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रहाणे के लिए मौक़ों को भुनाने का समय आ गया है

काफ़ी शानदार पारियां खेलने के बावजूद भी ऐसा लगता है कि अपनी क़ाबिलियत पर खरे नहीं उतर पाए हैं भारतीय उपकप्तान

देखो देखो वह आ गया, वह फिर से आ गया। अपने आख़िरी टेस्ट शतक के बाद 17 पारियां, 21 की औसत और इस दौरान मात्र दो अर्धशतक; इस दौरे की पांच पारियों में 19 की औसत और हेडिंग्ले की हार में क्रमशः 18 और 10 रन का स्कोर। अजिंक्य रहाणे के बारे में फिर एक बार बात करने का समय आ गया है।
अगर देखा जाए तो हर स्तर पर रहाणे के बारे में बात की जाती है। वह कई मौक़ों पर अपनी क्षमता के अनुसार खेल नहीं दिखाते हैं (77 टेस्ट मैचों के बाद रहाणे की औसत 44 है) या फिर केवल मुश्किल परिस्थितियों में काम आते हैं ( घर की तुलना में विदेशी सरज़मीं पर रहाणे की औसत बेहतर है और वह ऑस्ट्रेलिया, न्यूज़ीलैंड और साउथ अफ़्रीका में 42 की औसत से रन बनाते हैं)। कभी-कभी तो ऐसा भी प्रतीत होता है कि शायद वह इस टीम के असली चतुर कप्तान हैं (उनकी अगुवाई में भारत ने चार टेस्ट मैचों में जीत दर्ज की है और एक टेस्ट ड्रॉ रहा है और तो और 2021 के ऑस्ट्रेलिया दौरे को उनकी कप्तानी के लिए हमेशा याद रखा जाएगा।
हालांकि इस भारतीय बल्लेबाज़ी क्रम में बात करने के लिए कई खिलाड़ी मौजूद हैं जिनके बारे में बात की जाने पर रहाणे से लोगों का ध्यान हट जाता है। जहां विराट कोहली लगातार एक ही अंदाज़ से आउट रहे हैं, वहीं चेतेश्वर पुजारा की बल्लेबाज़ी में लोगों को रन बनाने का इरादा नज़र नहीं आता है। ऋषभ पंत जेम्स एंडरसन को रिवर्स स्वीप लगाकर टेस्ट क्रिकेट की बल्लेबाज़ी को बदल रहे हैं। और तो और इस समय के सबसे बढ़िया टेस्ट ओपनर रोहित शर्मा को तब तक सफ़ल ओपनर नहीं माना जाएगा जब तक वह विदेश में शतक ना जड़ दे। इन सबके बाद अगर बात करने को समय बचता है तो रहाणे का नंबर आता है।
टीम में रहाणे के स्थान पर पिछले टेस्ट मैच से पहले भी सवालिया निशान उठाए गए थे। और वह भी तब जब दूसरे टेस्ट मैच में एक मुश्किल परिस्थिति में उन्होंने 61 रनों की बहुमूल्य पारी खेली थी। मैच के बाद रहाणे ने कहा था कि लोग हमेशा महत्वपूर्ण लोगों के बारे में बातें करते हैं और क्योंकि वह इस टीम का महत्वपूर्ण हिस्सा है, उनके बारे में टिप्पणी की जाती है।
आप रहाणे के इस जवाब के कई मतलब निकाल सकते हैं। शायद यह जवाब ख़ुद को तस्सली देने का एक तरीक़ा हो जब सुनील गावसकर जैसे दिग्गज ने भी सीरीज़ से पहले ऐसा संकेत दिया था कि रहाणे एक अहम खिलाड़ी हैं और शायद पुजारा के साथ-साथ टीम में उन्हें भी एक ख़तरे के रूप में देखा जा रहा है। शायद रहाणे हमें याद दिला रहे थे कि आधुनिक क्रिकेट में कमज़ोर हुई भारतीय टीम की सबसे यादगार सीरीज़ में शतक लगाते हुए उन्होंने ही कप्तानी की थी। पुजारा, कोहली और रहाणे की तिकड़ी का पिछले दो सालों में वो इकलौता शतक है।
