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घाट-घाट का पानी पी चुके रॉजर बिन्नी बीसीसीआई अध्यक्ष के रूप में नई पारी के लिए तैयार

"अगर उन्हें अपने आसपास किसी तरह की गड़बड़ दिखाई देती है तो आराम से उसका समाधान निकालने का प्रयास करेंगे"

Roger Binny attends an event, Mumbai, December 22, 2021

सौरव गांगुली की जगह रॉजर बिन्नी बीसीसीआई के अध्यक्ष बने हैं  •  Getty Images

मंगलवार को मुंबई में वार्षिक आम बैठक में रॉजर बिन्नी को आधिकारिक तौर पर बीसीसीआई के 36 वें अध्यक्ष के रूप में घोषित किया गया था। हालांकि उससे पहले ही बेंगलुरु में कर्नाटका राज्य क्रिकेट संघ (केएससीए) में इस बात को लेकर काफ़ी चर्चाएं हो रही थी, जहां वह पिछले तीन वर्षों से अध्यक्ष थे।
बीसीसीआई में सर्वोच्च पद के लिए अपने ही एक साथी के उदय का जश्न मनाने वालों में संजय देसाई भी शामिल थे, जो बिन्नी के क़रीबी दोस्त और खु़द एक अनुभवी केएससीए प्रशासक रहे हैं। देसाई और बिन्नी काफ़ी साल पहले कर्नाटका टीम के साथी थे, जिन्होंने 1977-78 में केरल के ख़िलाफ़ रणजी ट्रॉफ़ी में 451 रन की अटूट साझेदारी की थी। देसाई ने बिन्नी को कई भूमिकाओं (खिलाड़ी, कोच, चयनकर्ता और प्रशासक) में देखा है।
देसाई कहते हैं, "वह हमेशा नियम पुस्तिका (रूल बुक) का पालन करेंगे। वह लाइमलाइट पसंद नहीं करते हैं लेकिन उन्हें कभी भी उनके चुप रहने की आदत के कारण ग़लत नहीं माना जाना चाहिए। वह चुपचाप अपना काम करते हैं। अगर उन्हें अपने आसपास किसी तरह की गड़बड़ दिखाई देती है तो आराम से उसका समाधान निकालने का प्रयास करेंगे। एक व्यक्ति के रूप में खिलाड़ियों और सहयोगियों के साथ दो-तरफ़ा संचार स्थापित करने में वह कभी पीछे नहीं हटते।"
एक क्रिकेटर के रूप में अपनी सेवानिवृत्ति के बाद बिन्नी ने पहले कोचिंग में क़दम रखा। साल 2000 में उन्होंने श्रीलंका में अंडर-19 विश्व कप जीतने वाली भारतीय टीम को कोचिंग दी। दो साल बाद उन्होंने अंडर-16 के कोच के तौर पर काम किया और अंबाती रायुडू, रॉबिन उथप्पा और इरफान पठान जैसे युवा खिलाड़ियों के उभरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
अपने पहले कोचिंग कार्यकाल के बाद बिन्नी ने एशियाई क्रिकेट परिषद (एसीसी) के क्रिकेट विकास अधिकारी के रूप में दक्षिण-पूर्व एशिया और मध्य-पूर्व में काम किया।
बांग्लादेश के पूर्व कप्तान अमीनुल इस्लाम कहते हैं, "जब मैं 2007 में एसीसी में शामिल हुआ तो बिन्नी पहले से ही मेरे सीनियर थे लेकिन एक बार के लिए भी उन्होंने ऐसा प्रतीत नहीं होने दिया कि वह एक सीनियर थे। उनके स्वभाव में यह कभी नहीं था कि 'मैं रॉजर बिन्नी हूं, मैं विश्व कप विजेता हूं, मुझे पता है कि क्या करना है।' वह हमेशा सभी लोगों की राय को सुनते थे।"
अमीनुल ने आगे कहा, "उनकी चुनौती शुरू से ही प्रशासनिक रास्ते और कोचिंग मार्ग स्थापित करने की थी। इसके लिए कई देशों में नौकरशाही बाधाओं को पार करने के लिए बहुत सारे काम करना पड़ता है। आपको अत्यधिक धैर्य रखने की आवश्यकता है। रॉजर ने इन सभी चीज़ों को जैसे संभाला वह अनुकरणीय था।"
