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कैसे रोहित की रणनीति के सामने विफल हुआ बैज़बॉल

स्टोक्स के मुक़ाबले रोहित को बेहतर परिणाम मिले हैं

स्टोक्स के पास भी ऐसे अवसर थे जब वह रोहित जैसे ही साहसिक फ़ैसले ले सकते थे  •  AFP/Getty Images

स्टोक्स के पास भी ऐसे अवसर थे जब वह रोहित जैसे ही साहसिक फ़ैसले ले सकते थे  •  AFP/Getty Images

कुछ विकल्पों की तरफ़ आपको ना चाहकर भी जाना होता है। जब भारत 0-1 से पीछे था तब कुलदीप यादव और वॉशिंगटन सुंदर की बहस काफ़ी प्रासंगिक नज़र आ रही थी। जबकि विशाखापटनम टेस्ट की ओर जाते जाते रविंद्र जाडेजा और केएल राहुल को टेस्ट टीम से बाहर होना पड़ा।
भारत, राहुल की जगह एक डेब्यू करने वाले खिलाड़ी को मौक़ा देने जा रहा था। लेकिन भला भारतीय टीम के पास जाडेजा का क्या विकल्प था? वह भले ही भारतीय टीम के नियमित स्पिनर नहीं थे लेकिन हैदराबाद टेस्ट में नंबर छह पर बल्लेबाज़ी करते हुए वह पहली पारी में भारत की ओर से टॉप स्कोरर भी थे। जाडेजा की जगह क्या भारत कुलदीप को प्लेइंग इलेवन में शामिल करने का दांव खेलता जो टेस्ट में अब तक ख़ुद को साबित नहीं कर पाए थे या सुंदर पर दांव खेलते? सुंदर नंबर छह पर बल्लेबाज़ी तो कर सकते थे लेकिन बतौर गेंदबाज़ जाडेजा की जगह भरना उनके लिए उतना आसान नहीं था।
लेकिन जब तीसरे टेस्ट में जडेजा की वापसी हुई तब एक बार फिर यह सवाल खड़ा हुआ कि उनकी जगह सुनिश्चित करने के लिए बाहर कौन जाएगा? क्या कुलदीप को बाहर बैठना होगा या फिर अक्षर को? अक्षर के गेंदबाज़ी आंकड़े अच्छे थे और बल्ले से वह पचास की अधिक की औसत से रन बना रहे थे। इतना ही नहीं, भारत कम से कम दो मैचों में एक कम तेज़ गेंदबाज़ खिलाकर एक अतिरिक्त स्पिनर के साथ भी उतर सकता था लेकिन भारतीय टीम ने ऐसा फ़ैसला लेने की कोई मंशा नहीं जताई।
राजकोट टेस्ट की तरफ़ चलते हैं। दूसरे दिन रोहित ने रविचंद्रन अश्विन से पहले कुलदीप को आक्रमण पर लगाया। बेन डकेट सामने थे और तेज़ी से रन बटोरे जा रहे थे। रोहित के इस फ़ैसले को देखकर कोई सामान्य दर्शक भी बता सकता था कि बाएं हाथ के बल्लेबाज़ और ख़ासकर डकेट के विरुद्ध अश्विन का रिकार्ड कितना शानदार है। हालांकि तीसरे दिन कुलदीप के 12 ओवर के स्पेल ने रोहित की इस सोच को सही साबित कर दिखाया।
रोहित ने इस सीरीज़ में कई दफा आक्रामक कप्तानी का भी परिचय दिया है। रांची टेस्ट की दूसरी पारी में ज़ैक क्रॉली का विकेट इसी की मिसाल है। कुलदीप द्वारा क्रॉली के लिए बिना कवर पर कोई फ़ील्डर लिए गेंदबाज़ी की गई। क्रॉली बैकफ़ुट पर जाकर पंच करने गए लेकिन अंदर आती गेंद पर वह बोल्ड हो गए। अश्विन और शोएब बशीर ने भी कुलदीप की तरह दाएं हाथ के बल्लेबाज़ के लिए लेग साइड में अधिक फ़ील्डर के साथ गेंदबाज़ी की लेकिन इन दोनों के खाते में कोई ऐसा विकेट नहीं जुड़ा जिसे देखकर यह प्रतीत हुआ हो कि यह एक ख़ास तरह की फ़ील्ड सजाने के कारण मिला है।
कभी कभी कोई निर्णय सही साबित होने के बाद ही अच्छा लगता है। कप्तानी भी तभी अच्छी लगती है जब वह अच्छे परिणाम दे रही होती है। हालांकि यह निर्णय अमूमन बाद में सुनाई जाने वाली कहानियों का हिस्सा नहीं होते। एक चीज़ जो स्पष्ट है वो ये है कि ऐसा नहीं है कि इस तरह के निर्णय लेने की क्षमता सिर्फ रोहित के ही पास थी। स्टोक्स के सामने भी क्रिकेट के इस सबसे लंबे प्रारूप ने कई ऐसे अवसर दिए थे जब स्टोक्स रोहित की तरह ही चालाकी भरे निर्णय ले सकते थे। स्टोक्स भी दुविधा की स्थिति पनपने पर रोहित जैसा ही साहसिक फ़ैसला ले सकते थे जोकि आगे चलकर सही साबित होने वाला था।
भारत ने ना सिर्फ़ इस सीरीज़ में इंग्लैंड से बेहतर क्रिकेट खेली है बल्कि उसने कई आक्रामक निर्णय लिए हैं। भारत हर बार पांच गेंदबाज़ी विकल्प के साथ उतरा वह भी तब जब उसके बाद बल्लेबाज़ी ऑलराउंडर का विकल्प मौजूद था। जबकि इंग्लैंड ने पांच गेंदबाज़ी विकल्प के साथ ना जाकर जो रूट के कंधों पर अधिक भार डाल दिया।
अब आप इसे जो भी नाम दें। हिटबॉल, जैमी बॉल या या कुछ भी। इतना तो तय है कि रोहित की रणनीति ने बैज़बॉल को चारों खाने चित्त कर दिया है।

कार्तिक कृष्णास्वामी ESPNcricinfo के सहायक एडिटर हैं