शेन वॉर्न ने बहुत कुछ दिया और बहुत कुछ बाक़ी था : निकोलस
उनसे विदा होना दर्दनाक है लेकिन उनसे मिलने की ख़ुशक़िस्मती भी है
मार्क निकोलस
07-Mar-2022
वॉर्नी के बारे में कुछ तो तात्त्विक था, जैसे हम पवन, घटा या सूरज के बारे में सोचते हैं। वह एक पल में अप्रत्याशित थे और दूसरे में आपके दयालु पड़ोसी। वह हमारे जीवन में नए अनुभव लाते रहे और वह जहां भी जाते थे उनकी एक अलग सी आभा साथ रहती थी। ऐसा कहना शायद अतिशोक्ति हो कि यह दुनिया शेन वॉर्न के इशारों पर नाचती थी लेकिन शायद यह सच से बहुत दूर नहीं।
शेन को अमरीकी गायक ब्रूस स्प्रिंगस्टीन के गाने बहुत पसंद थे। स्प्रिंगस्टीन के हालिया एल्बम 'लेटर टू यू' में आख़िरी गाना है 'आई विल सी यू इन माइ ड्रीम्स (मैं तुम्हें सपनों में देखूंगा)' जिसमें एक व्यक्ति अपने मृत दोस्त को याद करता है। शेन को इस गाने से इतना लगाव था कि वह रो पड़ते थे। अब वही आंसू हमारी आंखों में हैं, एक अनोखे और ज़िंदादिल दोस्त और भाई की याद में।
शेन को संगीत से बहुत प्यार था। इसीलिए उनकी जीवनी की हर कड़ी को एक मशहूर गाने का नाम दिया गया है - "सैटिसफ़ैकशन", "इमैजिन", "हीरोज़", इत्यादि। घर पर या स्विमिंग पूल में या अपनी गाड़ी में - उन्हें हर जगह आवाज़ बढ़ाकर साथ गाने में बहुत मज़ा आता था। मानो वह अपने घरेलू मैदान एमसीजी में लोगों के बीच मौज मना रहे हों।
उनके निधन के बाद पूरी दुनिया में शोक का माहौल है। लंदन के एक अखबार में उनकी याद में 14 पृष्ठ छपे तो वहीं मलेशिया में भी पहले पन्ने पर उन्हीं का नाम आया। वह क्रिकेट भी थे और रॉक एंड रोल रूपी मनोरंजन भी। लोग उन्हें देखते थे और उन जैसा बनने का सपना रखते थे। उन्होंने हमें क्रिकेट के बारे में नई बातें बताईं, वाद-विवाद का वातावरण बनाया, खेल के प्रति उत्साह को बढ़ावा दिया और कभी ना हारना सिखाया।
जब उनसे पूछा गया कि एक अच्छे लेग स्पिनर में क्या गुण हैं तो उनका जवाब था, "ढेर सारा प्यार।" और लेगस्पिन की कला क्या है? जवाब आया, "कुछ ऐसा बनाना जो वास्तव में ना हो।"
सभी को शेन से लगाव था : 1996 विश्व कप फ़ाइनल से पहले लाहौर ने गुलाब की पंखुड़ियों की बौछार के साथ वॉर्न और रिकी पोंटिंग का स्वागत किया था•Zafar Ahmed/Associated Press
मेरा सौभाग्य था कि मैं उन्हें बहुत अच्छे से जानता था और मेलबर्न में उनके बनाए (और बेचे) कई घरों में उनके साथ मैं रहा हूं। 2003 में साउथ अफ़्रीका में विश्व कप से पहले उनपर एक दवा लेने की वजह से एक साल का प्रतिबंध पड़ा था और उस दिसंबर में मैं उनके घर पर था। पहली रात के बाद सुबह मैंने उन्हें लगभग साढ़े सात बजे ट्रैकसूट और जूतों में घर लौटते देखा।
"दौड़ने गए थे?"
"नहीं दोस्त। शहर के बाहर एक इनडोर स्कूल में गेंदबाज़ी कर रहा था।"
"लेकिन यह फ़िलहाल तुम्हारे लिए वर्जित है, है ना?"
"हां। तुम कल चलोगे और मेरे ख़िलाफ़ बल्लेबाज़ी करोगे?"
