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कैसे सौराष्ट्र ने अपने खेल को बदला और रणजी सीज़न को पटरी पर लौटाया

कप्तान जयदेव उनादकट ने बताया कि कैसे टीम ने आत्ममंथन किया, व्यक्तिगत कमियों का विश्लेषण किया और चीजों को नए तरीक़े से लागू करके इस सीज़न में वापसी की

Jaydev Unadkat sliced through Bengal's line-up, Bengal vs Saurashtra, 1st day, Ranji Trophy 2022-23 final, Kolkata, February 16, 2023

इस रणजी सीजन में सौराष्ट्र की टीम ने कमाल की वापसी करते हुए नॉकआउट में जगह बनाई  •  PTI

2024-25 रणजी ट्रॉफ़ी के आधे सीज़न तक सौराष्ट्र एक बेहद ख़राब अभियान की ओर बढ़ रहा था। चार मैचों में महज चार अंकों के साथ वे लगभग अंक तालिका में सबसे नीचे थे। ऐसे में उनके लिए नॉकआउट की उम्मीदें दूर की कौड़ी लग रही थी। लेकिन अगले तीन मैचों में उन्होंने तीन लगातार बोनस अंक जीत दर्ज कर शानदार वापसी की और अब घरेलू मैदान पर गुजरात के ख़िलाफ़ क्वार्टर फ़ाइनल में उतरेंगे।
सौराष्ट्र, जो पहले लगभग टूर्नामेंट से बाहर माना जा रहा था, अब तीसरे रणजी ख़िताब की उम्मीद में है। कप्तान जयदेव उनादकट ने कहा, "टीम में बहुत कुछ बदला है। पहले हाफ़ के बाद टीम ने आत्ममंथन किया और खु़द से कड़े सवाल पूछे। हमने ख़ुद से पूछा कि क्या हम वास्तव में उतनी मेहनत कर रहे हैं जितनी करनी चाहिए? शायद हम अपनी पिछली सफलताओं में कुछ ज़्यादा ही बह गए थे। मुझे यह भी लगा कि टीम की औसत उम्र बढ़ने के कारण अब पहले से अधिक मेहनत करने की ज़रूरत थी। 2019-20 में जब हमने ट्रॉफ़ी जीती थी, तब जितनी मेहनत करते थे, उससे ज़्यादा हमें अब करनी होगी। जब यह अहसास हुआ, तो सभी ने वाकई कड़ी मेहनत की।"
उनादकट की अगुवाई में सौराष्ट्र ने मानसिकता बदली, खेल पर ज्‍़यादा ध्यान दिया और मैदान पर अपना सबकुछ झोंक दिया। नतीजा यह रहा कि उन्होंने एक शानदार वापसी की और अब रणजी ट्रॉफ़ी की ख़ि‍ताबी दौड़ में एक मज़बूत दावेदारी हैं।
किसी को भी यह सोचकर शर्मिंदा नहीं होना चाहिए कि वे अपनी ताक़त के अनुसार खेल रहे हैं। मैं सपाट पिच क्यों चाहूंगा और ऐसा विकेट क्यों बनाऊंगा जहां नतीजा ही न निकले? अगर किसी टीम की ताक़त स्पिन है, तो उन्हें इसका फ़ायदा उठाना ही चाहिए। हमने पिछले सीज़न के क्वार्टर फ़ाइनल में तमिलनाडु के ख़िलाफ़ भी इसी तरह की पिच पर खेला था और हार गए थे।
जयदेव उनादकट
आठ साल पहले तक सौराष्ट्र की पहचान उनके चार सुपरस्टार - चेतेश्वर पुजारा, रवींद्र जाडेजा, शेल्डन जैक्सन और जयदेव उनाडकट तक सीमित थी। पुजारा और जाडेजा अधिकतर समय उपलब्ध नहीं रहते थे, इसलिए जैक्सन और उनादकट को ही टीम की ज़‍िम्मेदारी उठानी पड़ती थी। लेकिन 2018-19 से उनादकट ने टीम का नेतृत्व करना शुरू किया, तब से यह धारणा बदल गई।
