देहरादून में बुधवार की रात जब यह पत्रकार और उनके साथी पहुंचे तो बहुत तेज़ बारिश हो रही थी। मन में एक ही सवाल था कि अगर गुरुवार को भी बारिश हुई तो स्टोरी शूट कैसे कर पाएंगे। सुबह धूप खिली देखकर राहत की सांस ली और हम चल दिए मसूरी रोड पर सिनौला गांव में भारतीय महिला क्रिकेटर स्नेह राणा के घर। घर पहुंचने ही वाले थे कि इस बीच बीसीसीआई ने मार्च में न्यूज़ीलैंड में होने वाले विश्व कप के लिए टीम की घोषणा कर दी। एक छोटी सी गली और उसमें सभी घर स्नेह के परिवार के सदस्यों के। नीचे ही स्नेह के जीजा जी भक्त दर्शन नेगी ने हमारा स्वागत किया और छूटते ही कहा, "अरे आपको क्या पहले से ही पता था कि विश्व कप में स्नेह का चयन हो जाएगा? आइए ऊपर चलते हैं।"
घर में परिवार के हर सदस्य के चेहरे में गर्व की मुस्कान, आंखों में एक चमक बता रही थी यह पल उनके लिए कितना ख़ास है। घर में खेल से भरपूर माहौल, स्नेह का छोटा सा भांजा अभिनय नेगी प्लास्टिक के बल्ले से लंबे-लंबे शॉट लगाता है। मौसी की इंडियन कैप पहनकर अभी से मौसी की तरह टीवी पर आकर लंबे छक्के लगाने के सपने देखता है। तो परिवार में ही एक छोटा सा भतीजा हाथ में छोटी सी डंडी को जैवलिन समझकर बार बार उसे थ्रो कर रहा है - शायद वह नीरज चोपड़ा बनना चाहता था।
घर का ड्रॉइंग रूम स्नेह की उपलब्धियों की दास्तान ख़ुद ब ख़ुद बयां कर रहा था, जहां सैंकड़ों ट्रॉफ़ी और तस्वीरें सजीं थीं। बातचीत का माहौल शुरू हुआ, हमने स्नेह को बधाई दी। चयन होने के इतने क़रीब हम पहुंचे थे कि स्नेह को तो अपनी साथी जेमिमाह रोड्रिग्स के टीम में नहीं होने का पता ही नहीं चला था। जीजा जी और स्नेह यही सोचते रह गए कि कोई तो है जिसे टीम में नहीं चुना गया।
शूटिंग का दौर शुरू हुआ, कुछ शॉट घर पर काम करने के बनाने थे, तो स्नेह ने अपना टैलेंट दिखाया। प्लास्टिक की बोतलों का कैसे गाडर्निंग में इस्तेमाल होता है, कोई भी स्नेह से आसानी से सीख सकता है। स्नेह की मम्मी विमला राणा का अभी घुटने का ऑपरेशन हुआ है, वह ज़्यादा चल नहीं सकतीं थीं। स्नेह ने कहा कि मम्मी ज़्यादा बोल नहीं पाएंगी कैमरे के आगे। आप एक दो ही सवाल पूछना। लेकिन कहते हैं ना कि बेटी के संघर्ष और सफलता की कहानी अपनी आंखों से देखने वाली मां के ज़ज्बात ख़ुद ही बाहर आ जाते हैं। ऐसा ही हुआ, जिस समय वह संघर्ष बता रही थी तो बड़ी गहराई से उन मुश्किल पलों को याद कर रही थी। सफलता बता रही थी तो बिल्कुल ऐसे जैसे एक मां अपने बच्चों पर गर्व करती हुई बताती हैं। दूसरी ओर बहन रूचि नेगी, जिसके साथ स्नेह ने बचपन में गली क्रिकेट खेला, वह टीवी पर अपनी बहन को बड़े बड़े छक्के लगाते देखने का अहसास जब बता रही थी, तो उनकी आंखें नम थीं।
इसके बाद घर से हम निकले स्नेह के साथ उस जगह जहां पर उन्होंने अपने खेल को तराशा। शूटिंग का प्रोग्राम तो पहले से ही था, लेकिन टीम में चयन होने से वहां पर जश्न का माहौल था। 12 किमी दूर एसजीआरआर पब्लिक स्कूल अपनी बेटी का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था। लाइन में खड़े एकेडमी के बच्चें तालियां बजाकर स्नेह का स्वागत कर रहे थे। स्कूल की प्रिसिंपल ने सीख दी कि बेटा जितने बड़े बन जाओ अपनी जड़ों को कभी मत भूलना और हमेशा ज़मीन से जुड़े रहना।
मैदान को देखकर स्नेह कहां रुकने वाली थी। बल्ला उठाया और पिच पर पहुंच गई और फ़ील्डर हम भी बन गए। स्नेह बल्लेबाज़ी करती तो साथ खेले दोस्त को चिंता सताती कि मेरी गेंद से स्नेह चोटिल ना हो जाए, जल्द इस छोटे से सेशन को ख़त्म करने की इच्छा तैरती रही। इस बीच कोच नरेंद्र शाह ने जो भी कहा वह सिर झुकाकर, दोनों हाथ बांधकर बड़ी शालीनता के साथ सुनती रही। कोच और उनकी पत्नी किरण शाह भी उत्साहित थे, वह इस पल पर गर्व महसूस कर रहे थे। कोच भी जानते हैं कि भारतीय महिला घरेलू क्रिकेट का स्तर क्या था, जिस राज्य से वह थी उसकी तो टीम भी नहीं थी। दूसरे राज्य में खिलाकर आज टीम इंडिया तक पहुंचने में वाकई स्नेह के संघर्ष की छाप छोड़े पड़े हैं।
पूरे दिन का यह सफर हमारा भी ख़त्म होने को था और स्नेह को आने वाले टूर्नामेंट में बधाई देते हुए हम निकल गए, लेकिन मन में बस स्नेह का एक सवाल तैर रहा था। महिला क्रिकेट में मल्टी फ़ॉर्मेट सीरीज़ शुरू हो चुकी हैं, टेस्ट मैच खेले जा रहे हैं, लेकिन घरेलू क्रिकेट में कब महिलाओं का प्रथम श्रेणी क्रिकेट शुरू होगा?