ट्रेंट बोल्ट 33 साल के हैं। उन्होंने 78 टेस्ट, 93 वनडे और 44 टी20 मैच खेले हैं। वह विश्व टेस्ट चैम्पियनशिप विजेता और अन्य दो प्रारूपों में विश्व कप उपविजेता हैं। दो-तीन साल पहले यह सोचना बिल्कुल उचित होता कि वह वनडे और टी 20 विश्व कप में जीत हासिल करने के लिए और 100 टेस्ट खेलने की पूरी कोशिश करेंगे। यदि वह और 22 टेस्ट खेलने में सक्षम रहते हैं तो यह उम्मीद की जा सकती है कि इस प्रारूप में वह 400 से अधिक विकेट के साथ अपने करियर को समाप्त करेंगे। न्यूज़ीलैंड की तरफ़ से खेलते हुए
यह आंकड़ें सिर्फ़ रिचर्ड हैडली के पास है।
हालांकि यह क्रिकेट का एक नया दौर है, जहां दो और टी20 लीग शुरू किए जा रहे हैं। यूएई की लीग ने तो हर टीम में नौ विदेशी खिलाड़ियों को शामिल करने के अनुमति दे दी है। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि बोल्ट ने न्यूज़ीलैंड के केंद्रीय अनुबंध से ख़ुद को बाहर कर लिया है। उन्हें अच्छे से इस बात का पता है कि उनके इस क़दम से उनका करियर समाप्त हो सकता है। जैसा कि न्यूज़ीलैंड क्रिकेट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी डेविड वाइट ने कहा कि चयन के समय केंद्रीय या घरेलू अनुबंध वाले खिलाड़ियों को प्राथमिकता दी जाएगी।
यह किसी भी तरह से अपने परिवार के साथ अधिक समय बिताने की बोल्ट की इच्छा को अमान्य करने का प्रयास नहीं है। वह अपने परिवार के साथ रहने के लिए ब्रेक ले रहे हैं और कुछ समय से वह चोटों से भी जूझ रहे हैं। हालांकि वह ऐसा क़दम इसलिए उठाने में सक्षम हो पा रहे हैं क्योंकि उनके पास टी20 लीगों की वित्तीय सुरक्षा उपलब्ध है।
यह इस बात का समान्यीकरण है कि अंतर्राष्ट्रीय करियर के लिए अपना सब कुछ न्योछावर नहीं कर देना है और निश्चित रूप से क्रिकेट के इतिहास में यह एक महत्वपूर्ण क्षण है। पहले खिलाड़ियों का सपना हुआ करता था कि उन्हें एक केंद्रीय अनुबंध मिले, वे 100 टेस्ट खेले और 400 विकेट हासिल करने में सक्षम हो सकें। बोल्ट के लिए यह अहसास एक ऐसे बिंदु पर आया है जहां वह पहले से ही इस खेल के सुपरस्टार हैं। कुछ अन्य लोगों के लिए भी यह अहसास जल्द ही उनके ज़हन में आ सकता है।
यदि आईएलटी20 और यूएई लीग अपने मौजूदा प्रारूप में चलती है, तो उसे हर साल यूएई के बाहर के कम से कम 54 खिलाड़ियों की आवश्यकता होगी। साथ ही साउथ अफ़्रीका की लीग में भी 24 गैर-साउथ अफ़्रीकी खिलाड़ियों की आवश्यकता होगी। इन लीगों में खिलाड़ियों के लिए पैकेज अनुबंध हो सकते हैं। ये लीग हमेशा किसी न किसी अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट से टकराती रहेंगी। टिम डेविड या आज़म ख़ान जैसे कई खिलाड़ियों को अपने राष्ट्रीय लीग में या नेशनल टीम के लिए खेलने के लिए राज़ी करने की आवश्यकता हो सकती है।
सतही तौर पर यह क्रिकेट के लिए बुरी ख़बर नहीं है। अधिक क्रिकेट खेली जाएगी। क्रिकेटरों को बेहतर शुल्क मिलेंगे। साथ ही अधिक से अधिक क्रिकेटर उभर कर सामने आएंगे। फ़ुटबॉल के विपरीत ये लीग केवल प्रतिभा के उपभोक्ता हैं; वे उन्हें विकसित करने में योगदान नहीं देते हैं।
