीप करने या अपने पैरों का इस्तेमाल करने की ज़रूरत है, तो वह एक ऐसी गेंद डाल देते थे, जिस पर यह शॉट खेलना बहुत रिस्की हो जाता था। जैसे उन्हें हमेशा पता था आप क्या करने जा रहे हो, ऐसे में सेटअप जैसा महसूस होता था।
और यह हमेशा चुनौती की तरह था। ऐसा कभी महसूस नहीं होता था कि वह बस एक छोर से गेंदबाज़ कर रहे हैं, कुछ अच्छी गेंद डाल रहे हैं, खाली गेंद निकाल रहे हैं और दबाव बना रहे हैं। बल्कि ऐसा लगता था कि उनके पास हमेशा एक प्लान रहता था। ऐसा कुछ उनके दिमाग में हमेशा चल रहा होता था जहां आपको महसूस होता था कि आपके दिमाग को अच्छे से पढ़ रहे हैं। जितनी प्रतिस्पर्धा गेंद और बल्ले में होती थी, आपको मानसिक तौर पर भी उनसे लड़ना पड़ता था।
निज़ी तौर पर उन्हें खेलना भारत से ज़्यादा ऑस्ट्रेलिया में चुनौतीपूर्ण था, क्योंकि वहां पर उछाल रहता था और हवा की वजह से उन्हें ड्रिफ्ट मिलता था। यह फ़ैक्टर कहीं ना कहीं उनकी ताकत को बढ़ा देते थे। एक दूसरी चुनौती थी कि वह हमेशा मुझे मेरे पैड के क़रीब खिलाने का प्रयास किया करते थे। एक बल्लेबाज़ के तौर पर लाइन को परखो और आगे बढ़ो, लेकिन जैसे ही आप आगे बढ़ते थे गेंद ड्रिफ्ट हो जाती थी।
तो मैं पूरी कोशिश किया करता था कि मैं अपने पैड के पास नहीं खेलूं और मैं जल्दी उस लाइन पर नहीं जाऊं। मैं दूसरे लेग स्पिनरों की जगह उनकी गेंद को खेलने में दूसरी बार जरूर सोचता था। यह हमेशा काम नहीं करता था और उन्होंने मुझे कई बार आउट किया। वह केवल एक स्पिनर नहीं थे, जिन्हें ड्रिफ्ट मिलता था, बल्कि वार्नी ऐसा लगातार किया करते थे।
वह बड़ी लेग ब्रेक भी कर सकते थे, जो ऑफ़ स्टंप पर गिरकर बाहर की ओर निकलती। वह ऐसा एक या कई बार दो ओवर ऐसा करते थे। वह आपको ऐसा सोचने पर मजबूर कर देते थे कि अब यही लाइन पर गेंद आएगी और अचानक से वह एक ऐसी गेंद डालते थे जो ऑफ़ स्टंप पर आती थी लेकिन बाहर नहीं बल्कि मिडिल स्टंप की ओर टर्न होती थी। और क्योंकि आप कई गेंद लेग स्पिन खेल लिए होते थे तो वह आपको पैड के आस पास गेंद कराते थे और जो आपकी ओर टर्न होती थी। यह वॉर्न का हॉलमार्क था। हमने ऐसा माइक गैटिंग को की गई गेंद पर देखा। हमने ऐसा 2004 बेंगलुरु में वीवीएस लक्ष्मण को की गई गेंद पर देखा और कई ऐसी अन्य गेंद भी। जितने भी आप अच्छे हों, यहां तक कि करियर के अंतिम समय में भी वह गेंद को सही ड्रिफ्ट कराते थे जिसे खेलना चुनौतीपूर्ण होता था।
