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लोगों को लगता है कि तकनीक अंपायरिंग की सारी खामियों को दूर कर देगी : साइमन टॉफ़ल

आईसीसी के पूर्व अंपायर ने बताया कि क्यों हर फ़ैसले को तीसरे अंपायर के पास नहीं भेजा जा सकता है

Getty Images

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अंपायरिंग के दौरान तकनीक की कितनी भूमिका हो और किस तरह की भूमिका हो? इस विषय पर आईसीसी के पूर्व एलीट पैनल के अंपायर साइमन टॉफ़ल ने 2012 में सेवानिवृत्त होने के बाद से कई बार अपने विचार प्रकट किए हैं। टॉफ़ल का तर्क है कि तकनीक का इस्तेमाल अंपायरों के कौशल को कम करने के लिए नहीं किया जा सकता है।
इस साक्षात्कार में टॉफ़ल ने डीआरएस का उपयोग करके वाइड और हाइट नो-बॉल को रिव्यू करने के ख़िलाफ़ अपनी बात रखी है। साथ ही उन्होंने बेल्स के संदर्भ में भी कई तर्कपूर्ण बातें रखी हैं।
टॉफ़ल ने इस बारे में भी बात की है कि क्रिकेट को विशेषज्ञ टीवी अंपायरों की आवश्यकता क्यों है। क्या क्रिकेट को न्यूट्रल (तटस्थ) अंपायरों की आवश्यकता है? इसके अलावा उन्होंने इस बात पर भी ज़ोर दिया है कि खिलाड़ियों को खेल के नियमों और खेल की परिस्थितियों के बारे में शिक्षित करने की आवश्यकता क्यों है।
क्रिकेट के नए नियमों के अनुसार नॉन स्ट्राइकर एंड पर खड़े बल्लेबाज़ अगर गेंद फेंकने से पहले क्रीज़ से बाहर निकल जाते हैं तो उन्हें रन आउट किया जा सकता है। इस पर आपकी क्या राय है? इसके अलावा टी20 क्रिकेट में वाइड के फ़ैसले को रिव्यू करने को लेकर आपका क्या मत है?
एमसीसी की सब कमिटी में नियमों को बदलने या बनाने के लिए जो भी मीटिंग होती है, मैं उसका हिस्सा रहा हूं। इसी कारणवश वाइड को लेकर जो भी नियम बने हैं या बन रहे हैं, उसको लेकर मुझे अच्छी-ख़ासी जानकारी है। हमने प्रयास किया है कि क्रिकेट में गेंदबाज़ों को भी थोड़ा लाभ मिले। अगर गेंदबाज़ जब अपने रन अप पर हो और बल्लेबाज़ अपनr क्रीज़ में शफ़ल कर रहा है तो उसी के हिसाब से वाइड की परिभाषा और मापदंड को तय किया जाए। इससे अंपायरों को भी अपने फ़ैसले लेने में मदद मिले।
हालांकि एक बात यह है कि तकनीक और अंपायरिंग के बीच जो समनव्य है, उसको लेकर मेरी सोच में अभी भी कोई बदलाव नहीं आया है। मैं निर्णय लेने की कला को विज्ञान में बदलने और सटीकता की तलाश करने को लेकर जो प्रयास हो रहे हैं, उससे काफ़ी सचेत हूं।
लोगों को ऐसा लगता है कि मैदान पर खड़े अंपायर से जो भी त्रुटियां होती है, उसे तकनीक से कम किया जा सकता है। हालांकि मैं यह भी देखता हूं कि अंपायर के कौशल और फै़सला लेने की क्षमता को तकनीक के द्वारा कम किया जा रहा है।
