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आईपीएल 2022 : कैसा है 10 टीमों का स्वरूप?

अभी कोई भी टीम फ़ेवरिट नहीं है

शनिवार से शुरु होने जा रहे आईपीएल के 15वें संस्करण से पहले किसी भी एक टीम पर दांव नहीं लगाया जा सकता है। इस वक्त स्पष्ट तौर पर यह नहीं बताया जा सकता कि इस सीज़न में कौन सी टीम फ़ेवरेट है। नए सीज़न में दस टीमों के खेलने ने कई दिलचस्प चर्चाओं को जन्म दे दिया है। ऐस में ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो ने आगामी सीज़न में मैच के नतीजों को प्रभावित करने की क्षमता रखने वाले तमाम ट्रेंड्स व फ़ैक्टर्स पर प्रकाश डाला है। इसके साथ ही क्या यह सत्र अब तक का सबसे खुला सीज़न होगा?
पावरप्ले में तेज़ गेंदबाज़ों का हो सकता है दबदबा
छोटी बॉउंड्री, छोटे मैदान, ओस, गीली गेंद भले बल्लेबाज़ों के लिये अधिक मददगार साबित होगी। लेकिन आईपीएल के ट्रेंड कुछ और ही कह रहे हैं। पिछले आईपीएल का पहला चरण, जो कि आंशिक रूप से मुंबई में ही खेला गया था। उस सीज़न में पावरप्ले में तेज़ गेंदबाज़ों का ही दबदबा था। ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो लॉग्स के अनुसार पिछले सीज़न के 20 मैचों के दौरान जब पावरप्ले में प्रतिबंध लगा हुआ था, उस दौरान गिरे 33 विकेटों में से कुल 31 विकेट तेज़ गेंदबाज़ों ने ही अपने नाम किये थे। यह आंकड़ा पिछले सीज़न के कुल सात वेन्यू में सबसे अधिक था। स्कोरिंग रेट के लिहाज से भी पिछले सीज़न में वानखेड़े (7.22 स्कोरिंग रेट) शारजाह के ठीक बाद के स्थान पर था, जो कि छोटे मैदानों में से एक है। फ्रैंचाइज़ियों ने इस नीलामी में तेज़ गेंदबाज़ों के ऊपर जमकर पैसों की बारिश भी की है, ऐसै में अपनी टीम को जल्दी ही बेहतर स्थिति में पहुंचाने की ज़िम्मेदारी भी उन्हीं तेज़ गेंदबाज़ों के ऊपर ही होगी।
नया नियम जो मैच का पासा पलट सकता है
इस सीज़न में एक पारी में दो रिव्यू के विकल्प के अलावा एक ऐसा नियम भी लागू है जो मैच का पासा पलट सकता है। मेरिलबोर्न क्रिकेट द्वारा संशोधित किये गये नियम के इस आईपीएल में भी लागू होने के कारण अब बल्लेबाज़ के कैच आउट हो जाने की स्थिति में मैदान में प्रवेश करने वाला नया बल्लेबाज़ ही स्ट्राइक लेगा। इससे पहले नियम में यह था कि अगर कैच आउट होने से पहले नॉन स्ट्राइकर एंड पर खड़ा बल्लेबाज़ आउट होने वाले बल्लेबाज़ को क्रॉस कर जाता था, तब नॉन स्ट्राइकर एंड का बल्लेबाज़ स्ट्राइक ले पाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। इस संशोधित नियम का सीधा फ़ायदा गेंदबाज़ों को मिलेगा। भले ही यह नियम पूरी पारी में लागू होगा लेकिन यह संशोधन पारी के अंतिम ओवरों के दौरान अधिक महसूस होगा।