उनके लिए हर गेंद एक प्रतियोगिता थी। यह केवल एक संयम रखने वाला खेल नहीं था। कई बार आप सुनते थे: चलो खाली गेंद निकालते हैं, चलो मेडन ओवर निकालते हैं, चलो दबाव बनाकर रखते हैं। इसका मतलब यह नहीं था कि वार्नी ऐसा करने में सक्षम नहीं थे। बल्कि बात तो यह थी कि उनमें रक्षात्मक गेंद डालने की भी क्षमता थी। 2004 में भारत में हुई सीरीज़ में जब तेज़ गेंदबाज़ अच्छी गेंद कर रहे थे तो वार्नी को दूसरे छोर पर दबाव बनाए रखने की ज़रूरत थी। यही भारत में हुई 2004 और 2001 सीरीज़ का अंतर था। 2004 में उन्होंने बहुत ज़्यादा रक्षात्मक गेंद की और उन्हें लगा कि यह बोरिंग है, क्योंकि यह शायद उनकी नेचर के विरूद्ध था, क्योंकि वह हमेशा कुछ करना चाहते थे, वह आपको हमेशा सेटअप करना चाहते थे, लेकिन शायद, और यह मेरी ओर से अनुमान है, वॉर्नी ने महसूस किया कि वह एक दिन में 30 ओवर गेंदबाजी कर सकता है और एक छोर को सुखा सकता है ताक़ि तेज़ गेंदबाजों को रोटेट किया जा सके।
लेकिन एक बड़े हिस्से में आप एक ऐसे आदमी के साथ प्रतिस्पर्धा कर रहे होते थे जो आपको समझ लेता था। वार्नी में आपको आउट करने की क़ाबिलियत थी और वह केवल आपकी ग़लतियों पर निर्भर नहीं रहते थे। हम दोनों ही एक दूसरे के ख़िलाफ़ काफ़ी मैच खेले और उन्होंने मुझे कुछ बार आउट किया और मुझे भी उनके ख़िलाफ़ थोड़ी बहुत सफलता मिली, लेकिन मुझे ऐसा कभी भी महसूस नहीं हुआ कि मैं उस प्रतिस्पर्धा में पूरी तरह से कंट्रोल में हूं। मैं जानता था कि उनके पास वह कौशल है, वह तरीक़े हैं, जिससे वह मुझे आउट कर सकते थे।
वॉर्न ने अपने व्यक्तित्व, अपनी उपस्थिति, अपने प्रदर्शन से टेस्ट क्रिकेट के पूरे रंगमंच को बदल दिया। उन्होंने 90 के दशक से टेस्ट क्रिकेट को देखने का तरीक़ा बदल दिया, जहां केवल तेज़ गेंदबाज़ों को देखने का काम होता था। वार्नी ने लेग स्पिन और स्पिन गेंदबाज़ी को अधिक आक्रामक बनाया। ऐसा नहीं है कि उनसे पहले दिग्गज़ स्पिनर नहीं थे, लेकिन वॉर्न का कद खेल में टीवी और तक़नीक के आने की वजह से बढ़ा। इससे वॉर्नी पूरी दुनिया के सामने आ गए थे।
उन्होंने टेस्ट क्रिकेट की कहानी बदल दी : तेज़ गेंदबाज़ी से स्पिन गेंदबाज़ी। वह स्पिन गेंदबाज़ी मैच जिताने वाली थी। और वॉर्नी से अच्छा उदाहरण इसका कोई नहीं हो सकता : वह मैकग्रा, गिलिस्पी और ली के बीच में एक महान खिलाड़ी बने। मैं वॉर्न की इससे बड़ी तारीफ़ नहीं कर सकता।

'उनकी मौजूदगी क़ाबिलेतारीफ़ थी और किसी दूसरे से ज़्यादा ताकतवर थी' - इयन बेल

बड़े होकर, जब मैं अपने भाई के साथ बगीचे में क्रिकेट खेलता था, तो मैं अक्सर शेन वॉर्न होने का नाटक करता था। जैसा कि वह कई अन्य लोगों के लिए था, वॉर्नी मेरे नायकों में से एक थे। इसलिए आप अंदाज़ा लगा सकते हैं कि 2005 में इंग्लैंड के लिए उनका सामना करना कितना असली और नर्वस था।