किसी अंपायर के फै़सले लेने की क्षमता का जो विकास होता है, वह एक खिलाड़ी के विकास के जैसा ही है। जिस तरीक़े से खिलाड़ी अपने कोशल का विकास करते हुए कुछ ग़लतियां करते हैं, उसी प्रकार से अंपायर भी अपने करियर में आगे बढ़ते हुए कुछ ग़लतियां करते हैं।
मान लीजिए कि वाइड के फ़ैसले को हम थर्ड अंपायर के पास लेकर जाना चाहते हैं। हालांकि अगर फ़ैसला तीसरे अंपायर के पास जाता भी है तो नज़दीकी फ़ैसलों में तर्क की गुंजाइश रहती है।
वाइड को लेकर फ़ैसला लेना कभी भी आसान काम नहीं रहा है। इसको लेकर कभी भी क्रिकेट के नियमावली और खेल की परिस्थितियों में एक निश्चित परिभाषा नहीं रही है।
क्या आप थर्ड अंपायर के रूप में लेग स्टंप के बाहर की गेंद को वाइड करार दिए जाने के फ़ैसले को चिन्हित करने या उसे पहचानने में सफल हो सकते हैं? किसी वाइड गेंद को रिव्यू करने के लिए थर्ड अंपायर के जाना निश्चित रूप से एक दिलचस्प प्रस्ताव है।
बाएं हाथ के बल्लेबाज़ के लिए अगर कोई दाएं हाथ का तेज़ गेंदबाज़ बाहर निकलने वाली गेंद फेंकता है, उस गेंद पर वाइड का फ़ैसला लेना काफ़ी कठिन है। साथ ही फ़ील्ड अंपायर के फ़ैसले को ग़लत ठहराना भी काफ़ी कठिन होगा। क्या आप इस बात को परिभाषित कर सकते हैं कि एक वाइड के फ़ैसले को बदलने के लिए तीसरे अंपायर के पास निर्णायक सबूत क्या होंगे? ख़ासकर लेग साइड, ऑफ़ साइड या हाइट के लिए वाइड देने के लिए।
इसके अलावा आप एक वाइड की लाइन को कैसे खींचेंगे? ऐसा हो सकता है कि उस गेंद पर बल्लेबाज़ ने शॉट खेला है? क्या बल्लेबाज़ ने उस गेंद तक पहुंचने की कोशिश की थी? अब आप जब इस फै़सले को तीसरे अंपायर के पास भेज रहे हैं तो आप उसपर इन सभी बातों को परिभाषित करने का दबाव डाल रहे हैं। अगर गेंद बल्ले को या पैड को छूकर गई है तो यह निश्चित रूप से एक ग़लती है। हालांकि मुझे चिंता यह है कि यह विवाद कहां ख़त्म होगा। क्या फ़ील्ड अंपायर के हर एक फ़ैसले को रिव्यू प्रणाली के अंदर लाया जाएगा?"
मैं कभी भी नहीं चाहता कि हमारा खेल पूरी तरह से तकनीक पर निर्भर हो जाए।
तीसरे अंपायर को सीधे या डीआरएस के माध्यम से ऐसे फ़ैसलों में शामिल करने का मतलब होगा कि मैच धीमा हो जाएगा।
इन सभी समीक्षाओं में कितना समय लगेगा? क्या आप उसके लिए तैयार हैं? मुझे पिछले साल की एक बात याद है, दिवंगत शेन वॉर्न जैसे कुछ कॉमेंटेटर शिक़ायत कर रहे थे कि एक वनडे मैच निर्धारित समय से 30 मिनट बाद समाप्त हुआ।
इस मामले में हाइट नो-बॉल और बाउंसर के लिए आप क्या कहना चाहेंगे?
