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विश्व कप से विश्व कप तक, 2013 से 2025 तक: एक कायापलट की कहानी

बारह साल पहले, भारत ने एक महिला विश्व कप की मेज़बानी की थी जिसने देश की चेतना पर बमुश्किल कोई छाप छोड़ी थी। अब सब कुछ बदल चुका है

Jemimah Rodrigues marks India women's historic win with a team-fie, England vs India, 3rd women's ODI, Durham, July 22, 2025

2013 में भारत बड़ी टीमों के साथ मैच खेल कर संतोष कर लेता था। लेकिन इस बार उसकी उनकी नज़र ख़िताब पर है  •  Getty Images

2013 में जब भारत ने आख़िरी बार महिला विश्व कप की मेज़बानी की थी, तब माहौल बनाने और खेल को प्रमोट करने का अर्थ था, टीवी कवरेज के लिए स्कूल यूनिफ़ॉर्म वाले बच्चों से स्टेडियम के कुछ हिस्सों में बैठा देना। ताकि जब यह टीवी पर दिखे तो ब्रॉडकास्टिंग और महिला क्रिकेट के लिए एक सकारात्मक माहौल बन सके। तब टूर्नामेंट से कुछ दिन पहले वेन्यू बदल दिए जाते थे, सिर्फ़ इसलिए कि शहर के सबसे बड़े स्टेडियम में सचिन तेंदुलकर वाला रणजी फ़ाइनल हो सके।
सीनियर भारतीय महिला टीम को मैच अभ्यास के नाम पर सिर्फ़ पुलिस जिमखाना में अंडर-16 और अंडर-19 लड़कों की टीमों से खेलने दिया जाता था। अन्य देशों की टीमें फ़ाइव स्टार होटलों में रुकती थीं, वहीं भारतीय खिलाड़ी साउथ मुंबई में अपने सस्ते ठिकानों तक पैदल ही जाते थे। पूर्व कप्तान डायना एडुल्जी ने जब इस भेदभावपूर्ण और निराशाजनक स्थिति को मीडिया में सार्वजनिक किया, तभी BCCI को भारतीय खिलाड़ियों के लिए बाक़ी टीमों की तरह अच्छे होटल में ठहरने की व्यवस्था करनी पड़ी।
तब भारत को वेस्टइंडीज़ जैसी बराबरी की टीमों को हराने में खु़शी मिलती थी, लेकिन बड़ी टीमों को टक्कर देना भी जीत जैसा लगता था। जैसे कि जब एक 23 साल की पतली-दुबली बैटर, जिसने वीरेंद्र सहवाग की तरह खेलने का सपना देखा था, उसने इंग्लैंड को हिला कर रख दिया था
13 साल बाद वही आक्रामक बैटर अब भारत की कप्तान है और 37 साल की उम्र में शायद अपना आख़िरी वनडे विश्व कप खेल रही हैं। लेकिन इस बार हरमनप्रीत कौर के पास एक पूरी पीढ़ी है, जो सिर्फ़ मुक़ाबला नहीं करना चाहती, बल्कि जीतना चाहती है। आधी सदी में पहली बार भारत की महिला टीम इस विश्वास के साथ विश्व कप में उतर रही है कि वे चैंपियन बन सकती हैं।
2013 और मौजूदा विश्व कप की तुलना में अंतर एकदम स्पष्ट है। 2013 में ऐसी सुविधाओं के बारे में कल्पना करना भी हास्यास्पद होता। महिला क्रिकेट भले ही BCCI के नियंत्रण में था, लेकिन उसका पेशेवर स्तर लगभग शून्य था। एक पूरे दौरे की मैच फ़ीस बमुश्किल 1 लाख रुपये तक सिमट जाती थी और खिलाड़ियों को दैनिक भत्ता (डेली अलावेंस) सिर्फ़ 1500 रुपये मिलता था, जो इंग्लैंड या ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में एक कॉफ़ी और स्नैक तक के लिए भी काफ़ी नहीं था। मैच हारने का मतलब अक्सर यह होता था कि खिलाड़ियों को अगले ही दिन होटल छोड़कर टैक्सी या ट्रेन से घर वापस लौटना पड़ता था।
खिलाड़ियों चाहते थे कि उन पर भी थोड़ा ध्यान दिया जाए लेकिन ऐसा नहीं हो पाता था। पूर्व सलामी बल्लेबाज़ तिरुश कामिनी, जिन्होंने 2013 में भारत के पहले मैच में वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ शतक जड़ा था, वह बताती हैं, "उस दौर में तो पहचान सिर्फ़ विश्व कप के दौरान ही नसीब होती थी। जब हम घर लौटते थे, तो अगर कोई क्रिकेट का बड़ा दीवाना न हो, तो हमें कोई पहचानता तक नहीं था। आज का नज़ारा बिल्कुल अलग है। खिलाड़ी को अब हर जगह एक अलग पहचान मिल रही है।"
मैच खेलने का मौक़ा भी काफ़ी कम मिलता था। 2013 की टीम का हिस्सा रहीं पूर्व ऑलराउंडर निरंजना नागराजन इस बात को मानती हैं और कहती हैं, "आज लड़कियों को चयन के लिए जो मंच मिल रहा है, वह हमारे ज़माने से बहुत ज़्यादा बेहतर है।"
"उनके पास WPL जैसा टूर्नामेंट है। खेलने और अपनी प्रतिभा दिखाने के ज़्यादा अवसर हैं। हमारे पास सिर्फ़ इंटर-ज़ोनल और चैलेंजर्स टूर्नामेंट थे। नेशनल्स के लिए क्वालीफ़ाई करते तो तीन और मैच मिल जाते थे।" उस वक़्त खिलाड़ियों का अच्छा प्रदर्शन भी अख़बारों के खेल पन्ने के किसी कोने में सिमटकर दो कॉलम की ख़बर बनकर रह जाती थी। इंस्टाग्राम नया था और इतना ताक़तवर नहीं कि किसी ख़ास पल को वायरल कर सके। आज हालात बदल गए हैं। अगर पुरुष टीम में संजू सैमसन का चयन न हो तो सवाल उठते हैं। श्रेयस अय्यर IPL में अच्छा खेलकर भी न चुने जाएं तो चर्चा होती है। यही चीज़ अब महिलाओं के लिए भी हो रही है।