मैं 22 (23) साल का था, अपनी पहली ऐशेज़ खेल रहा था, और मुझे नहीं पता था कि मुझ पर क्या असर पड़ने वाला है। जब तक आप ऐशेज़ जैसी हाई-प्रोफाइल सीरीज़ में कदम नहीं रखते, तब तक आप इसकी भयावहता को नहीं समझ सकते। मुझे लगा कि मैं संपूर्ण हूं और अवसरों से निपटने की मेरी पास योजना है, लेकिन वास्तव में इसने मुझे बेहतर बनाया और अंत मैंने मैंने गेंद को नहीं बल्कि आदमी को खेलकर किया।
अचानक, मैं शेन वॉर्न का सामना कर रहा था, ऐसा आदमी, जिसे मैं इतने सालों से अपना आदर्श मानता था और जिसे सही मायने में दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों में से एक माना जाता था।
अगर मैं ध्यान से सोचूं तो शायद मैंने उस सीरीज़ के दौरान उन्हें कुछ ज़्यादा ही सम्मान दिया और उन पर दबाव डालने के कई मौक़े गंवाए। मैदान में उनकी उपस्थिति अपने आप में एक असाधारण बात थी और किसी और प्रतिद्वंदी के साथ मैंने ऐसा महसूस नहीं किया। अगर विकेट सपाट होती तो वह किसी ना किसी तरीक़े से विकेट निकालने की कोशिश करते - फ़ील्ड बदलकर, गेम को धीमा करके वह बल्लेबाज़ को चुनौती पेश करते। वह इतने अच्छे पोकर खिलाड़ी थे तो ऐसा लगता था वह हमें छका रहें हों। यह उनकी बहुत बड़ी ख़ासियत थी।
वह हर किसी को अपनी शर्तों पर खेलने पर मजबूर कर देते थे। भले ही वह आक्रामक नीति अपना रहें हों या सुरक्षात्मक उनकी आदत थी कि मेरे जैसे युवा खिलाड़ी सोचने लगे कि वह क्या चाल चलेंगे। इससे आप अपने बुनियादी खेल से भटक जाते थे। मुझे 2005 में ऐसा ही लगा, क्योंकि मैं ख़राब गेंद को भी नहीं मार पाया। मैं खुद को स्पिन का अच्छा खिलाड़ी मानता हूं और वॉर्न और मुरली जैसे गेंदबाज़ों के विरुद्ध आपको थोड़ा आक्रामक रवैया अपनाना पड़ता है। आपको उन्हें अपनी लेंथ में परिवर्तन लाने के लिए दबाव डालना पड़ता है। 2005 सीरीज़ में वॉर्न के ख़िलाफ़ मैंने शायद वह नहीं किया। उस सीरीज़ में वॉर्नी के ख़िलाफ़ मेरा औसत था 19 का और उन्होंने मुझे तीन बार आउट किया। मज़े की बात है 2006-07 ऐशेज़ में मैंने उनके विरुद्ध 61 की औसत से रन बनाए। क्या बदला था? मैंने कुछ महान भारतीय और पाकिस्तानी गेंदबाज़ो को खेलने का अनुभव प्राप्त कर लिया था। ऑस्ट्रेलिया किसी स्पिनर के लिए अनुकूल नहीं है। उछाल अच्छे होने के चलते आप बैकफ़ुट पर और आगे बढ़ते हुए भी आक्रमण कर सकते हैं। यहां भी सफल होना वॉर्न की महानता दर्शाता है।