पिछले सीज़न चेन्नई सुपरकिंग्स और दिल्ली कैपिटल्स के बीच हुए प्लेऑफ़्स के मैच को मिसाल के तौर पर लिया जा सकता है। सीएसके को मैच जितने के लिये अंतिम ओवर में तेरह रनों की दरकार थी। कैपिटल्स को ज़रूर लगा होगा कि यह मैच उनके कब्ज़े में है जब टॉम कर्रन ने ओवर की पहली ही गेंद पर मोईन अली को पवेलियन चलता कर दिया था। मोईन अली स्क्वायर लेग के फ़ील्डर को क्लियर करने से चूक गए थे। लेकिन तब तक इससे पिछले ओवर की अंतिम गेंद आवेश खान को छक्का जड़ने वाले एमएस धोनी मोईन अली को क्रॉस कर स्ट्राइक पर पहुंच गए थे और उन्होंने ओवर में दो गेंद शेष रहते ही सीएसके को जीत दिलाकर फाइनल में पहुंचा दिया। लेकिन अगर उस मैच में भी नया नियम लागू होता तो धोनी की जगह पर स्ट्राइक पर जाडेजा आते और हो सकता है कि कर्रन जाडेजा को आउट कर अपनी हैट्रिक पूरी कर लेते।
7.30 बजे से मैच की शुरुआत और ओस फैक्टर
आपको पिछले आईपीएल के दौरान एमएस धोनी का 7.30 बजे से मैच की शुरुआत और ओस के प्रभाव से संबंधित कथन याद है? धोनी ने कहा था कि आठ बजे के आसपास ओस पड़ने की शुरुआत होने की वजह से पहले बल्लेबाज़ी करने वाली टीम पर न सिर्फ पावरप्ले में 15-20 अतिरिक्त रन बनाने का दबाव था। बल्कि दूसरी पारी में आउटफ़ील्ड के चमकदार व नम होने के चलते गेंदबाज़ी करते वक्त उन्हें जल्दी विकेट चटकाने होते थे। धोनी ने इस ओर इशारा किया था कि मैच में पहली गेंदबाज़ी करने वाली टीम अधिक फायदे में रहती है क्योंकि ओस पड़ने की शुरुआत होने से पहले करीब आधे घंटे तक गेंदबाज़ी टीम के पास सूखी गेंद होती है। आईपीएल में साढ़े सात बजे से मैच के आगाज़ का प्रावधान इसलिये किया गया है ताकि मैच मध्य रात्रि के बाद तक जारी न रहे। जैसा कि पिछले सीज़न में चलन बन गया था। लिहाज़ा टॉस के लिये मैदान में जाने से पहले, दोनों टीमों के ज़हन में औस का फैक्टर ज़रूर रहेगा।
सीधी बॉउंड्री छोटी जबकि स्क्ववायर बॉउंड्री लंबी है
मुंबई के एमसीए स्टेडियम सहित चोरों वेन्यू की सीधी बॉउंड्री काफी छोटी है। चारों स्टेडियम में सीधी बॉउंड्री करीब 70 यार्ड की है। मुंबई के तीनों मैदान के सतह पर मौजूद लाल मिट्टी गेंद का बल्ले पर आसानी से आने में मददगार सिद्ध होती है। जिसका मतलब है कि पहले बल्लेबाज़ी करने वाली टीम के लिये 170-180 रनों का स्कोर डिफ़ेंड करने के लिये एक अच्छा टोटल होगा।
हालांकि भारत और आरसीबी के स्ट्राइक गेंदबाज़ हर्षल पटेल(आईपीएल 2021 के लीडिंग विकेट टेकर) के मुताबिक बल्लेबाज़ों के लिये मददगार सिद्ध रहने वाले चारों ही मैदान पर गेंदबाज़, हार्ड लेंथ पर गेंदबाज़ी कर बल्लेबाज़ों पर हावी हो सकते हैं। जहां पिछले कुछ अरसे में क्रिकेट नहीं खेली गयी है। छोटी बाउंड्री की समस्या से निपटने के लिये हर्षल पटेल के पास ऑफ स्टंप के बाहर बल्लेबाज़ों के पैरों पर गेंद डालने की बेहतरीन रणनीति है। आखिर कैसे? वाइड आउट साइड द ऑफ स्टंप गेंदबाज़ी कर एमसीए, ब्रेबोर्न और डीवाई पाटिल की लंबी स्क्वायर बाउंड्री का लाभ उठाया जा सकता है। तीनों ही मैदानो पर स्क्वायर बॉउंड्री लगभग 75 यार्ड की है, जबकि इन तीनों मैदानों के मुकाबले वानखेड़े में स्क्वायर बॉउंड्री थोड़ी छोटी है। वानखेड़े में स्क्वायर बॉउंड्री लगभग 70 यार्ड की है।