या शायद रहाणे अपने करियर के अनुरूप एक और सीरीज़ का जवाब दे रहे थे। लॉर्ड्स में उनका अर्धशतक उसी मैदान पर सात साल पहले बनाए 103 रनों जैसा था। या दिल्ली में मैच में दो सैंकड़े जब पूरी सीरीज़ में और कोई शतक नहीं मार पाया था। या साउथ अफ़्रीका में दो टेस्ट टीम से बाहर रहने के बाद आख़िरी मैच में 48, अथवा बेंगलुरु टेस्ट की दूसरी पारी में पुजारा के साथ 118 की साझेदारी में बनाए गए 52 रन।
लॉर्ड्स में उस 61 रनों की पारी के इर्दगिर्द रहाणे ने अपने खेल जीवन की झांकी दिखाई है - कुछ रन बनाना और कुछ ख़ास करने से पहले आउट हो जाना। इंग्लैंड में सात पारियों में से चार में रहाणे ने घंटे भर से ज़्यादा बल्लेबाज़ी की, और सिर्फ़ दो ही बार 10 से कम पर आउट हुए। फिर भी उनकी औसत 19 की है।
रहाणे, कोहली की तरह एक ही तरीक़े से आउट नहीं हो रहे हैं। इसका मतलब यह है कि उनकी तकनीक में ऐसी कोई ख़रीबी नहीं हैं जिसका गेंदबाज़ फ़ायदा उठा सकते हैं। विश्व टेस्ट चैंपियनशिप फ़ाइनल में एक अहम पारी खेलने के बाद वह स्क्वेयर लेग पर कैच आउट हुए। उस शॉट में वह ना तो पुल मार रहे थे और ना ही शॉर्ट आर्म जैब। उसी मैच की दूसरी पारी में वह लेग साइड के बाहर की गेंद पर विकेटकीपर को कैच थमाकर वापस लौट गए।
ट्रेंट ब्रिज में वह रन आउट हुए और लॉर्ड्स में पहले उन्होंने एंडरसन की बाहर जाती गेंद को खेला और बाद में मोईन की गेंद पर लाइन पढ़ने से चूक गए। हेडिंग्ले की दोनों पारियों में वह अंदर आने के बाद पिच होकर बाहर निकलती गेंदों को कोण के सहारे खेलने चले गए और फंस गए। उनके पूरे करियर में ऐसा कोई एक स्पष्ट तरीक़ा नहीं है जिससे उन्हें आउट किया जा सकता है।
अब रहाणे अपने करियर के उस पड़ाव पर हैं जहां टीम में उनकी जगह अभी तो ख़तरे में नहीं है लेकिन अगर रनों की कमी का सिलसिला जारी रहा तो उन्हें बाहर किया जा सकता है। याद रखने लायक बात तो यह है कि रहाणे वही बल्लेबाज़ हैं जिन्होंने 30 टेस्ट मैचों के बाद अपनी औसत को 50 के पार पहुंचाया था। इस पूरी सीरीज़ की तरह रहाणे का करियर भी रोमांच से भरपूर रहा है - मौक़े तो बहुत मिले लेकिन अब तक कोई उसे भुना नहीं पाया है।
चौथे टेस्ट मैच में असफ़लता उनके 80 टेस्ट के करियर को समाप्त या उसका मोल कम नहीं करेगी और सफ़लता उसी महत्व को मान्यता देगी जिस पर उन्होंने ज़ोर दिया था। ख़ैर परिणाम जो भी हो, यह बात तय है कि रहाणे के बारे में बात ज़रूर की जाएगी।

उस्मान समिउद्दीन ESPNcricinfo में सीनियर एडिटर हैं। अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के सब एडिटर अफ़्ज़ल जिवानी ने किया है।