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कृष्णस्वामी : आख़िर भारत ने क्यों गंवाया केपटाउन टेस्ट?

कप्तान कोहली ने कहा कि भारत बल्ले से अतिरिक्त दबाव नहीं बना पाया

The victorious South African team poses with the Freedom Trophy, South Africa vs India, 3rd Test, Cape Town, 4th day, January 14, 2022

साउथ अफ़्रीका ने अंतिम दो टेस्ट जीतकर 2-1 से सीरीज़ अपने नाम की  •  Getty Images

जब तीन टेस्ट मैचों की सीरीज़ के अंतिम दिन एक टीम को जीत के लिए 111 रन की आवश्यकता हो और दूसरी को आठ विकेट की, तो आप आसानी से कह सकते हैं कि दोनों टीमों के बीच ज़्यादा अंतर नहीं था। वह भी ऐसी पिच पर जहां दोनों परिणाम संभव थे।
यह हमें देखने को मिला जब साउथ अफ़्रीका ने सात विकेटों से लगातार दूसरा टेस्ट जीतते हुए 2-1 से सीरीज़ अपने नाम की। जोहैनेसबर्ग की तरह केपटाउन में जीत का अंतर आपको गुमराह कर सकता है। दोनों टीमें पांच विषेशज्ञ गेंदबाज़ों के साथ मैदान पर उतर रही थी और पहली तीन पारियों में आख़िरी छह विकेटों ने कुल मिलाकर क्रमशः 56, 51 और 46 रन जोड़े थे।
अगर चौथे दिन की शुरुआत में भारत को एक विकेट मिल गई होती तो शायद इस मैच का और इस पूरी सीरीज़ का परिणाम कुछ और हो सकता है।
दुर्भाग्यवश भारत को वह विकेट मिली ही नहीं। और तो और जब कोई टीम एक ही अंदाज़ से दो टेस्ट मैच हारती है, तो उसके पीछे संयोग के अलावा भी अन्य कारण हो सकते हैं। आइए नज़र डालते हैं ऐसे तीन कारकों पर जिन्होंने भारत की हार में अपना योगदान दिया।
चौतरफ़े हमले पर भारत का विश्वास
चौथे दिन के पहले ड्रिंक्स ब्रेक से पहले भारतीय गेंदबाज़ों ने 13.2 ओवर गेंदबाज़ी की और लगभग 3.5 रन प्रति ओवर के दर से 47 रन ख़र्च किए। यह टेस्ट क्रिकेट में रन बनाने का अच्छा दर माना जाता है।
हालांकि अगर आपने पहले घंटे का खेल देखा होगा, तो आपको पता चलेगा कि यह ख़राब गेंदबाज़ी का नतीजा नहीं था। इसके विपरित, जब मोहम्मद शमी और जसप्रीत बुमराह आगे की तरफ़ गेंदबाज़ी करते हुए गेंद को दोनों दिशाओं में लहरा रहे थे, तब ऐसा लग रहा था कि विकेट कभी भी गिर सकता है। पहले घंटे में भारत द्वारा डाली गई 80 गेंदों में 20 बार उन्होंने बल्लेबाज़ों को ग़लती करने पर मजबूर किया। इसका मतलब यह था कि बल्लेबाज़ हर चार गेंदों में एक ग़लती कर रहे थे।
स्विंग मिल रही थी और इसका लाभ उठाने के लिए भारतीय गेंदबाज़ों ने फ़ुल लेंथ पर गेंदबाज़ी की। इससे उन्होंने मेज़बान टीम के बल्लेबाज़ों को परेशान तो किया लेकिन विकेट नहीं झटक पाए। ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो के लेंथ आंकड़ो में व्यक्तिपरकता का एक तत्व है, लेकिन यह अभी भी शिक्षाप्रद है। इस दौरान फ़ुल लेंथ पर डाली गई 18 गेंदों में से सात पर विपक्षी बल्लेबाज़ शॉट लगाते समय नियंत्रण में नहीं थे। हालांकि भाग्य साउथ अफ़्रीका के साथ था और गेंद या तो कीगन पीटरसन और रासी वान दर दुसें के बल्ले को बीट कर रही थी या फिर किनारा लेकर भी गैप में जा रही थी।