'शर्मिनटर' (एक अंग्रेजी फ़िल्म का क़िरदार, जिसका उपयोग वॉर्न ने बेल के लिए किया था) स्लेज पर भी अक्सर बात होती है लेकिन यह कोई बड़ी बात नहीं थी। यह एक और उदाहरण है वॉर्न के पैंतरों के पिटारे से। दरअसल एडिलेड में मैं उनके ख़िलाफ़ अच्छी बल्लेबाज़ी कर रहा था और हम पहली पारी में एक बड़े स्कोर की ओर अग्रसर थे। यह उनके लिए निराशा या कुंठा का प्रतीक नहीं था। वह सिर्फ़ मुझे परेशान करने और अपनी टीम की मदद करने के लिए मेरे पीछे पड़ गए थे। हम आख़िरकार वह टेस्ट हार गए थे और यह भी वॉर्न का ही जादू था। उस सतह पर 500 से अधिक बनाने के बाद हमें किसी बह क़ीमत पर नहीं हारना चाहिए था। लेकिन वॉर्न ने अपनी टीम में विश्वास जगाया था की ऐसा संभव है।
वॉर्न शत प्रतिशत जीनियस थे। हर किसी के पास एक कारण होगा ऐसा मानने का और सब सही होंगे क्योंकि उनमें खूबियां बहुत थी। मेरे लिए उनकी प्राकृतिक विविधता उनकी सबसे बड़ी ख़ूबी थी। उनकी तीक्ष्णता, उनकी गृप और गेंद पर दिए गए फिरकी के चलते एक ही गेंद सीम पर गिरकर बड़ी टर्न लेती और अगली गेंद सीधी निकल जाती। मैंने जिन खिलाड़ियों के साथ खेला है उनमें ही नहीं मैं उन्हें इस खेल का महानतम गेंदबाज़ कहूंगा। जिस तरह से वह बड़े गेम और उसके वातावरण पर क़ाबू कर लेते थे - एमसीजी हो या लॉर्ड्स या कहीं और, वह अद्वितीय था। बतौर बल्लेबाज़ ऐसा प्रतीत होता था आप उनके इशारों पर नाच रहे हों। किंग के साथ एक मैदान पर खेल पाना सौभाग्य की बात थी और यक़ीनन पूरा क्रिकेट जगत उन्हें मिस करेगा।

'यहां तक कि सफ़ेद गेंद क्रिकेट में भी वॉर्नी किंग थे' - महेला जयवर्दने

जब बात दबाव बनाने की आती है तो वॉर्नी उसमें मास्टर थे। मैंने पहली बार उनको 199 में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ घरेलू सीरीज़ में खेला था। तब 20 वर्ष का होने के नाते वॉर्नी को उनके पीक पर रहते पहली बार खेलना वाकई चुनौतीपूर्ण था। सीधे तौर पर आप उनकी बुद्धिमत्ता का अंदाज़ा लगा सकते हैं कि उन्होंने कैसे अपनी फील्ड लगाते थे, कैसे वह बल्लेबाज़ों को गैप दिखाते थे कि जब वह वहां मारने की कोशिश करें तो उन्हें आउट करने का मौक़ा मिल सके।मुझे याद कि कैंडी टेस्ट में जब मैं 40 से 50 के स्कोर के बीच में था तो कैसे उन्होंने मिडविकेट गैप खोल दिया था और मुझे उकसाया कि उस जगह पर उन पर रन करूं, बल्ले का बाहरी किनारा लगा और गेंद सीधा फ‍िल्‍डर के हाथों में चली गई। वह जानते थे कि एक युवा क्रिकेट में इगो होती है और सोचते हैं कि मैं वॉर्नी को इस गैप में मारने जाउंगा।