2000 में भारत की अंडर-19 विश्व कप विजेता टीम के उप-कप्तान और वर्तमान में बीसीसीआई मैच रेफ़री रीतिंदर सोढ़ी, बिन्नी की तारीफ़ करते हुए कहते हैं, ''वह एक चिल्ड-आउट कोच थे, आपने उन्हें कभी ग़ुस्सा या घबराते हुए नहीं देखा होगा। ऐसी परिस्थितियों में जहां कोई भी व्यक्ति अपना आपा खो सकता है, वह शांति से काम करते हैं। जब तक बिल्कुल आवश्यक न हो, वह ऑनफ़ील्ड फै़सलों में हस्तक्षेप नहीं करते थे। रॉजर ने हमेशा हमारे साथ परिपक्व व्यक्तियों की तरह व्यवहार किया। कोई भी ज़रूरत पड़ने पर वह हमेशा साथ खड़े होते थे।"
सोढ़ी अंडर-19 विश्व कप अभियान का एक उदाहरण देते हुए कहते हैं, "श्रीलंका के ख़िलाफ़ हमारे ग्रुप मैच से पहले मैं बहुत अस्वस्थ था। मैं मैच की सुबह बीमार हो गया और मुझे नहीं पता था कि बिन्नी को कैसे सूचित किया जाए कि मैं मैदान पर उतरने की स्थिति में नहीं हूं। पूरी रात बुख़ार के बाद मैं उनके पास गया और कहा मैं कमज़ोर महसूस कर रहा हूं। बिन्नी ने मुस्कुराया, मेरी ओर देखा और कहा, 'सोढ़ी, तुम खेल रहे हो। कृपया अभी आराम करो और तैयार रहो। मैंने उस मैच में 74 रन बनाए और दो विकेट लिए और मुझे प्लेयर ऑफ़ द मैच चुना गया। अगर उन्होंने मुझे खेलने के लिए नहीं कहा होता, तो शायद मैं मैच के दो या तीन दिन बाद भी बीमार रहता।"
एक प्रशासक के रूप में विवादों से निपटने में बिन्नी की विशेषज्ञता शायद उनके मानव-प्रबंधन कौशल का एक अन्य पहलू है। 2010 में उन्हें केएससीए में अनिल कुंबले के प्रशासन के तहत उपाध्यक्ष नामित किया गया था। उस वक़्त दो अलग-अलग गुट आपस में भिड़ गए थे, जिसके परिणामस्वरूप चुनाव में काफ़ी गहमागहमी हुई थी।
इसके बाद बिन्नी ने यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया माहौल ज़्यादा ख़राब ना हो जाए। बाद में बिन्नी को प्रतिद्वंद्वि बृजेश पटेल ख़ेमे से भी समर्थन मिला। संयोग से पटेल ने लंबे समय तक केएससीए पर काफ़ी बढ़िया पकड़ बनाई है और उनका समर्थन बीसीसीआई में शीर्ष पद के लिए बिन्नी के उत्थान में काफ़ी महत्वपूर्ण था।
बिन्नी 2012 और 2016 के बीच राष्ट्रीय चयनकर्ता भी थे। 2014 में उनके ऊपर हितों के टकराव का बादल मंडरा रहा था, जब उनके बेटे स्टुअर्ट बिन्नी को राष्ट्रीय टीम के लिए संभावित ऑलराउंड विकल्प के रूप में बताया गया था। उस समय के चयनकर्ताओं ने बिन्नी को इस मामले को काफ़ी सरल बनाने का श्रेय दिया क्योंकि जब भी स्टुअर्ट का नाम चयन के लिए सामने आता था तो वह खु़द को इससे अलग कर लेते थे।
बिन्नी का सबसे हालिया प्रशासनिक कार्यकाल केएससीए में था, जहां 2019 में मैच फ़िक्सिंग के लिए कुछ खिलाड़ियों और टीम के मालिकों की गिरफ़्तारी के बाद राज्य की टी20 लीग कर्नाटक प्रीमियर लीग की विश्वसनीयता बहाल करना उनके प्रमुख कार्यों में से एक था। बिन्नी ने टूर्नामेंट को पहले भंग कर दिया और इसके ढांचे में कई सुधार किए। उन्होंने सुनिश्चित किया कि उनका प्रशासन टीमों के स्वामित्व और खिलाड़ी भुगतान पर पूर्ण नियंत्रण ले ले।

शशांक किशोर ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर राजन राज ने किया है।