जब फ़ुल लेंथ पर गेंदबाज़ी होती है तो ओवरपिच गेंदों का ख़तरा भी बना रहता है। इस दौरान रासी और पीटरसन ने बड़ी आसानी से कवर ड्राइव के सहारे रन बटोरे। तो भले ही फ़ुल लेंथ की गेंदों पर भारतीय गेंदबाज़ों ने साउथ अफ़्रीकी बल्लेबाज़ों को तंग किया, उन्होंने इसी लेंथ से सबसे ज़्यादा रन लुटाए (18 गेंदों पर 21 रन)।
जब गेंद स्विंग हो रही होती है तो आक्रामक लेंथ पर गेंदबाज़ी करते रहने का ख़तरा बना रहता है लेकिन किसी और दिन भारत द्वारा करवाई गई ग़लतियों पर उन्हें वह विकेट मिल जाती जिसकी उन्हें तलाश थी।
सवाल यह उठता है कि क्या भारत गुड लेंथ पर गेंदबाज़ी करते हुए उन मौक़ों का इंतज़ार कर सकता था। ऐसा करने से रन गति पर भी नियंत्रण रखा जा सकता था। इस पूरे दिन में भारत के लिए 45 मिनट का सबसे अच्छा दौर ड्रिंक्स ब्रेक के दोनों ओर आया जब उन्होंने अपनी लेंथ को पीछे खींचा।
उसी गुड लेंथ से मिले अतिरिक्त उछाल के कारण बुमराह ने विकेट लेने का अवसर बनाया लेकिन पहली स्लिप में चेतेश्वर पुजारा कैच को लपक नहीं पाए। शमी और शार्दुल ठाकुर ने सात ओवरों में मात्र तीन रन देकर बल्लेबाज़ों को परेशान किया और पीटरसन एक लेंथ गेंद को स्टंप्स पर खेल बैठे।
हालांकि तब तक साउथ अफ़्रीका मैच में बहुत आगे निकल चुका था। सात विकेट बाक़ी थे और जीत केवल 55 रन दूर थी। तेम्बा बवूमा ने बुमराह के नए स्पेल में कुछ चौके बटोरे और भारत के लिए वापसी के सारे द्वारों को बंद कर दिया।
उछाल बना दो धारी तलवार
भारत द्वारा फ़ुल लेंथ पर गेंदबाज़ी करने के पीछे एक और कारण था उछाल। इस पिच के अतिरिक्त उछाल के कारण पगबाधा करने का एकमात्र तरीक़ा था आगे गेंद डालना।
साउथ अफ़्रीका ने टेस्ट क्रिकेट में पहली बार पूरे 20 विकेट कैच के रूप में लिए। पहली पारी में जसप्रीत बुमराह ने दो बार बल्लेबाज़ों को बोल्ड किया लेकिन इसके अलावा इस पूरे मैच में कोई और विकेट में स्टंप्स की कोई भूमिका नहीं थी। पगबाधा की उनकी अधिकतम अपीलें या तो नकारी जा रही थी और जब स्वीकारी गई तो रिव्यू पर तीसरे अंपायर ने निर्णय बदल दिया
पगबाधा करने की उनकी कोशिश इतनी बेकार हो गई थी कि चौथे दिन एक समय पर उमेश यादव की गेंद अंदर आकर क्रीज़ से खेल रहे रासी के पैड पर स्टंप्स के सामने जा लगी थी लेकिन उमेश बिना अपील किए अपने गेंदबाज़ी स्थान पर वापस चले गए। उन्हें स्पष्ट रूप से पता था कि गेंद विकेट के ऊपर से निकल जाती।
इन सबके बावजूद क्यों भारतीय गेंदबाज़ों ने लगातार फ़ुल लेंथ पर गेंदबाज़ी की और स्टंप्स पर आक्रमण किया, जबकि मेज़बान टीम के तेज़ गेंदबाज़ों को पटकी हुई गेंदबाज़ी करने और अतिरिक्त उछाल प्राप्त करने का फ़ायदा मिला था?
