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भारत को खिलाड़ियों के संघ की आवश्यकता क्यों है? एक पूर्व क्रिकेटर से पूछें

ICA जैसे संगठन पूर्व खिलाड़ियों की मदद के लिए पूरी तरह से सफल नहीं हो रहे हैं

India coach Anshuman Gaekwad checks out the pitch three days before the Test, New Zealand vs India, second Test, Wellington, December 23, 1998

अंशुमन गायकवाड़ को बीसीसीआई ने एक करोड़ रुपए की सहायता राशि देने का ऐलान किया है  •  Barry Durrant/Getty Images

30 जून को BCCI सचिव जय शाह ने T20 विश्व कप में भारत को मिली जीत के लिए, बोर्ड की तरफ़ से उपहार स्वरूप 125 करोड़ रुपये के पुरस्कार की घोषणा की।
2 जुलाई को संदीप पाटिल ने एक अख़बार के कॉलम के माध्यम से BCCI से अपने पूर्व भारतीय टीम के साथी अंशुमन गायकवाड़ के इलाज के लिए आर्थिक सहायता प्रदान करने की अपील की, जो वर्तमान में लंदन में कैंसर से जूझ रहे हैं। पाटिल ने लिखा कि उन्होंने और दिलीप वेंगसरकर ने BCCI के कोषाध्यक्ष आशीष शेलार से मदद मांगी थी। "मुझे यक़ीन है कि वह इसकी सुविधा प्रदान करेंगे और अंशु की जान बचाएंगे।"
ग्यारह दिन बाद, कपिल देव ने भी इस मामले में हस्तक्षेप किया। उन्होंने BCCI को लिखे पत्र में कहा, "मुझे पता है कि बोर्ड उनकी देखभाल ज़रूर करेगा। हम किसी को मजबूर नहीं कर रहे हैं। लेकिन अंशु की मदद अंतरात्मा की आवाज़ सुनकर करनी होगी।"
पिछले रविवार को BCCI ने घोषणा की कि वह अंशुमन के इलाज के लिए एक करोड़ रुपये की सहायता राशि देगा।
आप इन दो घटनाओं के बारे में सोचें - विश्व कप विजेताओं को दी जाने वाली धनराशि और पूर्व खिलाड़ी और कोच की दुर्दशा। अगर आप इस विषय में थोड़ा और सोचना चाहें तो यह इस जानकारी के बारे में सोचिए - अंशुमन भारतीय क्रिकेटर्स संघ (ICA) के अध्यक्ष हैं, जो सेवानिवृत्त क्रिकेटरों की मदद के लिए बनाया गया है और BCCI द्वारा मान्यता प्राप्त निकाय है।
ICA 2019 में अस्तित्व में आया था। इसके संक्षिप्त इतिहास के माध्यम से इसके बारे में जानने से पहले, यह जानना ज़्यादा उल्लेखनीय है कि यह क्या नहीं कर सकता। इसकी सदस्यता केवल पूर्व खिलाड़ियों तक ही सीमित है, और यह वर्ल्ड क्रिकेटर्स एसोसिएशन (पूर्व में फ़ेडरेशन ऑफ़ इंटरनेशनल क्रिकेटर्स एसोसिएशन) से संबद्धित नहीं है। ICA नाम से खिलाड़ियों का संघ ज़रूर है लेकिन वास्तिविकता में यह एक संघ के ढांचे में ढलने से काफ़ी दूर है। यहां तक ​​कि लोढ़ा समिति (जिसे सुप्रीम कोर्ट द्वारा 2013 के IPL सट्टेबाज़ी कांड के मद्देनज़र BCCI में व्यापक सुधारों की सिफ़ारिश करने का काम सौंपा गया था) ने ICAके गठन का आह्वान करते हुए कहा था कि यह एक संघ के रूप में कार्य नहीं करेगा।भारत और पाकिस्तान ही ऐसे प्रमुख क्रिकेट देश हैं जिनके पास मान्यता प्राप्त खिलाड़ी संघ नहीं है।
इस पृष्ठभूमि के ख़िलाफ़, जय शाह ने विश्व कप में मिली जीत के लिए जिस पुरस्कार की घोषणा की थी, उसमें भी एक अलग ही मामला नज़र आता है। ऐसा प्रतीत होता है कि उस फ़ैसले को अकेले शाह ने ही लिया होगा। पुरस्कार की राशि क्या होगी, यह फ़ैसला किसने लिया ? क्या इस मामले में कोच, चयनकर्ता या खिलाड़ियों के पास कुछ बोलने का अधिकार था?  या इस फ़ैसले को कुछ ही मिनटों में तय कर लिया गया था, जैसा कि बाहर से प्रतीत हो रहा था।और अगर BCCI इतना जल्दी ऐसा फै़सला कर सकता है, तो उसे अन्य मामलों पर ध्यान देने में इतना समय क्यों लगता है?