वह टेनिस में भी माहिर थे और बाद में टेनिस खेलते हुए मैंने उनसे इस स्कूल के बारे में पूछा। पता चला कि स्कूल के संचालक भाईसाहब के दोस्त थे और उन्होंने उनसे निवेदन किया था कि सुबह छ: बजे वह गेंदबाज़ी का अभ्यास करेंगे और लोगों के जागने और स्कूल आने से पहले वहां से निकल लेंगे। इस दौरान वह जीवन में थोड़ी संवेदनशीलता का पालन कर रहे थे। केरी पैकर ने उन्हें अपनी लाल फ़ेरारी बेचने की नसीहत दी तो उन्होंने ऐसा ही किया। और एक नीली फ़ेरारी ख़रीद ली।
बहरहाल, स्कूल में मैंने उनसे उनकी किट से चीज़ें लेकर उनका सामना करने की चुनौती को स्वीकारा। इन 18 साल पुरानी यादों को लिखते हुए मुझे उस डर का अनुभव हो रहा है जो उस दिन हुआ था। 1993 में हैम्पशायर के ख़िलाफ़ उन्हें विश्राम दिया गया था और मैंने उन्हें पहले कभी नहीं खेला था।
2014 में चैनल 9 के साथ कार्यरत थे निकोलस और वॉर्न•Scott Barbour/Cricket Australia/Getty Images
पहली चीज़ जिससे मैं स्तब्ध रह गया वो था उनका प्रभामंडल। मुझे उनके रनअप की शक्ति, उनकी स्ट्राइड में ज़ोर, उनकी एक्शन की ख़ूबी, गेंद की फ़्लाइट, और गेंद कितनी ज़ोर से बल्ले या शरीर पर लगती थी, सब याद है। गेंद में घुमाव और कृत्रिम सतह पर स्पिन तो आश्चर्य की बातें थीं ही, लेकिन साथ में उनकी गेंदबाज़ी की तेज़ गति और हवा में तैरने के बाद उसका डिप भी अविस्मरणीय था। जब मैंने उनसे पूछा कि क्या पर्थ के वाका मैदान पर उनके ख़िलाफ़ बल्लेबाज़ी का अनुभव भी ऐसा ही होता होगा तो उन्होंने मना करते हुए कहा कि वाका में गेंद स्किड ज़्यादा करती है लेकिन यहां उछाल ज़्यादा है।
गेंद क्रमशः मेरे बल्ले के उपरार्ध पर लगने लगी और हर गेंद के साथ हैंडल से लेके मेरे निचले हाथ में झनझनाहट होने लगी। मैंने फ़ैसला किया कि मैं हल्के हाथों से आख़िर तक खेलने की चेष्टा करूंगा। उनकी गेंदबाज़ी पर आगे बढ़कर गेंद को खेलना असंभव लगने लगा और मैं बैकफ़ुट पर ही रुका रहा। मुझे लगा कि अच्छे खिलाड़ी चपलता से क़दमों का इस्तेमाल करते होंगे या केविन पीटरसन की तरह स्वीप का उपयोग करते होंगे।
उन्होंने पैड पर इतनी गेंदें मारी कि कोई मज़ाक़ की बात नहीं। स्लाइडर, फ़्लिपर तो उन्होंने डाले ही लेकिन कंधे में परेशानी के चलते गूगली का प्रयोग नहीं किया। अगली सुबह मैं उनसे गूगली डलवाने के निवेदन में सफल रहा, लेकिन गेंद डालते ही वह दर्द से कहराने लगे। मैंने अधिकतर गेंदों को डिफ़ेंड किया, एक-आध मिडऑन पर स्लॉग लगाए और बैकवर्ड प्वाइंट की ओर कुछ कट लगाए। यह जीवन के कुछ शाही पल थे - वॉर्न के शहर में सूर्योदय के साथ हम दोनों की मशक़्क़त की कहानी।
मुझे यह भी लगा कि सचिन तेंदुलकर और ब्रायन लारा जैसे खिलाड़ी कितने महान होंगे जो उनके सामने सैकड़ों रन बनाते हैं? मुझे तो बस फ़िल्म का टीज़र मिल रहा था, ट्रेलर भी नहीं - ना पिच पर खुरदरापन, ना आस-पास कैच लपकने को तैयार फ़ील्डर, ना खचाखच भरा मैदान, ना टीवी ना रेडियो, ना गालियां, ना संदर्भ, ना देश की उम्मीदें, ना स्कोरबोर्ड का दबाव, ना इयन हीली और ना ही ऐडम गिलक्रिस्ट की तीख़ी टिपण्णी।