रिस्ट स्पिनर बनाम फ़िंगर स्पिनर
आईपीएल का यह सीज़न चार मैदानों पर खेला जाना है और हर वेन्यू के पास अपनी एक अलग विशेषता है। जोकि स्पिन गेंदबाज़ों के पक्ष में नहीं हैं। हालांकि स्पिनर्स इस टूर्नामेंट में ज़रूर एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेंगे लेकिन ऐसा टूर्नामेंट के दूसरे चरण में प्रवेश करने के बाद होगा। जब चारों ही वेन्यू पर 10-15 मैच खेले जाने के बाद गर्मी के कारण पिचों का धीमा होने की शुरुआत हो जायेगी। हालांकि लीग के पहले हाफ में स्लो लेग ब्रेक गेंदबाज़ों के मुकाबले ऐसे रिस्ट स्पिनर्स अधिक बेहतर स्तिथि में होंगे जिनके पास तेज़ गेंद फेंकने की क्षमता है। लिहाज़ा राशिद खान, रवि बिश्नोई और यजुवेंद्र चहल जैसे गेंदबाज़ कुलदीप यादव जैसे गेंदबाज़ों की तुलना में अधिक बेहतर स्थिति में होंगे। कुलदीप यादव को पिछले कुछ सीज़न में अपनी गेंदों को गति प्रदान करने में संघर्ष करते भी देखा गया है।
पिच में रहने वाली संभावित उछाल, मैदान की छोटी बॉउंड्री और ओस तीनों ऐसे फैक्टर हैं जोकि रिस्ट स्पिनर्स के पक्ष में नहीं हैं। लिहाज़ा फिंगर स्पिनर्स को टूर्नामेंट की शुरुआत में बल्लेबाज़ों को नियंत्रण करने की भूमिका में देखा जा सकता है। उन्हें नियमित अंतराल पर गेंद को सीमारेखा के पार जाने से रोकना होगा। जेसे-जैसे टूर्नामेंट आगे बढ़ेगा पिच के धीमा होने के कारण फिंगर स्पिनर्स की भूमिका अधिक प्रभावशाली हो सकती है।
नया सीज़न, नए कप्तान, नई चुनौतियां
दिवंगत शेन वॉर्न, 2008 में आईपीएल का खिताब जीतने वाले पहले कप्तान थे। शेन वॉर्न के बाद, एमएस धोनी और रोहित शर्मा ही कुल 9 मर्तबा अपनी-अपनी टीमों के लिये आईपीएल की ट्रॉफी जीत चुके हैं। डेविड वॉर्नर ने सनराइज़र्स हैदराबाद का कप्तान रहते हुए 2016 में आईपीएल का खिताब अपनी टीम के नाम किया था। आईपीएल का खिताब जीतने वाले यह चारों ही कप्तान न सिर्फ मैच विनर थे बल्कि यह सभी मैदान पर एक बेहतर रणनीतिकार भी थे। कठिन परिस्थितियों में उनके निर्णय लेने की क्षमता के कारण ही उनकी टीमें आईपीएल की ट्रॉफी अपने नाम करने में कामयाब हो पायी। आईपीएल के इस सीज़न में चार नये कप्तान मैदान पर उतरेंगे। चैन्नई सुपरकिंग्स के रवींद्र जाडेजा, गुजरात टाइटंस के हार्दिक पांड्या, पंजाब किंग्स के मयंक अग्रवाल और रॉयल चैलेंजर्स बैंगलोर के लिये फाफ डु प्लेसिस आईपीएल में नये कप्तान के तौर पर अपनी टीमों की अगुवाई करेंगे। इन चारों कप्तानों में फाफ डु प्लेसिस के पास ही लंबे वक्त तक कप्तानी करने का अनुभव है, डु प्लेसिस साउथ अफ्रीका की कप्तानी भी कर चुके हैं। लेकिन आरसीबी की कप्तानी करना एक अलग चुनौती है। डु प्लेसिस के पूर्वाअधिकारी विराट कोहली, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक सफल कप्तान होने और तमाम खूबियां होने के बावजूद आरसीबी को उसका पहला आईपीएल खिताब जिता पाने में असफल रहे।