साल दर साल खिलाड़ियों के लिए यह चुनाव आसान होता जा रहा है। एक या दो महीने में एक लीग खेली जाती है। साथ ही आपको अपने परिवार के साथ यात्रा करना आसान होता है, और आप उस अवधि में आपके केंद्रीय अनुबंध की तुलना में अधिक पैसा कमाते हैं। और यह सिर्फ़ पैसों के कारण नहीं है। यहां खिलाड़ियों और प्रशंसको के लिए सम्मान वाली भी बात है। आईपीएल को सीमित ओवरों के विश्व कप की तुलना में जीतना अधिक कठिन है, और इसे अधिक लोगों द्वारा देखा जाता है। दूसरी ओर द्विपक्षीय अंतर्राष्ट्रीय दौरे पर बहुत अधिक यात्रा करनी होती है। कुछ टीम जब हार जाते हैं तो उनके खिलाड़ियों को भद्दी भाषा का सामना करना पड़ता है।
बीसीसीआई अपने खिलाड़ियों को नियंत्रित कर सकता है। ईसीबी के अनुबंध आकर्षक हैं, सीए आक्रामक रूप से मुक़ाबला करने और बीबीएल के लिए डेविड वार्नर को बनाए रखने में सक्षम है, लेकिन अन्य राष्ट्रीय बोर्डों के पास उतनी वित्तीय ताक़त नहीं है। न्यूज़ीलैंड क्रिकेट ने व्यावहारिक और शालीनता से काम किया है। एक नाखु़श या नाराज़ बोल्ट टीम के लिए उतने कारगर साबित नहीं होंगे। क्रिकेट वेस्टइंडीज़ किसी भी अन्य बोर्ड की तुलना में अधिक समय तक इस संघर्ष के साथ जूझता रहा है। वेस्टइंडीज़ के खिलाड़ी दूसरों खिलाड़ियों की तुलना में इस प्रारूप में ज़्यादा महारत हासिल करते हैं। उनके खिलाड़ियों पर कई बार अधिक व्यवसायिक और लोभी होने के आरोप लगे हैं और यह अनुचित है।
सतही तौर पर यह क्रिकेट के लिए बुरी ख़बर नहीं है। अधिक क्रिकेट खेली जाएगी। क्रिकेटरों को बेहतर शुल्क मिलेंगे। साथ ही अधिक से अधिक क्रिकेटर उभर कर सामने आएंगे। फ़ुटबॉल के विपरीत ये लीग केवल प्रतिभा के उपभोक्ता हैं; वे उन्हें विकसित करने में योगदान नहीं देते हैं।
भारत, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया की तुलना में न्यूज़ीलैंड, वेस्टइंडीज़ और पाकिस्तान के राष्ट्रीय टीम को इस तरह की लीग से ज़्यादा नुक़सान होगा। यह सब उस भविष्यवाणी को पूरा करने में योगदान देता है कि टेस्ट क्रिकेट एक अभिजात्य, विशिष्टतावादी खेल बन जाएगा। यह कल्पना करना बहुत दूर की बात नहीं है जिसमें सर्वश्रेष्ठ एथलीट और सबसे प्रतिभाशाली क्रिकेटर प्रथम श्रेणी क्रिकेट की तुलना में टी20 क्रिकेट को प्राथमिकता देंगे।
इन सब के बीच आईसीसी खेल को यथासंभव समान रूप से फैलाने के अपने घोषित उद्देश्य के साथ असहज रूप से आगे बढ़ रहा है। हालांकि निर्णय लेने वाले सदस्य बोर्डों द्वारा उसके हाथ बंधे हुए हैं जो खेल का अधिकतम लाभ उठाना चाहते हैं।
न तो बोर्ड और न ही आईसीसी यह कहना चाहती है लेकिन क्रिकेट कैलेंडर ब्रेकिंग पॉइंट की ओर बढ़ रहा है।
सिद्धार्थ मोंगा ESPNcricinfo के अस्सिटेंट एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर राजन राज ने किया है।