कई चीज़ों की परिभाषा आंशिक रूप से राय आधारित है। उदाहरण के तौर पर जब एक बल्लेबाज़ किसी शॉर्ट गेंद को छोड़ता है और गेंद उसके सिर के ऊपर से जाती है। उस समय पर फ़ील्ड अंपायर के कुछ कठिन फ़ैसले लेने पड़ते हैं। जैसे कि बल्लेबाज़ के स्टांस के हिसाब से उसका सिर किस ऊंचाई पर था। अगर उसके स्टांस के हिसाब से फ़ैसला लेना है तो क्या उसे वाइड दिया जाए या बोलर को कह दिया जाए कि यह आपका पहला बाउंसर था।
अगर यह फै़सला तीसरे अंपायर के पास जाता है तो इस तरीक़े के फ़ैसले को बदलने के लिए आप किस तरह का मापदंड तैयार करेंगे। तीसरे अंपायर के पास क्या सबूत होंगे? क्या हम यह तय करेंगे कि बल्लेबाज़ कहां और किस तरह से खड़ा होगा? क्या बल्लेबाज़ के लिए एक निश्चित स्थान होगा, जिससे लेग साइड और ऑफ़ साइड के साथ उसकी ऊंचाई भी तय हो सके। क्या अलग-अलग बल्लेबाज़ के लिए अलग-अलग हाइट तय की जाएगी? या यह गेंद के हिसाब से तय किया जाएगा?
क्या हम इस खेल को इस तरह की जटिलता में धकेलना चाहते हैं? वाइड के फ़ैसले को बदलने के लिए हमें कई नियम और एक मज़बूत प्रणाली की आवश्यकता है। किसी भी थर्ड अंपायर के पास इस फ़ैसले को बदलने के लिए तर्कपूर्ण सबूत तो होने ही चाहिए।
इसके अलावा अगर आप हाइट नो बॉल की बात करते हैं तो हमारे पास अभी भी अंपायर्स कॉल का एक विकल्प है। अगर आप हाइट नो गेंद को चेक करने जाएंगे तो आपको बॉल ट्रैकिंग तकनीक का प्रयोग करना पड़ेगा। ऐसे में फिर से अंपायर्स कॉल का प्रयोग करना पड़े।
यही नहीं, इसके अलावा अगर हम बॉल ट्रेकिंग का प्रयोग करते हैं तो गेंदबाज़ी क्रीज़ का विशेष ध्यान रखना होगा। साथ ही उसे काफ़ी सटीकता के साथ तय करना होगा। आपको यह देखना होगा कि बल्लेबाज़ क्रीज़ के अंदर ना जाए और बाहर ना आए। वह किस पोज़िशन में खड़ा है, यह भी देखना होगा।
बेल्स के बारे में अगर बात की जाए तो यह काफ़ी समय से क्रिकेट में रही है। जब बेल्स गिरते हैं तो अंपायरों को अपने फ़ैसले लेने में मदद मिलती है। टी20 और वनडे क्रिकेट में बेल्स में एलईडी लाइट लगी रहती है। अगर गेंद विकेट पर लगे तो पता चल जाता है। ऐसे में यह फ़ैसला लिया जा सकता है कि एलईडी तकनीक से रन आउट, स्टंप, बोल्ड इत्यादि को चेक किया जा सकता है।
आप क्रिकेट के अलग-अलग प्रारूप में अलग-अलग नियमों को ला सकते हैं। ऐसा हो सकता है कि लोगों को यह कंफ्यूज़ भी कर दे।
प्रथम श्रेणी क्रिकेट के बारे में सोचिए। हां स्टंप्स और विकेट पर लाइट नहीं लगे होते हैं। कीपर गेंद को पकड़ता है और अपने ग्लव्स को विकेट से टच करवाता है। बेल्स हिलती हैं लेकिन वह गिरती नहीं। बल्लेबाज़ क्रीज़ के बाहर रहता है। उसके बाद कीपर कहता है कि मैंने बेल्स नहीं गिराए थे, फिर से गिरा देता हूं लेकिन इस दौरान बल्लेबाज़ क्रीज़ के अंदर आ जाता है। कीपर यह मांग कर सकता है कि मैंने पहले तो विकेट को टच किया था लेकिन उस बल्लेबाज़ को आउट क्यों नहीं दिया जा रहा है? यहां पर अंपायर के पास क्या उपाय होंगे? वह किस आधार पर फै़सला लेगा? बेल्स तो गिरी नहीं हैं, लेकिन कीपर ने विकेट को टच किया था। ऐसे में यह मामला अंपायर के लिए काफ़ी कठिन हो जाएगा। ऐसे में आपके पास इसका एक उपाय यह हो सकता है कि विकेट पर और बेल्स में लाइट लगा दिए जाएं। हालांकि इसके बाद भी आप क्रिकेट के लिए नई समस्याओं का एक पूरा सेट तैयार कर रहे हैं। इसके लिए आपको यह परिभाषित करना होगा कि किसी को आउट करार दिए जाने के लिए विकेट को कितना हिलाया जाए। अगर आप अकेले में इन सभी चीज़ों पर ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि खेल के लिए असंख्य विसंगतियां और असमानताएं पैदा हो रही हैं।
क्या टीवी अंपायर विशेषज्ञ होने चाहिए?