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2013 विश्व कप में 14 साल से इंटरनेशनल क्रिकेट खेल रहीं मिताली राज उन दो खिलाड़ियों में थीं जिन्हें कोई पहचानता था। दूसरी थीं झूलन गोस्वामी। 2005 में तो भारतीय टीम विश्व कप फ़ाइनल में पहुंच गई थी लेकिन फिर भी दर्शकों का ध्यान भारतीय महिला क्रिकेट टीम की ओर नहीं गया था।
कामिनी याद करती हैं, "जब मैंने शतक बनाया तो दूसरे छोर पर मिताली थीं। एक पत्रकार ने उनसे पूछा कैसा लग रहा है कि आपका रिकॉर्ड टूट गया। उन्होंने बस मुस्कुराकर कहा, 'ये तुम्हारा दिनहै।' यही उदारता उन्हें महान लीडर बनाती थी।"
आज तस्वीर बदल चुकी है। खिलाड़ी अत्याधुनिक सुविधाओं में ट्रेनिंग करते हैं। देश-विदेश की लीग में खेलते हैं और दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीमों से लगातार मैच खेलती हैं।
2025 में भारतीय महिला क्रिकेटरों का दौर है। बराबरी का वेतन, रिकॉर्ड इनामी राशि और बढ़ता हुआ फ़ैनबेस।
"बकेट हैट कल्ट" जैसा फ़ैन ग्रुप महिला क्रिकेट के लिए तैयार है। 25 सदस्यों वाला यह ग्रुप 2023 में बना और जितने मैच हो सके देखने जाता है। इस बार वे नवी मुंबई में पहली ODI महिला विश्व कप में शिरकत करेंगे।
2017 विश्व कप फ़ाइनल तक पहुंचना भारत में महिला क्रिकेट के लिए टर्निंग प्वाइंट माना गया था। लेकिन असली लहर 2023 में WPL शुरू होने के बाद पकड़ी। WPL 2025 ने टीवी व्यूअरशिप में 142% उछाल दर्ज किया और 3.1 करोड़ दर्शक जुटाए गए।
आज खिलाड़ी गुमनामी से निकलकर सुर्ख़ियों के केंद्र में हैं।

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इस विश्व कप के चार में से तीन वेन्यू में पिछले पांच साल में कोई महिला अंतर्राष्ट्रीय मैच नहीं कराया गया है। मुंबई को छोड़कर भारत के ज़्यादातर मैच बेंगलुरू, चेन्नई, अहमदाबाद और दिल्ली में हुए। अब फ़ोकस गुवाहाटी, इंदौर और विशाखापट्टनम जैसे वेन्यू पर है।
इस भारत के वनडे विश्व कप की टीम में उमा छेत्रीभी हैं। वह असम से भारत के लिए खेलने वाली पहली महिला क्रिकेटर हैं। ऐसा कहना बिल्कुल ही ग़लत नहीं होगा, उनके ज़रिए पूरे उत्तर-पूर्व की एक नई उम्मीद मिलेगी।
विशाखापट्टनम के पास कडपा में एन श्री चरणी ने गली क्रिकेट से शुरुआत की थी और आज WPL में मेग लानिंग के साथ खेलते हुए दुनिया की सबसे अच्छी खिलाड़ियों के बीच अपनी जगह बना चुकी हैं।
क्रांति गौड़ का ग्वारा (मध्य प्रदेश) से टीम इंडिया तक का सफ़र और इंग्लैंड में लिया गया छह विकेट का हॉल दिखाता है कि स्काउटिंग और WPL ने प्रतिभा खोजने का नक्शा बदल दिया है।
2013 में पहचान की जद्दोजहद से लेकर 2025 में इज़्ज़त और ध्यान तक, भारतीय महिला क्रिकेट लंबा सफ़र तय कर चुकी है। यह विश्व कप शायद वह मंच है, जो पूरी तरह उनका हो सकता है।

हिंदी अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर राजन राज ने किया है