इसके पीछे दो कारण हैं। बल्लेबाज़ कई सालों तक अपनी लेंथ और आक्रमण करने के अंदाज़ पर काम करते हैं। किसी भी मैच या दौरे के बीच उसमें बदलाव करना कोई आसान बात नहीं है। और जोहैनेसबर्ग की तरह यहां पर भी साउथ अफ़्रीकी गेंदबाज़ों के पास अपनी घरेलू परिस्थितियों में अतिरिक्त ऊंचाई का फ़ायदा था।
मैच के बाद प्रेस कॉन्फ़्रेंस में विराट कोहली ने कहा, "हमारे मज़बूत पक्ष उनसे अलग हैं। तो हमारे गेंदबाज़ों की तुलना उनसे करना सही नहीं होगा क्योंकि विश्व भर में जो मदद हमें मिलती है वह वर्तमान में किसी अन्य गेंदबाज़ी क्रम से संभव नहीं है। इसी वजह से हम विश्व भर में सफल हुए हैं।"
उन्होंने आगे कहा, "हम अलग लेंथ पर गेंदबाज़ी करते हैं और विकेट लेने के कई तरीक़े हैं। मैं मानता हूं कि एक टीम के रूप में आपको अपने मज़बूत पक्षों पर ध्यान देना चाहिए। विपक्षी टीम ने जो सही किया उसकी सराहना करो, उन्होंने गति और उछाल के साथ अपनी घरेलू परिस्थितियों का भरपूर लाभ उठाया। वह इन पिचों को अच्छे ढंग से जानते हैं और उन्होंने लगातार अच्छी लेंथ पर गेंदबाज़ी की जिसका उन्हें पूरा श्रेय दिया जाना चाहिए। परंतु आपको अपने मज़बूत पक्षों को समझना होगा और उनपर टिके रहना होगा। आपको पहले भी उससे नतीजे मिले हैं और आगे भी मिलते रहेंगे।"
जैसा कि कोहली ने कहा, भारत के मज़बूत पहलुओं ने विश्व भर में उन्हें सफलता दिलाई है। ऑस्ट्रेलिया की अतिरिक्त उछाल वाली पिचों पर भारतीय गेंदबाज़ों ने स्टंप्स पर आक्रमण करते हुए लगातार दो टेस्ट सीरीज़ अपने नाम की है।
और तो और भले ही साउथ अफ़्रीकी तेज़ गेंदबाज़ों ने घरेलू परिस्थितियों का भरपूर लाभ उठाया था, इस बार दोनों तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमणों के बीच का अंतर (भारत की औसत 24.58 थी और साउथ अफ़्रीका की 20.13) 2019-20 में भारत में हुई टेस्ट सीरीज़ (भारत की औसत 17.50 और साउथ अफ़्रीका की 70.20) की तुलना में काफ़ी कम था।
क्या भारत के पास बचाव करने के लिए पर्याप्त रन थे?
जब दोनों टीमों के गेंदबाज़ी आक्रमणों में छोटा लेकिन महत्वपूर्ण अंतर था, तो क्या भारत बल्ले से अच्छा प्रदर्शन कर सकता था? साउथ अफ़्रीका की गेंदबाज़ी समय-समय पर घातक थी जैसा कि हमने तीसरे दिन की सुबह देखा था। लेकिन इस पिच पर गेंद पुरानी होने के बाद इतनी हरकत नहीं कर रही थी। दूसरे दिन के खेल के बाद बुमराह ने भी इसका वर्णन किया था। और भारत की दूसरी पारी में एक समय था जब बल्लेबाज़ ख़ुद विकेटों के पतन के लिए ज़िम्मेदार थे।
पहली पारी की ही तरह कोहली ने दूसरी पारी में ऑफ़ स्टंप के बाहर की गेंदों को अनुशासन के साथ छोड़कर 142 गेंदों पर 29 रन बनाए थे। जहां उनके छोर से रन धीमी गति से आ रहे थे, वहीं दूसरे छोर पर ऋषभ पंत ने अर्धशतक पूरा कर लिया था।