मैं 2014 से इसकी वकालत कर रहा हूं। यह इस खेल में सबसे कठिन भूमिका है। सिर्फ़ इसलिए कि मैदान पर अच्छा अंपायर होने का अर्थ यह नहीं है कि आप अच्छे तीसरे अंपायर बन सकते हैं। मैंने पहले भी यह कहा है कि तीसरे अंपायर के लिए संयम और संचार के रूप में दो सबसे बड़े कौशल की आवश्यकता होती है। बहुत सारे अंपायरों को यह नहीं आता है। एक ऑन-फ़ील्ड अंपायर, मैच रेफ़री, एक तकनीशियन और एक ब्रॉडकास्टर निदेशक के साथ स्पष्ट और संक्षिप्त होने के लिए प्रभावी ढंग से संवाद करने में सक्षम होना बेहद मुश्किल है।
तटस्थ अंपायर - क्या क्रिकेट को अब भी उनकी ज़रूरत है?
यह वाकई दिलचस्प सवाल है। कई वर्षों तक आईसीसी क्रिकेट समिति का हिस्सा रहने के बाद, मेरा हमेशा यह विचार रहा है कि अगर हम तटस्थता को हटा दें, तो इस खेल के लिए एक समस्या कम हो जाएगी। हमें आने वाले नए अंपायरों के लिए अवसर प्रदान करने होंगे और यह महत्वपूर्ण है। यदि आईसीसी के पास मूल्यांकन करने के लिए पर्याप्त तथ्य और नियम हैं और यदि डीआरएस उपलब्ध है तो आप संभवतः तटस्थता के आसपास के प्रतिबंधों को शिथिल कर सकते हैं।
क्या खिलाड़ियों और कोचों को खु़द अंपायरिंग के कानूनों के बारे में शिक्षित होने की ज़रूरत है?
मुझे लगता है कि केवल दो ऑस्ट्रेलियाई कप्तान ऐसे हुए हैं जो वास्तव में क्रिकेट के इतिहास में योग्य अंपायर रहे हैं - सर डॉन ब्रैडमैन और ब्रायन बूथ। खिलाड़ियों के विकास के लिए अंपायरिंग के नियमों को सीखना क्यो ज़रूरी है? इसके कई जवाब हैं : वे अधिकारी की भूमिका को समझते हैं, वे इस बात की सराहना करते हैं कि यह कितना मुश्किल है, उन्हें खेल के नियमों या कानूनों को समझने और अपने लाभ के लिए इसका उपयोग करने में मदद मिलती है। इस क्षेत्र में नेतृत्व, मार्गदर्शन और दिशा दिखाना वास्तव में क्रिकेट बोर्डों पर निर्भर करता है।

नागराज गोलापुडी ESPNcricinfo के न्यूज़ एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर राजन राज ने किया है।