टर्निंग विकेट पर एक दायें हाथ के बल्लेबाज़ के लिए ऐसा करना रिस्की था, लेकिन इस तरह का माइंडसेट बनाने को वॉर्नी मजबूर करते थे।बाहर से यह देखना सुखद था कि कैसे वार्नी अपनी रणनीति बनाते थे और टेस्ट में जाते थे। वह अपना सिर नीचे रखते थे और अपना काम करते थे, वह पहले दिन के विकेट पर रक्षात्मक खेलते थे, लेकिन चौथे और पांचवें दिन वह पूरा कंट्रोल करते थे और ऐसे आदमी बनकर निकलते थे जो लगातार दबाव बनाता है। उनके पास स्वभाव और बुद्धि के साथ ऐसा कौशल था जो कम ही देखने को मिलता है।यहां तक कि सफ़ेद गेंद क्रिकेट में भी वॉर्नी किंग थे। वह चुनौती का लुत्फ़ लेते थे क्योंकि बल्लेबाज़ उन पर प्रहार करने के लिए आते थे और यह उनके लिए आसान बना देता था। वह कभी बैकफुट पर नहीं गए। वह जानते थे कि वह तब विकेट ले सकते हैं जब टीम को ज़रूरत है, 1999 विश्व कप सेमीफ़ाइनल इसका उदाहरण है। वह बड़े मैच पसंद करते थे।
उन्होंने अपने टी20 क्रिकेट की शुरुआत अपने करियर के अंतिम समय में की, तब वह अपने कौशल ही नहीं बल्कि दिमाग से भी विकेट ले रहे थे। यह उनके लिए कहीं बेहतर और आनंददायक चुनौती रही होगी क्योंकि वह आपसे बात करेंगे और आपको मैदान पर ट्रोल करेंगे। आपने उन्हें सुना या नहीं, वह बल्लेबाज़ को फंसाने के लिए एक माहौल बनाने की कोशिश कर रहे थे।मेरे लिए उनके कौशल से ज़्यादा मुझे वह एक इंसान के तौर पर अहम हैं। वह एक एंटरटेनर थे। उन्होंने हमें सिखाया कि जैसे हो वैसे रहो। हां, उनको टारगेट किया गया (टैबलोयड मीडिया), लेकिन वह बदलना नहीं चाहते थे, वह मैदान के अंदर और बाहर जिंदगी का लुत्फ़ लेते थे और ऐसे ही थे वह। मुझे नहीं लगता कि आप मैदान पर शेन वॉर्न द एंटरटेनर को देख पाते अगर वह मैदान के बाहर या जिस तरह के वह इंसान है उसका बाहर लुत्फ़ नहीं ले पाते।
अगर कोई तस्वीर मेरे साथ हमेशा रहेगी तो वह पिछले साल द हंड्रेड की है, जहां वह लंदन स्प्रिट के प्रमुख कोच थे। वह केवल अपनी ही टीम नहीं, बल्कि अन्य टीमों के स्पिनरों की भी मदद कर रहे थे। उन्हें दिल से क्रिकेट पसंद था। उन्होंने सकारात्मक रूप से लगातार क्रिकेट को बहुत कुछ दिया। मैदान पर रहते हुए भी और संन्यास के बाद भी। यही वह सब है जिसकी वजह से हमें वॉर्नी को याद रखना चाहिए।

'उन्हें नेतृत्वकर्ता बनने के लिए कप्तान बनने की ज़रूरत नहीं थी' - यूनिस ख़ान

शेन वॉर्न की बात यह थी कि उन्हें पता था कि वह मैच विनर हैं। वह उस तरह का चरित्र थे कि उन्हें एक नेतृत्वकर्ता बनने के लिए कप्तान होने की आवश्यकता नहीं थी। उन्होंने उस पहले आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स को ख़िताब दिलाया था और जब मैं वहां रहा तो मैंने उनकी कप्तानी को क़रीब से देखा।
एक गेंदबाज़ के रूप में उनके पास ऐसी क़ाबिलित थी कि जां कुछ नहीं हो रहा, वहां से भी वह कुछ करा लेते थे, क्योंकि तब वह बल्लेबाज़ के शरीर से खेलते थे। वह सिर्फ़ एक योजना या शैली पर टिके नहीं रहते थे, वह हमेशा चीज़ें बनाते थे, गेंद से अलग चीज़ें करते थे। उनकी गेंदबाज़ी के बारे में बात करना सूरज को चिराग दिखाने जैसा है। सभी जानते हैं कि वह कितने महान थे।