उनादकट ने कहा, "कुछ साल पहले तक चर्चा हमेशा इस पर होती थी कि व्यक्तिगत रन कैसे बनाए जाएं और टीम में अपनी जगह कैसे बनाए रखी जाए। जब मैंने कप्तानी संभाली, तो मेरी कोशिश थी कि हर खिलाड़ी एक टीम की तरह खेले। इसमें कई बार निःस्वार्थ होना पड़ता है, सामूहिक लक्ष्य तय करने होते हैं, टीम के लक्ष्यों पर बात करनी होती है और टीम की परवाह करनी होती है।
उन्‍होंने कहा, "एक खु़शहाल टीम सामूहिक सफलता के बारे में सोचती है। बेशक़, व्यक्तिगत प्रतिभा की ज़रूरत होती है, लेकिन सभी को एकजुट होकर योगदान देने के लिए ऐसा माहौल बनाना ज़रूरी है, जहां खिलाड़ी केवल अपनी व्यक्तिगत सफलता के बारे में न सोचें। इस आदत को विकसित करना एक चुनौती थी, लेकिन अब टीम का हर खिलाड़ी इसे अच्छी तरह अपना चुका है।"
"अब कई खिलाड़ी 100 से अधिक प्रथम श्रेणी मैच खेलने के क़रीब हैं। इसका मतलब है कि हम सभी लंबे समय से साथ खेल रहे हैं। ऐसा तभी संभव होता है जब टीम में सामूहिक सफलता, एकता और सौहार्द बना रहे। पहले लक्ष्य सिर्फ़ नॉकआउट तक पहुंचने का होता था, लेकिन अब हमारा मानक यह हो गया है कि किसी भी हाल में नॉकआउट में जगह बनानी ही है।"
** जब जनवरी में रणजी सीज़न के दूसरे चरण की शुरुआत हुई, तो उनादकट और टीम प्रबंधन बोनस अंक या समीकरणों पर ध्यान नहीं दे रहे थे। उनका लक्ष्य बस खेल के अहम पलों को जीतना और हर मुक़ाबले में अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना था।
उनादकट ने कहा, "अगर हम बोनस अंकों जैसी चीज़ों के बारे में सोचते, तो यह सही नहीं होता। इसका मतलब होता कि हम पहले पारी में बड़े स्कोर बनाने या जल्दी विकेट लेने के दबाव में आ जाते। मुझे नहीं लगता कि इससे खिलाड़ियों का सर्वश्रेष्ठ निकलकर आता। हमने बस हर मैच से परिणाम निकालने और बल्ले और गेंद दोनों से स्पष्ट इरादा दिखाने की बात की।"
इस लक्ष्य को पाने के लिए, उन्होंने व्यक्तिगत भूमिकाओं पर दोबारा विचार किया। उन्होंने अपनी कमियों का विश्लेषण किया और बारीकियों पर ध्यान दिया।
इस संदर्भ में उन्होंने कहा, "हमारे लिए यह ज़रूरी था कि हम पारंपरिक तरीकों से बाहर सोचें। हम सभी एक तयशुदा सेटअप में सहज हो गए थे, जिससे खेल के वे पहलू नहीं तलाश पा रहे थे जिनके बारे में हमें जानकारी नहीं थी। दूसरी टीमें हमें पढ़ने लगी थीं। उदाहरण के लिए, चिराग जानी दो बार बाउंसर पर आउट हुए, जबकि उनकी भूमिका टर्निंग पिचों पर स्पिन के ख़िलाफ़ हावी होने की थी [तमिलनाडु और रेलवे के ख़िलाफ़]। यह एकमात्र ग़लती नहीं थी, लेकिन एक उदाहरण ज़रूर है।"
"एक गेंदबाज़ी इकाई के तौर पर, हम पहले की तरह प्रभावी नहीं थे। पिछले सीज़न तक हम साझेदारियां तोड़ने में माहिर थे, लेकिन इस सीज़न के शुरुआती तीन मैचों में वैसा नहीं दिखा। इसलिए हमने ईमानदारी से अपनी कमियों को स्वीकार किया। जब आप अपना अहंकार किनारे रख देते हैं, तो यह देखना होता है कि इतने मैच खेलने के बावजूद क्या खिलाड़ी स्वीकार कर सकते हैं कि वे अभी भी कुछ क्षेत्रों में कमज़ोर हैं। मुझे लगता है, हमने इस सीज़न में यह बहुत अच्छी तरह किया।"
तो उनके आउट ऑफ़ द बॉक्स' सोचने से क्या बदलाव आए?