वॉर्न चतुराई से बल्लेबाज़ों को अपनी फिरकी के जाल में फंसाने के लिए जाने जाते थे•Mark Baker/Associated Press
लेकिन उनके कौशल को निहारने का यह अनोखा मौक़ा मुझे याद है। साथ ही इस बात का साक्षी होना कि एक कठिन कला को निहारने के पीछे यह व्यक्ति कितने घंटों की तपस्या और मेहनत करता था।
उनके जीवनी 'नो स्पिन', जिसका सह-लेखक मैं था, में यह पंक्तियां थी : "लेगस्पिन की कला का सार है कुछ ऐसा बनाना जो वास्तव में ना हो। यह एक रहस्यमयी जादूगरी है। क्या आएगा और कैसे? किस गति से, कहां होते हुए और किस आवाज़ के साथ? कहां टप्पा खाएगी गेंद और कहां जाएगी? अगर गेंदबाज़ के हाथ को ठीक से परख ले, तो कोई भी बल्लेबाज़ उसे पढ़ लेता है। गेंदबाज़ हर वक़्त बल्लेबाज़ को कुछ सुराग ज़रूर देता है लेकिन कुछ उसे छुपाना जानते हैं। तेज़ गेंदबाज़ की तरह लेगस्पिनर शारीरिक डर तो पैदा नहीं कर सकता। तो उसे छल-कपट से काम करना पड़ता है।"
"लेकिन बल्लेबाज़ को डर भी लगता है - मूर्ख दिखने से पैदा होने वाले शर्म से। बहुत ही कम बल्लेबाज़ असल में समझते हैं कि मैं क्या करने वाला हूं, और मुझे इस रहस्य को बनाए रखने के लिए अनिश्चितता और अव्यवस्था बनाए रखने की ज़रूरत पड़ती है।"
और यही वजह थी उस प्रतिबंध के दौरान इन अभ्यास सत्रों की। मानो वह कह रहे थे, "मैं जो करता हूं उससे मुझे प्यार है और मैं वही करूंगा जो मुझे पसंद है। और जब सही समय आएगा, मैं तैयार रहूंगा।"
साल 2006 में लंदन में बच्चों को लेग स्पिन की कला का ज्ञान देते हुए शेन वॉर्न•Sang Tan/Associated Press
उनके बारे में कितना कुछ होगा मिस करने लायक! वह बड़े मज़ाक़िया थे। वह शरारत से परिपूर्ण थे। उन्हें ज़िंदगी के बारे में काफ़ी कुछ पता था और वह ख़ुशी के साथ-साथ अपना समय भी बांटते थे। दान पुण्य के अवसर पर वह अपने साथ समय की नीलामी करते थे और ख़रीदारों के साथ विनम्रता से बात करते थे। अगर दर्शकों में युवा होते तो कई बार वह उद्घोषित समय से अधिक भी देते थे।
विश्व भर में विख्यात लोग उनके गहरे दोस्त थे। उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री बॉब हॉक के घर के पिछले आंगन में टेनिस खेलना सीखा। उनके घर में संगीतकार क्रिस मार्टिन और एड शीरन अक्सर पिज़्ज़ा खाने आते थे। अभिनेता माइकल पार्किंसन और टिम राइस उन्हें खाने के लिए बाहर ले जाते थे, म्युज़िक ग्रुप 'कोल्डप्ले' ने उन्हें अपने साथ गाने के लिए मंच पर आमंत्रित किया था। एक बार एक गॉल्फ़ क्लब में जेम्स बॉन्ड रह चुके शॉन कॉनरी को जब पता चला की वॉर्न खेलने आने वाले हैं तो उन्होंने उनसे मिलने के लिए 15 मिनट का इंतज़ार किया। डैनी मिनोग और जेमिमा ख़ान जैसे आकर्षक व्यक्तित्वों के साथ उनका उठना-बैठना था और अभिनेत्री एलिज़ाबेथ हर्ली से उनकी मंगनी हुई थी। ट्विटर पर उनके निधन पर खेद प्रकट करने वालों में थे प्रसिद्ध गायक मिक जैगर।