अगर किसी चीज़ ने मदद की तो यह थी कि मैंने लेगी के रूप में शुरुआत की तो मैं मानसिकता को समझता हूं, लेकिन वह इतने महान गेंदबाज़ थे कि उन्हें खेलना आसान नहीं लगता था और जब भी मैंने रन बनाए मैं उनके ख़िलाफ़ खुलकर नहीं खेल पाता था।
मुझे कोलंबो टेस्ट (2002-03 में) याद है, मुझे पता था कि वह अलग-अलग एंगल्स से मुझे गेंद करेंगे। अभ्यास के दौरान, जब भी मुझे मौक़ा मिलता मैं पिच पर अलग-अलग क्षेत्रों में एक ख़ुरदुरा पैच बनाता और फिर दानिश कनेरिया को वहां गेंदबाज़ी करने के लिए कहता। जब भी मेरे पास खाली समय होता, मैं तेज़ गेंदबाज़ी के बजाय केवल लेग स्पिन के ख़िलाफ़ अभ्यास करता। वह उनकी उपस्थिति थी जो आपको उस तरह से अभ्यास करना पड़ता था। राउंड द विकेट से, ओवर से, रफ आउट से, कहीं और से। मुझे पता था कि इन सतहों पर वॉर्न हमें संघर्ष कराएंगे।
वॉर्न को स्वीप करना, या लाइन के पार खेलना कभी आसान नहीं था। उनका फ्लोटर (वह जो सीधा चला गया) मैं विश्वास के साथ कह सकता हूं कि वह अब तक के सर्वश्रेष्ठ में से एक था। उन्होंने इसके साथ शीर्ष बल्लेबाज़ों के करियर का अंत किया। जब आप किसी स्पिनर को स्वीप करते हैं तो वह नाराज़ हो जाता है। एक बल्लेबाज़ के रूप में, जब आप स्वीप खेलना चाहते हैं, अगर आपने गेंद की लाइन को ऑफ़ के बाहर देखा, तो आप जानते थे कि ठीक है मैं इसे स्वीप कर सकता हूं। जब वह फिर से एक पारंपरिक लाइन पर आया तो मैं वापस आ सकता था, लेकिन एक शीर्ष गेंदबाज़ के रूप में आपके पास योजनाएं होनी चाहिए। आपको हमेशा चतुराई से सोचना होगा और वॉर्न जहां भी गए, उनके पास हमेशा योजनाएं थीं और उससे आगे और भी योजनाएं थीं।
बेशक, उनके जैसा प्रभावशाली होने के लिए यह केवल कौशल नहीं है, बल्कि आपको पूरा पैकेज होना चाहिए। और वॉर्न में वह बात थी, वह न केवल एक गेंदबाज़ या एक नेतृत्वकर्ता थे बल्कि वह पूरा पैकेज थे। वह उस तरह के आदमी थे, जब भी आपको लगता था कि आपने उनकी गेंदों पर कुछ काम किया है, तो आपको एहसास होता था कि एक और पेज था या फिर दूसरा, और फिर तीसरा। वह एक किताब थे, जिसके कई पन्ने थे और जब भी आप किसी पन्ने को पलटते थे, तो उस पन्ने पर जो कुछ देखते थे, उससे आप हैरान रह जाते थे।
उनके ख़िलाफ़ खेलना सम्मान की बात थी और हम जानते थे कि जो कुछ भी हमने किया हमने उनके अनुभव से बहुत कुछ सीखा। पूरा पाकिस्तान, पूरी दुनिया शेन वॉन की प्रशंसक थी और पूरी दुनिया के क्रिकेट प्रशंसक उनको बहुत याद करेंगे। - उमर फ़ारूक़ को जैसा बताया