मयंक अग्रवाल टीम के अनिल कुंबले(पंजाब किंग्स के कोच) का सहयोग पाकर खुश ज़रूर हो सकते हैं। लेकिन अंतोगत्वा टीम का भरोसा जितने और सम्मान हासिल करने की ज़िम्मेदारी मयंक अग्रवाल पर ही है। जिनकी टीम में विस्फोटक बल्लबेबाज़ों की भरमार है। इसके साथ ही मयंक अग्रवाल को अपने टीम मालिको का भी ख्याल रखना होगा जोकि आईपीएल ट्रॉफी के सूखे को खत्म करने के लिये व्याकुल हैं। जिन्होंने आईपीएल की पहली ट्रॉफी जितने के लिये टीम का नाम बदलने से लेकर अतीत में कई कप्तानों और कोच को बर्खास्त करने से भी परहेज़ नहीं किया।
सीएसके के पहले मैच से ठीक 48 घंटे पहले जाडेजा को टीम का नया कप्तान नियुक्त किया गया। कप्तान नियुक्त किये जाने के बाद खुद जाडेजा ने भी यह बात मानी है कि उनके पास भरने के लिये एक बहुत बड़ा रिक्त स्थान है। हालांकि जाडेजा के पास अब भी ज़रूरत पड़ने पर मैदान में एमएस धोनी हैं। लेकिन खुद एमएस धोनी भी जाडेजा को बतौर कप्तान अपने पैरों पर खड़ा होता देखना चाहैंगे और यही सफल टीमों की सफलता की कुंजी भी है।
दो नए नियम जो परिणाम बदलने की क्षमता रखते हैं
इस आईपीएल हर टीम के पास प्रति पारी न सिर्फ दो रिव्यू लेने का विकल्प होगा। बल्कि दो संशोधित खेल स्थितियां भी होंगी जोकि मैच का पासा पलट देने की क्षमता रखती हैं। एक संशोधित नियम वह है जिसे आईसीसी ने स्लो ओवर रेट के सिलसिले में इसी वर्ष जनवरी महीने में, पुरुष व महिला दोनों के ही टी ट्वेंटी फॉर्मेट में लागू किया था। नियम के मुताबिक अगर गेंदबाज़ी टीम, पारी के 85वें मिनट में अंतिम ओवर डालने की स्थिति में नही रहती है तो उसे तीस यार्ड के घेरे के बाहर पांच फील्डर रखने से वंचित रहना पड़ेगा। पेनाल्टी के तौर पर गेंदबाज़ी टीम को आउटफील्ड में पांच के बजाय चार फील्डर रखने की ही अनुमति होगी। लिहाज़ा इस पैनल्टी से बचने के लिये कप्तान और टीम मैनेजमेंट को वक्त ज़ाया करने से बचना होगा। इसके साथ ही मैदान पर जल्दी निर्णय भी लेने होंगे। ऐसा करने में असफल रहने पर डेथ व निर्णायक ओवरों में वे विपक्षी टीम को लाभ पहुंचा देंगे। जोकि निश्चित तौर पर मैच के परिणाम को प्रभावित कर सकता है।
दूसरा नियम कैच आउट होने की स्थिति में नॉन स्ट्राइकर एंड के बल्लेबाज़ के स्ट्राइक न लेने से जुड़ा है। मेरिलबोर्न क्रिकेट के संशोधित नियम के इस आईपीएल में भी लागू होने के कारण अब बल्लेबाज़ के कैच आउट हो जाने की स्थिति में मैदान में प्रवेश करने वाला नया बल्लेबाज़ ही स्ट्राइक लेगा। इससे पहले नियम में यह था कि अगर कैच आउट होने से पहले नॉन स्ट्राइकर एंड पर खड़ा बल्लेबाज़ आउट होने वाले बल्लेबाज़ को क्रॉस कर जाता था तब नॉन स्ट्राइकर एंड का बल्लेबाज़ स्ट्राइक ले पाता था। लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। इस संशोधित नियम का सीधा फ़ायदा गेंदबाज़ों को मिलेगा। भले ही यह नियम पूरी पारी में लागू होगा लेकिन यह संशोधन पारी के अंतिम ओवरों के दौरान अधिक महसूस होगा।
