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रोहित शर्मा की रणनीति भारतीय टीम को सफलता की एक नई डोर के साथ बांध रही है

रोहित ने 20 से भी कम टेस्ट मैचों में कप्तानी की है, लेकिन वह भारतीय टेस्ट टीम की शैली को एक नया आयाम दे रहे हैं

Rohit Sharma has his thinking cap on, India vs Bangladesh, 2nd Test, Kanpur, 4th day, September 30, 2024

रोहित शर्मा ने कानपुर में जिस रणनीति के साथ टीम का नेतृत्व किया, वह तारीफ़ योग्य है  •  AFP/Getty Images

क्रिकेट में शतक बनाना पवित्रता को हासिल करने के जैसा है। हर किसी को इसकी महत्ता के बारे में पता है। सचिन तेंदुलकर अपनी झोली में 99 शतक लेकर पूरी क्रिकेट दुनिया की यात्रा कर रहे थे, तब भी हर कोई उनके अगले शतक के बारे में बात कर रहा था। कितना अच्छा होता कि सचिन अपने उस अगले शतक के बारे में न सोचते लेकिन मामला यह था कि लोग उन्हें नाश्ता देने भी जाते थे तो सचिन से निगाहों ही निगाहों में यह पूछ लेते थे कि - सर आपके शतकों का शतक कब लगने वाला है?
शतक हमारे खेल (क्रिकेट) की सबसे अधिक पहचानी जाने वाली विशेषता है। इसका महत्व इतना ज़्यादा है कि जब दूसरे खेल भी हमारे साथ एक रिश्ता क़ायम करना चाहते हैं तो शतकों को कई कनेक्शन जोड़ने का प्रयास करते हैं। उदाहरण के लिए मैनचेस्टर सिटी का यह ट्वीट देखें। पिछले सात सालों में छह बार इंग्लिश प्रीमियर लीग का ख़िताब जीतने वाली मैनचेस्टर सिटी ने जब अपने सबसे बेहतरीन बॉक्स स्ट्राइकर में से एक अर्लिंग हालांड के 100 गोल पूरा करने का जश्न मनाया तो उन्होंने उस जश्न को क्रिकेट के शतक के साथ जोड़ दिया।
भारत ने हाल ही में एक ऐसा टेस्ट मैच जीता है, जिसने कई लोगों को चौंका दिया है। कानपुर में यशस्वी जायसवाल के पास मौक़ा था कि वह आसानी से भारत की तरफ़ से सबसे तेज़ टेस्ट शतक लगाएं। वह चाहते तो संयम के साथ सिंगल्स के साथ भी इस उपलब्धि को हासिल कर लेते। बांग्लादेश ने तो अपना फ़ील्ड भी फैला रखा था। हालांकि उन्होंने स्लिप और थर्डमैन के बीच मौजूद एक छोटी सी दरार को भेदने का फ़ैसला लेते हुए रैंप शॉट खेल दिया।
अब सवाल यह है कि यशस्वी ने यह फ़ैसला क्यों लिया? ऐसा भी हो सकता है कि उन्होंने जो फ़ैसला लिया, उसके लिए उनके पास ज़्यादा कारण न हों। हालांकि एक अलग नज़रिए से देखें तो भले ही यशस्वी के पास भले ही उस फ़ैसले के लिए ज़्यादा कारण नहीं थे लेकिन जो कारण था, वह बेहद स्पष्ट और सम्मोहक भी था।
आर अश्विन ने भारत की जीत के बाद कहा, "जब हम (ड्रेसिंग रूम) में एक छोटी सी मीटिंग के लिए एकत्र हुए थे, तो रोहित शर्मा ने कहा था कि हम पूरी आक्रमकता के साथ आगे बढ़ेंगे और मैच बनाने की कोशिश करेंगे। शायद 50 ओवरों में 400 रन ….."