ठीक उसी समय लुंगी एनगिडी की गेंद पर कोहली शरीर से दूर ड्राइव खेल गए और दूसरी स्लिप में कैच थमा बैठे। रविचंद्रन अश्विन और ठाकुर, इस टीम में भारत के ऑलराउंडर भी कुछ इसी अंदाज़ में चलते बने। यह शायद एकाग्रता में हुई चूक थी जिसे कोहली ने प्रेज़ेंटेशन में मैच बदलने वाली घटना बताया।
उन्होंने कहा, "पिछले कुछ वर्षों में विदेशी दौरों पर हमारी दिक़्क़त रही है कि हम अपनी तरफ़ झुके हुए मैच पर पकड़ मज़बूत नहीं कर पाए हैं। जब हमने ऐसा किया है, हम घर से बाहर भी टेस्ट मैच जीतने में सफल हुए हैं। लेकिन जब हमने ऐसा नहीं किया है, तब हमारी एकाग्रता में भारी चूक हुई है जिसकी क़ीमत हमें पूरे टेस्ट मैच के रूप में चुकानी पड़ी है। आधा घंटा या 45 मिनट... आप इसे अमल करने में हुई भूल कह सकते हैं। लेकिन बात इसी पर आ जाती है कि हमने कई बार गुच्छों में विकेट गंवाए हैं जिस वजह से हम महत्वपूर्ण क्षणों और उसके कारण टेस्ट मैचों को जीत नहीं पाए हैं।"
इस सीरीज़ में भारत के पास रविंद्र जाडेजा उपलब्ध नहीं थे जो हालिया वर्षों में विदेशी टेस्ट मैचों में टीम के प्रमुख ऑलराउंडर हैं। भारत ने तो कई बार उन्हें पंत से पहले बल्लेबाज़ी करने भेजा है। अश्विन भी पहले भारत के लिए छठे नंबर पर बल्लेबाज़ी कर चुके हैं लेकिन अब उनके बल्लेबाज़ी में काफ़ी गिरावट आई है।
पिछले एक वर्ष में अश्विन की बल्लेबाज़ी में पुराना जादू लौटता नज़र आया है और तेज़ गेंदबाज़ों के ख़िलाफ़ उनका आक्रामक अंदाज़ इसके पीछे का मुख्य कारण रहा है। कानपुर टेस्ट में उनकी पारी में घातक साबित हो रहे टिम साउदी के विरुद्ध ऑफ़ ड्राइव अहम हिस्सा थी और वह केपटाउन में एनगिडी के ख़िलाफ़ भी कुछ ऐसा करना चाहते थे।
लेकिन अश्विन ने दिखाया है कि वह एक छोर पर डटे रह सकते हैं। अगर वह टिके रहते और पंत दूसरे छोर से आक्रमण करते तो शायद वह बेहतर रणनीति होती। एनगिडी की उन तीन विकेटों ने मैच का रुख़ पलट दिया और एक समय 250 की ओर अग्रसर भारत ने अंततः 212 रनों का लक्ष्य रखा।
कोहली ने प्रेस कॉन्फ़्रेंस में कहा, "जब मैं बल्लेबाज़ी की बात करता हूं तो हम उसमें निचले मध्यक्रम को भी जोड़ते हैं। ध्यान सिर्फ़ चार या पांच खिलाड़ियों पर नहीं बल्कि सातवें और आठवें नंबर के बल्लेबाज़ पर भी दिया जाना चाहिए ताकि हम सम्मानजनक स्कोर तक पहुंच सके। सभी जानते हैं कि उन्हें साथ मिलकर यह ज़िम्मेदारी निभानी है।"
उन्होंने आगे कहा, "सभी जानते हैं कि उन्होंने ऐसा प्रदर्शन नहीं किया जो हमें बेहतर स्थिति में डाल सकता था और मुझे लगता है कि इसी कारणवश हम यह दो टेस्ट मैच जीत नहीं पाए। हमने एक सेशन में बहुत विकेट गंवाए जो पहले भी हो चुका है।"
जबकि अश्विन और शार्दुल ने इस सीरीज़ के दौरान बल्ले से अहम योगदान दिया है, भारत जानता है कि अपने करियर के इस दौर में वह दोनों आठवें नंबर के बल्लेबाज़ हैं। और तो और वह दोनों मिलकर जाडेजा की कमी को पूरा नहीं कर सकते हैं।

कार्तिक कृष्णस्वामी ESPNcricinfo में सीनियर सब एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।