पिछले सीज़न चैन्नई सुपरकिंग्स और दिल्ली कैपिटल्स के बीच हुए प्लेऑफ्स के मैच को मिसाल के तौर पर लिया जा सकता है। सीएसके को मैच जितने के लिये अंतिम ओवर में तेरह रनों की दरकार थी। कैपिटल्स को ज़रूर लगा होगा कि यह मैच उनके कब्ज़े में है जब टॉम कर्रन ने ओवर की पहली ही गेंद पर मोइन अली को पवेलियन चलता कर दिया था। मोइन अली स्क्वायर लेग के फील्डर को क्लियर करने से चूक गये थे। लेकिन तब तक इससे पिछले ओवर की अंतिम गेंद आवेश खान को छक्का जड़ने वाले एमएस धोनी मोइन अली को क्रॉस कर स्ट्राइक पर पहुंच गये थे। और उन्होंने ओवर में दो गेंद शेष रहते ही सीएसके को जीत दिलाकर फाइनल में पहुंचा दिया। लेकिन अगर उस मैच में भी नया नियम लागू होता तो धोनी की जगह पर स्ट्राइक पर जाडेजा आते और हो सकता है कि कर्रन जाडेजा को आउट कर अपनी हैट्रिक पूरी कर लेते।
भारतीय प्रतिभाओं की होगी परीक्षा
लीग में दस टीमों का हिस्सा लेने का आईपीएल का निर्णय हमेशा से ही टूर्नामेंट की गुणवत्ता की कड़ी परीक्षा लेता है। जिस तरह से कुछ स्किल सेट के लिये नीलामी की कीमतों में उतार-चढ़ाव आया, वह इसका पहला संकेतक था कि डिमांड और सप्लाई का अंतर अभी भी एक चुनौती का सबब है। नीलामी के दौरान तमाम टीमों को नयी प्रतिभाओं की तलाश के बनिस्बत पुराने खिलाड़ियों का ही पीछा करते देखा गया था। 2011 के सीज़न में जब दस टीमें आईपीएल का हिस्सा थीं, ठीक उसी सीज़न के तर्ज पर इस सीज़न में भी एकतरफा मैच होने की संभावना अधिक है।
लीग में दस टीमों का होना आईपीएल की प्रतिस्पर्धी प्रवृति को भी प्रभावित कर सकता है। 2016 के सीज़न के बाद से ही प्लेऑफ्स की तस्वीर हर मर्तबा लीग के अंतिम मैच में साफ हुई है। लेकिन क्या दस टीमों वाला आईपीएल इस ट्रेंड को जारी रख पायेगा? कुछ क्रिकेट पण्डितों का मानना है कि आईपीएल की प्रतिस्पर्धी प्रवृति को जीवित रखने के लिये टीमों को पांच विदेशी खिलाड़ियों के साथ मैदान में उतरने की अनुमति मिलनी चाहिये। हालांकि यह तर्क संगत नहीं लगता। मिसाव के तौर पर अगर इसी नीलामी को लिया जाये, तो दिल्ली कैपिटल्स और लखनऊ सुपरजायंट्स आठ विदेशी प्लेयर्स के स्लोट तक को नहीं भर पायीं। इसके अलावा आईपीएल के शुरुआती मैचों में विदेशी खिलाड़ियों की अनुपलब्धता भी एक मसला है। आईपीएल में अतिरिक्त टीमों का होना एक लिहाज से लाभकारी ज़रूर है कि इससे भारतीय विशेषकर अनकैप्ड खिलाड़ियों को अधिक अवसर प्रदान करता है। आईपीएल में एक तरफ युवा खिलाड़ी उत्साहित होंगे तो वहीं दूसरी तरफ उनकी फ्रेंचाइज़ी चिंतित व आशान्वित होंगी कि यह खिलाड़ी अपनी प्रतिभा का भरपूर इस्तेमाल करते हुए आईपीएल के दबाव का सामना कर सकें।