मंगलवार को अपनी पारी के दौरान कोहली सही समय पर ट्रिगर मूवमेंट कर रहे थे। उनका फ़्रंटफ़ुट ऑफ़ साइड पर जाने की बजाए आसानी से सीधा जा रहा था। सुनील गावस्कर सहित कई विशेषज्ञों ने इस बात का उल्लेख किया। इसके दो सकारात्मक प्रभाव हुए। पहला ये कि कोहली गेंद को खेलने के लिए ऐसी स्थिति में आ रहे थे जहां छठे स्टंप के बाहर की गेंदें उनकी आंखों और खेलने के लिए उनकी पहुंच से दूर प्रतित हो रही थी।
और क्योंकि उनका पैर कवर की दिशा में नहीं बल्कि मिड ऑफ़ की दिशा में जा रहा था, वह अपना घुटना मोड़कर गेंद की लाइन में आकर उसे ड्राइव लगाने में क़ामयाब हो रहे थे। ऑफ़ साइड पर उनकी अधिकतर ड्राइव में उन्होंने केवल गेंद को धकेला था लेकिन घुटने के मोड़ और परिणामस्वरूप शॉट में वज़न के हस्तांतरण ने गेंदों को तेज़ी से सीमा रेखा की ओर भेज दिया।
सेंचूरियन में उनके दुस्साहस के बाद भी सबूत इस ओर इशारा कर रहे थे कि कवर ड्राइव खेलते हुए कोहली के आउट होने के पीछे ख़राब निर्णय का नहीं बल्कि दुर्भाग्य का हाथ था। लेकिन केपटाउन में वह कोई जोखिम नहीं उठाना चाहते थे।
अगर उन्हें भाग्य के साथ की आवश्यकता थी तो केपटाउन में टुकड़ों-टुकड़ों में भाग्य ने उनका साथ दिया। चेतेश्वर पुजारा ने भी आश्वासन के साथ बल्लेबाज़ी की और तीसरे विकेट के लिए कोहली के साथ 62 रनों की साझेदारी में अधिकतम योगदान दिया था। हालांकि इस दिन कोहली ने बढ़िया बल्लेबाज़ी करते हुए 79 रन बनाए जबकि 43 के स्कोर पर पुजारा, मार्को यानसन की एक गज़ब की गेंद का शिकार हुए।
अजिंक्य रहाणे को तो इससे भी घातक गेंद मिली जब वह रबाडा का सामना कर रहे थे। इस पूरे स्पेल में रबाडा की क्रॉस सीम गेंदें लेग ब्रेक की तरह कांटा बदल रही थी। कीपर द्वारा कैच लपकने पर आउट करार किए जाने पर रहाणे ने रिव्यू तो लिया लेकिन अल्ट्रा-एज में थोड़ी सी हरकत हुई जब गेंद बल्ले के क़रीब थी। तीसरे अंपायर के पास मैदान के फ़ैसले को बदलने के लिए निर्णायक सबूत नहीं था।
जब कोहली 39 के स्कोर पर डुएन ऑलिवियेर का सामना कर रहे थे, इसी तरह निर्णायक सबूत के अभाव ने उन्हें जीवनदान दिया। जब गेंद बल्ले के क़रीब थी तब अल्ट्रा-एज में उसी प्रकार की हल्की हरकत थी लेकिन इस बार मैदान पर अंपायर ने उन्हें नॉट आउट करार दिया था।
हालिया समय में भाग्य कोहली के साथ नहीं था लेकिन मंगलवार को उसने भारतीय कप्तान का साथ दिया। उस घातक स्पेल में रबाडा ने कई बार कोहली को बीट किया और जब बाहरी किनारा लगा तो गेंद फ़ील्डर तक पहुंची नहीं। एक हूक शॉट पर बल्ले का ऊपरी किनारा लगा था और गेंद बाउंड्री के बाहर चली गई।
रबाडा के उस स्पेल के दौरान 25 गेंदों का सामना करते हुए कोहली छह गेंदों पर नियंत्रण में नहीं थे। अपनी पूरी पारी के दौरान उन्होंने 91.5 प्रतिशत नियंत्रण के साथ बल्लेबाज़ी की थी। याद रखिए यह ऐसी पिच थी जहां पूरी भारतीय टीम 223 रनों पर सिमट गई।
जिन लोगों ने कोहली को क़रीब से देखा है, उनके लिए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी। इस पारी के बाद भी, 2020 की शुरुआत से उनकी औसत अभी भी केवल 28.11 है, लेकिन यह संख्या कोहली के बल्लेबाज़ी प्रयासों की तुलना में गेंदबाज़ी आक्रमणों की गहराई और इस अवधि में सामना की गई उन परिस्थितियों की चुनौती का अधिक प्रतिबिंब है। ख़राब फ़ॉर्म के इस दौर में भी कोहली ने कुछ ऐसी पारियां खेली हैं जहां वह चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में तकनीकी रूप से सुसज्ज नज़र आए हैं। इसमें
एडिलेड में 74,
चेन्नई में 72 और
साउथैंप्टन में 44 रनों की पारी शामिल है।
इन पारियों की तरह केपटाउन में भी कोहली शतक नहीं लगा पाए, लेकिन इससे कोई फ़र्क नहीं पड़ना चाहिए। क्योंकि महारत तो आख़िर महारत है।
शिवा जयारमन द्वारा आंकड़ों के साथ
कार्तिक कृष्णस्वामी ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।