'जब आप बल्लेबाज़ी करते थे तो वह आपकी तक़नीक को खोलते थे' - गैरी कर्स्टन

वॉर्नी को खेलते वक़्त जिस चीज़ ने मुझे उनके सामने रन बनाने में मुश्किल खड़ी की, वह उनकी निरंतरता थी। वह अच्छी गति, अच्छी जगह पर गेंदबाज़ी करने के क़ाबिल थे, क्योंकि वह वास्तव में बहुत मज़बूत इंसान थे। उनके ख़िलाफ़ कदमों का इस्तेमाल करना मुश्किल हो जाता था। उनके बाद कमाल की काबिलियत थी, ख़ासतौर पर तब जब मैच एक अच्छी लय में चल रहा हो या दूसरी ओर झुका हो, तो वह दबाव में और भी अच्छा करते थे।
यही शायद वह चीज़ थी जो उन्हें दूसरे गेंदबाज़ों से अलग बनाती थी। इसीलिए मैं कहा कि वह सबसे मुश्किल प्रतियो​गी थे जिनके ख़िलाफ़ मैं खेला। वह तब भी बेहतर करते थे जब आप उनके साथ प्रतियोगिता में रहते थे और यह समझते और महसूस कर सकते थे कि यह हो रहा है, कि वह हमेशा आपको आउट करने के तरीक़े ढूंढ रहे हैं। यह लगभग ऐसा था कि जब आप वहां पर बल्लेबाज़ी कर रहे थे तो वह आपकी तक़नीक को खोल रहे थे। वह आपको क्रीज़ पर से हटाने के लिए अलग अलग तरीक़े ढूंढा करते थे।
वह मैच में कभी बनने देना नहीं चाहते थे। वह हमेशा बल्लेबाज़ों को आउट करने के लिए जुदा तरीक़े ढूंढा करते थे। यह उनकी असली मज़बूती थी। वह उससे नफ़रत करते थे जब मैच हाथ से निकल रहा होता था या कोई व्यक्तिगत बल्लेबाज़ मैच को बना रहा होता था और उन्हें बल्लेबाज़ के ग़लती करने देने का इंतज़ार करना होता था। यह उनके डीएनए में नहीं था। आपको हमेशा महसूस होता था जब आप उनके ख़िलाफ़ बल्लेबाज़ी करते थे कि आप आगे नहीं हैं ना ही आप उनके ख़िलाफ़ स्थिर हैं। ऐसे कई लम्हे थे जब मैंने महसूस किया कि मै। अच्छा कर रहा हूं लेकिन वह हमेशा मज़बूती के साथ वापसी करते थे।
प्राकृतिक रूप से यह पिच पर भी निर्भर करता है। जब विकेट तीसरी और चौथी पारी में बिल्कुल ख़राब हो जाता था, तब उनकी कला अलग स्तर पर पहुंच जाती थी क्योंकि उन्हें पता था कि वह इन परिस्थतियों का अपनी शुद्धता से फ़ायदा उठा सकते हैं और ख़ासतौर पर उन्हें डिफेंस करना बहुत मुश्किल हो जाता था। और उनको अस्थिर करने के लिए जो बल्लेबाज़ आक्रामक रूख अपनाते थे, उसको भी वह पसंद किया करते थे, क्योंकि इससे उन्हें थोड़ा और अच्छा करने का मौक़ा मिल जाता था। तो यह उनके ख़िलाफ़ डिफेंस करने और स्कोर करने के बीच में संतुलन बनाने को लेकर था, लेकिन वॉर्नी हमेशा प्रतियोगिता में रहते थे और आपको आउट करने को देखते थे।

नागराज गोलापुड़ी ESPNcricinfo न्‍यूज एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी में सीनियर सब एडिटर निखिल शर्मा और स्‍थानीय भाषा प्रमुख देबायन सेन ने किया है।