एक बात तो तय था कि इस रणनीति के साथ भारत को पांच दिवसीय मैच जीतने का आइडिया मिल गया था। इसमें बहुत जोखिम था लेकिन यह सामूहिक प्रयास के बिना कभी सफल नहीं होता। हालांकि आक्रमकता के साथ खेलने हर बल्लेबाज़ के लिए उतना आसान भी नहीं था… ख़ास कर उन बल्लेबाज़ों के लिए, जिनका फ़ॉर्म हालिया समय में उतना भी कुछ ख़ास नहीं रहा है।
केएल राहुल इस सीरीज़ में 34.08 की औसत के साथ आए थे। उनके पास घरेलू मैदान पर केवल एक शतक है। शायद ऐसा इसलिए है, क्योंकि भारत पिछले कई सालों से स्पिन को मदद करने वाली पिचें बना रहा है। शायद उन्हें ग्रीन पार्क का मैदान पसंद आया होगा। पिच गेंदबाज़ों के लिए उतनी भी मददगार नहीं थी और पिच पर समय बिताना किसी भी बल्लेबाज़ के लिए एक जादूई चीज़ हैं।
अगर कोई ऐसा कप्तान होता, जिसे रिस्क लेना ज़्यादा पसंद नहीं है और जिसके पास उस तरह की मज़बूत मानसिकता वाले खिलाड़ी नहीं हैं तो वह आसानी से कानपुर टेस्ट में ड्रॉ के लिए जाता। भारत चाहता कि यहां पर उनके खिलाड़ियों को एक अच्छा बल्लेबाज़ी अभ्यास मिल जाए।
अश्विन ने कहा, "रोहित बल्लेबाज़ी करने आए और पहली ही गेंद पर सिक्सरमार दिया। जब एक कप्तान इस तरह से अपनी बातों पर अड़ा हो और उसकी मानसिकता इतनी साफ़ हो तो शायद ड्रेसिंग रूम में मौजूद खिलाड़ियों के पास कोई और विकल्प नहीं है। हमने सिर्फ़ तीन ओवरों में 50 रन बना लिए थे। इसके बाद तो हमारे पास वहां से पीछे देखने का विकल्प मौजूद ही नहीं था।"
राहुल ने बांग्लादेश के ख़िलाफ़ दूसरे टेस्ट में 43 गेंदों में 68 रन बनाए। पहली 10 गेंदों में उन्होंने दो चौके लगाए थे और 15वें गेंद से उन्होंने रिवर्स स्वीप मारना शुरू कर दिया।
भारत ने कई ऐसे कप्तान बनाए हैं जिन्होंने टीम के खेलने की शैली में बदलाव लाया है। मंसूर अली खान पटौदी ने भारतीय टीम को पराजय की भावना से बाहर निकाला। कपिल देव ने उन्हें पहला विश्व ख़िताब दिलाया। एमएस धोनी ने भी विश्व कप के एक लंबे इतेज़ार को ख़त्म किया! सौरव गांगुली ने खिलाड़ियों को आक्रामक रवैया अपनाना सिखाया। राहुल द्रविड़ ने वनडे में रन चेज़ करने को लेकर भारतीय टीम की छवि में बदलाव किया। अनिल कुंबले ने ग़लत को ग़लत कहना सिखाया। विराट कोहली ने तेज़ गेंदबाज़ी क्रांति की शुरुआत की।
हालांकि रोहित शायद उन सभी से आगे निकल रहे हैं क्योंकि वह भारतीय क्रिकेट के मूल सिद्धांतों में एक नया बदलाव लाने का प्रयास कर रहे हैं।
बल्लेबाज़ी करने का मतलब है बड़ा स्कोर बनाना। अगर आप शून्य पर आउट हो जाते हैं, तो शायद आपको माफ़ किया जा सकता है, लेकिन अगर आप अच्छी शुरुआत करते हैं और फिर उसे बर्बाद कर देते हैं, तो आपने ग़लती कर दी है। रोहित भारत के उस स्थान से आते हैं जहां खिलाड़ियों ने इस इस बात की गांठ बांध ली है। वह मुंबई के 'खड़ूस' हैं, जिसका मतलब है कि चाहे बारिश हो, सूखा हो या महामारी फैल जाए…अगर आपके हाथ में बल्ला है, तो आपकी ज़िम्मेदारी है कि आप आउट न हों। आपको उन बड़े-बड़े शतकों की ज़रूरत है जो विपक्षी टीम को पूरी तरह से तोड़ दें और उन्हें इस बात पर पछतावा हो कि वे आज सुबह उठे ही क्यों थे। 50 ओवर क्रिकेट में रोहित के तीन दोहरे शतक क्रिकेट की इस शैली और इसके दूरगामी परिणामों का प्रमाण हैं।
पर्थ में रोहित ने 171 रनों की पारी खेली थी। यह पारी एक ऐसे सीरीज़ के दौरान आई थी जब भारतीय खिलाड़ियों के बारे में यह सवाल उठाए जा रहे थे कि क्या वे जीत से ज़्यादा माइलस्टोन की परवाह करते हैं, क्योंकि उनके बल्लेबाज़ बार-बार अपनी पारी के दौरान धीमी बल्लेबाज़ करने लग रहे थे और इसका असर सीरीज़ के स्कोरलाइन पर पड़ा था। उस समय टीम अपने शीर्ष क्रम पर बहुत अधिक निर्भर थी, इसलिए उन्हें काफ़ी सतर्कता से खेलना पड़ता था। हालांकि समय, मेहनत, निवेश और अनुभव के साथ अब भारत पास एक ऐसी बल्लेबाज़ी लाइन-अप है जिसमें नीचे तक खतरनाक और आक्रामक खिलाड़ी हैं।