अपने माता-पिता ब्रिजिट और कीथ से उन्हें बहुत प्यार था। उनका भाई जेसन भी बहुत क़रीबी था और उनके बच्चे उनकी जान थे। बेटियां समर और ब्रुक को यह दुःख है कि उनके कन्यादान में उनके पिता नहीं रहेंगे। जैक्सन, जो उनका बेटा ही नहीं शायद सबसे क़रीबी दोस्त था, अब भी इस बात को पचा नहीं पा रहा है कि उनके पिता कल दरवाज़े से घर नहीं घुसेंगे। शायद शेन में अच्छे पति होने के सारे गुण नहीं थे लेकिन वह एक लाजवाब पिता थे, और उनके परिवार की पीड़ा के बारे में सोचकर दर्द होता है।
उनकी पूर्व पत्नी सिमोन भी शोकग्रस्त हैं। उनके बच्चों की मां और वह लड़की जिनके सामने उन्होंने 1993 में उत्तर इंग्लैंड में तालाब में रोइंग करते हुए शादी का प्रस्ताव रखा था। उनकी रोइंग में ख़ास प्रतिभा नहीं थी और गोल-गोल घूमने और ख़ूब हंसने के बाद सिमोन ने हां कहा था।
मुंबई में वॉर्न को श्रद्धांजलि देता हुआ एक चित्रकार•Rajanish Kakade/Associated Press
सच पूछिए तो शेन ने बहुत लोगों को पीड़ा की अवस्था में छोड़ दिया है। उन्होंने इतना दिया था और और भी क्या कुछ करना बाक़ी था!
वह पोकर टेबल और गॉल्फ़ का मैदान भी उन्हें मिस करेंगीं। स्कॉटलैंड में लिंक्स प्रतियोगिता उनका ख़ासा प्यारा था और पिछले अक्तूबर वह प्रो-ऐम इवेंट रायण फ़ॉक्स के साथ जीतने से एक शॉट पीछे रह गए। अगर जीत उनके नाम लगती तो यक़ीनन उसे वह ऐशेज़ के साथ का दर्जा देते।
कॉमेंट्री में भी वह लगातार सुधार ला रहे थे। वह औरों की राय को तवज्जो देते और अपनी टिप्पणियों के साथ उन्हें समेटकर पेश करना जानते थे। क्रिकेट के प्रति उनका दृष्टिकोण सरल था। इस गेम को वह उत्साह से देखते थे और उनका मानना था की आक्रामक क्रिकेट ही सुरक्षित क्रिकेट की नींव है। कर्मठता और ज़िंदादिली उनके आधारस्तंभ थे, और उन्हें विश्वास था कि इस गेम में उनके या उनके साथ जुड़ी टीमों के लिए कुछ भी असंभव नहीं है।
उन्होंने क्रिकेट को आकर्षक बनाया और अपने आस-पास खुशियां बांटीं। शायद कुछ चीज़ों में वह बेहतर सोच या आचरण दिखा सकते थे लेकिन इतना महान व्यक्तित्व थोड़ा तो ज़िद्दी हो ही सकता है। और अब वक़्त आ चला है इस कहानी के अंत का। सोचना भी मुश्किल है कि वह वॉर्न मुस्कान अब सामने नहीं दिखेगी। अपने 52 वर्षों में उन्होंने पांच या दस लोगों का पूरा जन्म जी लिया था। हर दिन, हर जगह, हर पल, उनका जादू किसी ना किसी तरीक़े से आप को छू जाता था। उनके संपर्क में रहने के बाद उनसे विदा होना दर्दनाक है लेकिन उनसे मिलने की ख़ुशक़िस्मती भी है। शेन वॉर्न जैसा कोई और कभी नहीं आएगा।
हैम्पशायर के पूर्व कप्तान मार्क निकोलस एक टीवी और रेडियो प्रस्तोता और कॉमेंटेटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo में सीनियर असिस्टेंट एडिटर और स्थानीय भाषा प्रमुख देबायन सेन ने किया है।