"अर्पित [वसावड़ा] ने पिछले सीज़न तक कभी रिवर्स-स्वीप नहीं खेला था। अब वह स्पिनर्स के ख़िलाफ़ आसानी से स्वीप और रिवर्स-स्वीप खेलने लगे हैं।
"हर कोई जानता है कि शेल्डन स्पिनर्स को सीधा खेलते हैं, इसलिए विपक्षी कप्तान तुरंत उन क्षेत्रों में फ़ील्डर लगा देते हैं। इस सीज़न में वह अपने सर्वश्रेष्ठ फ़ॉर्म में नहीं रहे, लेकिन उन्होंने अपनी बल्लेबाज़ी पर काम किया और नए गैप खोजने शुरू किए।
"हर्विक [जो 56.77 की औसत से 511 रन बना चुके हैं,] ने सीज़न के दूसरे भाग में शानदार प्रदर्शन किया। उनकी शुरुआत से ही इरादा साफ़ था, और मुझे लगता है कि यही टीम के लिए बदलाव का बड़ा कारण बना। शुरुआत में वह इस अंदाज़ में नहीं खेले थे, लेकिन कई बार सिर्फ़ यह दिखाना कि आप पिच पर टिके रहना चाहते हैं और सकारात्मक खेल दिखाना चाहते हैं, दूसरों को भी प्रेरित कर देता है।"
"चिराग जब करियर की शुरुआत कर रहे थे, तब वह एक बल्लेबाज़ थे जो गेंदबाज़ी भी कर सकते थे। लेकिन पिछले चार-पांच सालों में, ख़ासकर कोविड के बाद, हमने उन्हें ऊपर बल्लेबाज़ी कराने के बारे में सोचा। इसकी एक बड़ी वजह यह भी थी कि हमारे पास हर्विक के अलावा कोई स्थायी ओपनर नहीं था। हम इस मौके़ का फ़ायदा नहीं उठा पा रहे थे, इसलिए हमें शीर्ष क्रम में एक और बल्लेबाज़ की ज़रूरत थी।
"चिराग [जो इस सीज़न 500 रन के क़रीब हैं] अक्सर नंबर 6 या 7 पर खेलते हुए दूसरी नई गेंद सामना करते थे। तब हमें लगा कि क्यों न उन्हें और ऊपर बल्लेबाज़ी करने भेजा जाए। अब जिस तरह वह एक बेहतरीन बल्लेबाज़ के रूप में निखरे हैं, उससे लगता है कि वह टीम में एक पूर्ण बल्लेबाज़ के तौर पर खेल सकते हैं। वह 2012-13 से खेल रहे हैं, लेकिन 2019 तक उनके नाम न तो कोई शतक था और न ही कोई पांच विकेट हॉल। अब उनमें यह आत्मविश्वास है कि वह अकेले बल्लेबाज़ के रूप में भी टीम में जगह बना सकते हैं।"
प्रेरक मांकड़ भी ऐसे खिलाड़ी हैं जिन्हें उनादकट के अनुसार अक्सर वह श्रेय नहीं मिलता जिसके वे हक़दार हैं, क्योंकि उनका नाम टॉप विकेट-टेकर की सूची में नहीं रहता। उन्‍होंने कहा, "कई बार प्रेरक चौथे सीम गेंदबाज़ के तौर पर मुझे काफ़ी आज़ादी देते हैं। मैं खु़द को पीछे रख सकता हूं और छोटे स्पैल डाल सकता हूं, जिससे मैं ज़्यादा तेज़ी और तीव्रता के साथ गेंदबाज़ी कर सकता हूं। इन खिलाड़ियों ने टीम को संतुलित बनाए रखा है।"
** कहीं न कहीं, सितारे सौराष्ट्र के पक्ष में हैं। उनके आखिरी दो मुक़ाबले घर में थे, जहां उन्होंने साफ़ कर दिया था कि वे जीत के लिए स्पिन का सहारा लेंगे। दिल्ली के ख़िलाफ़, वापसी करने वाले रवींद्र जाडेजा ने 12 विकेट लिए, जबकि दूसरे जाडेजा (धर्मेंद्रसिंह) ने अंतिम ग्रुप मैच में असम की बल्लेबाज़ी ध्वस्त कर दी।
"लेकिन हां, मैं यह ज़रूर कह सकता हूं कि आने वाले बदलावों को लेकर ईमानदार रहना मददगार होता है। और साथ ही, उन सभी उपलब्धियों का सम्मान और श्रेय देना भी ज़रूरी है जो खिलाड़ियों ने अपने करियर में हासिल की हैं।"
उनादकट को उम्मीद है कि वे एक और ट्रॉफ़ी जीतने का जश्न मना पाएंगे। उन्‍होंने कहा, "टीम का मूड बहुत अच्छा है, क्योंकि जिस तरह हमने इस सीज़न क्वालिफ़ाई किया है, वह रोमांचक रहा है। जब आप इस तरह क्वालिफ़ाई करते हैं, तो बहुत कुछ अलग से करने की ज़रूरत नहीं होती। आपको भरोसा होता है कि चीज़ें अपने आप सही होंगी।
"नॉकआउट में खेलते समय थोड़ी घबराहट ज़रूर होती है, लेकिन यही कारण है कि हमने खुद को इतना मज़बूत बनाया है। पिछले कुछ सीज़नों में खिलाड़ी अब ऐसे दबाव वाले मुक़ाबलों के लिए उत्साहित रहते हैं, बजाय इसके कि वे घबराएं या चिंता करें।"