2023 विश्व कप में रोहित इसका प्रयोग करना थे, टीम की इस ताक़त वह हथियार बनाना चाहते थे। इसलिए एक ऐसा खिलाड़ी जो पहले 50 ओवर तक खेलने की योजना बनाता था, उसने घरेलू वर्ल्ड कप में एक बिल्कुल अलग अंदाज़ दिखाया। उन्होंने पहले गेंद से ही आक्रमण किया क्योंकि उन्हें लगा कि यही भारत के जीतने का सबसे अच्छा तरीक़ा है।
अश्विन ने कहा, "जब राहुल द्रविड़ टीम में थे, तो वह कहा करते थे कि आप जो रन बनाते हैं और जो विकेट लेते हैं, उसे याद नहीं रखेंगे, लेकिन आपने टीमें में जो स्मृतियां बनाई हैं, उन्हें आप ज़रूर याद रखेंगे।"
क्या ऐसी बातें आज भी लागू होती हैं? ख़ासकर 2024 के युग में, जहां खिलाड़ी सिर्फ़ खिलाड़ी नहीं बल्कि ब्रांड भी हैं। उनके पास अपने आप को आगे रखने के लिए कई कारण हैं। उनके पास ख़ुद को महत्व देने के लिए और रिस्क कम लेने के लिए कई वजहें हैं। इससे उनके सफलती की कहानी को सुरक्षा भी मिलती है। ये बिल्कुल भी बेबुनियाद नहीं होता, अगर वो कप्तान के तेज़ी से रन बनाने वाली रणनीति पर सवाल उठाते, क्योंकि उसमें काफ़ी जोखिम था। एक तरफ़ जहां सोशल मीडिया के यूजर खिलाड़ियों को फर्श से अर्श तक का सफर कराते हैं, वही इस जोखिम वाली रणनीति के कारण आलोचना भी कर सकते हैं।
ग्रीनपार्क में जो हुआ, वैसा ऑस्ट्रेलिया में नहीं हो सकता है। ऑस्ट्रेलिया में भारत प्रतिओवर नौ रन बनाने की कल्पना भी नहीं कर सकता। हालांकि रोहित अपने खिलाड़ियों को उनकी कप्तानी पर भरोसा करने के लिए ज़रूर मना सकते हैं, ताकि टीम को उनके हिसाब से परिणाम के बारे में सोचने का मौक़ा मिले। यहीं कहीं से भी कोई छोटी चीज़ नहीं है और यही रोहित के कप्तनी का हॉलमार्क है। रोहित ने कोहली को बताया कि T20 में उनके विकेट का कितना महत्व है। उन्होंने जायसवाल पर भरोसा जताया। सरफ़राज़ ख़ान जब पहली बार टीम में आए तो रोहित ने अभ्यास के दौरान एक पूरा नेट सेशन उनके साथ बिताया। एक तरह से देखें तो रोहित ने भारतीय टीम एक अलग ही डोर से बांधने का प्रयास किया है। साथ ही मौजूदा और आने वाले खिलाड़ियों को जीत के महत्व के बारे में बताया है।
कानपुर में रोहित के नेतृत्व में भारतीय टीम ने जिस तरह की शैली अपनाई, उसे समझने में ही बांग्लादेश को दो-तीन ओवर लग गए। विपक्षी टीम पूरी तरह से चकित थी कि आख़िर हो क्या रहा है। इसके बाद भारतीय टीम 95 रनों के लक्ष्य को जिस मानसिकता के साथ चेज़ करने उतरी, वह भी एक अलग ही माइंडसेट था। उस दौरान भी जायसवाल ने काफ़ी तेज़ी से अपना अर्धशतक पूरा किया।
अश्विन ने कहा, "वह इस तरीक़े से खेलता है। पहले मैंने ऐसे खिलाड़ियों को देखा है जिन्होंने ऐसे मैच में पचास रन बनाए होते और नॉट आउट होकर वापस चले जाते। लेकिन उसने दर्शकों के लिए बड़ा शॉट खेलने का फै़सला किया। उसके दिमाग में बस एक ही चीज़ है - गेंद देखो और मारो।
शायद यह अगली पीढ़ी के खिलाड़ियों का तरीक़ा है और वे ऐसे ही होंगे। हमें ही उनके खेल के तरीके़ के साथ तालमेल बिठाने की ज़रूरत है और उन्हें ऐसा वातावरण देने की ज़रूरत है जहां वे पनप सकें और सफल हो सकें।" भारतीय टीम के सामने आगे और भी कड़ी चुनौतियां हैं - बॉर्डर-गावस्कर ट्रॉफ़ी नवंबर में शुरू हो रही है, फिर फ़रवरी में चैंपियंस ट्रॉफ़ी है और जुलाई में वर्ल्ड टेस्ट चैंपियनशिप का फ़ाइनल है। इनमें से हर एक में भारत को अलग-अलग तरीक़ों से गहराई तक जाकर खेलना होगा। वे हार भी सकते हैं। हालांकि एक बात साफ़ है वे बिना कोशिश किए नहीं रुकेंगे। अगर मैच में जीतने का कोई मौक़ा है - चाहे वह मौक़ा कितना भी छोटा या असंभव क्यों न हो - वे उसे पकड़ेंगे और उसके साथ दौड़ेंगे। रोहित उन्हें इससे कम पर संतुष्ट नहीं होने देंगे।