ये प्रश्न निश्चित रूप से अलंकारिक हैं, क्योंकि चीज़ें हमेशा से ऐसी ही रही हैं। BCCI दुनिया का सबसे अमीर क्रिकेट बोर्ड है, इस बात में कोई शक़ नहीं है। भारत के क्रिकेटर भी दुनिया के सबसे अमीर क्रिकेटरों में शामिल हैं, लेकिन यहां  एक समस्या है।  अमीर होने का मामला सिर्फ़ कुछ खिलाड़ियों तक सीमित है। आप भारतीय क्रिकेट के सभी खिलाड़ियों के बारे में ऐसा नहीं कह सकते हैं। BCCI के सीनियर टूर्नामेंटों में खेलने वाले अधिकांश पेशेवर क्रिकेटरों का IPL या WPL में अनुबंध नहीं होता है, जहां सबसे अधिक पैसा इकट्ठा होता है। घरेलू टीमों द्वारा भी उनका अनुबंध नहीं किया जाता है, भले ही ऐसा करने की मांग बढ़ रही है, और ज़्यादातर वे मैच फ़ीस पर ही निर्भर रहते हैं।
यह जीविका कमाने का एक अनिश्चित तरीका है। इसमें 30 से 40 वर्ष की आयु के बीच आपकी जीविका का संतुलन ख़राब होने से लेकर अंत की तरफ़ बेधड़क आगे बढ़ता है। इस अनिश्चितता का एक उदाहरण तब सामने आया जब कोविड-19 ने 2020-21 के घरेलू सत्र में खलल डाला, जिससे रणजी ट्रॉफ़ी को रद्द करना पड़ था।  रणजी में खिलाड़ियों को अच्छा पैसा कमाने का मौक़ा मिलता है। इस वजह से औसत पुरुष घरेलू खिलाड़ी, जो आमतौर पर प्रति सीज़न लगभग 12-14 लाख रुपये कमाता है, उसे 2020-21 के लिए लगभग 3-4 लाख रुपये ही मिल पाए।
BCCI ने आख़िरकार 2020-21 में रद्द किए गए टूर्नामेंटों के लिए खिलाड़ियों को उनकी सामान्य मैच फ़ीस का 50% भुगतान किया, लेकिन यह मुआवज़ा जनवरी 2022 में ही मिला। इस मामले की भी तुलना विश्व कप पुरस्कार की घोषणा से की जा सकती है। महिला T20 विश्व कप 2020 में भारतीय  टीम उपविजेता रही थी। उस समय ICC के द्वारा जो धनराशि महिला टीम को मिली थी, उसे वितरित करने में भी BCCI को लगभग 15 महीने लग गए थे।
बड़ी तस्वीर काफी स्पष्ट है। BCCII में दो सी (C) हैं - नियंत्रण (Control) और क्रिकेट (Cricket) इसमें क्रिकेट से पहले नियंत्रण आता है। इसीलिए इसने ऐतिहासिक रूप से खिलाड़ियों को संगठित होने से रोकने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है। यहां तक कि लोढ़ा समिति, जिसने BCCI के इतने विरोध किए, उसने भी इसके "यूनियनों के गठन की आशंका" को स्वीकार कर लिया। यहां तक कि BCCI की शीर्ष खिलाड़ियों के प्रति उदारता को भी इसी नज़रिए से देखा जा सकता है। ताकि उन्हें संगठित होने से रोका जाए।
यह बिल्कुल भी असामान्य नहीं है कि शीर्ष अंतर्राष्ट्रीय खिलाड़ी अपने कम भाग्यशाली सहयोगियों का ख्याल रखते हैं। उदाहरण के लिए 2017 में ऑस्ट्रेलिया के सबसे बड़े खिलाड़ियों ने क्रिकेट ऑस्ट्रेलिया के एक ऐसे वित्तीय सौदे को अस्वीकार कर दिया, जो उन्हें घरेलू खिलाड़ियों की क़ीमत पर अमीर बना देता, और उन्होंने एक लंबे और कड़े विवाद के दौरान अपनी बात मानी। यह मान लेना उचित है कि भारत के अंतर्राष्ट्रीय सुपरस्टार अपने रणजी ट्रॉफ़ी टीम के साथियों और महिला क्रिकेट सर्किल में अपने समकक्षों की आजीविका के बारे में चिंतित हैं, लेकिन उनके लिए वास्तव में कुछ करने का कोई रास्ता नहीं है। भारतीय क्रिकेटर्स एसोसिएशन (ICA) जैसा कोई संगठन तो मौजूद है, लेकिन यह उन पूर्व खिलाड़ियों की ज़रूरतों को पूरा करने में भी सक्षम नहीं लगता, जिनका वह प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें इसके अध्यक्ष भी शामिल हैं। भारतीय क्रिकेट में हर चीज़ और हर किसी की तरह, यह केवल BCCI के दिल की दया की अपील ही कर सकता है।

कार्तिक कृष्णास्वामी ESPNcricinfo में सहायक ए़डिटर हैं