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कैसे मंदीप और साल्वी ने मिलकर पंजाब के 30 साल के ट्रॉफ़ी के सूखे का किया अंत

सैयद मुश्ताक़ अली ट्रॉफ़ी जीतकर पंजाब ने ख़त्म किया है तीन दशक का इंतज़ार

Mandeep Singh led Punjab to their first domestic title in 30 years, Punjab vs Baroda, final, Syed Mushtaq Ali Trophy, Mohali, November 6, 2023

मंदीप की कप्तानी में आखिरकार खत्म हुआ पंजाब का इंतजार  •  Mandeep Singh

घरेलू क्रिकेट में सभी फ़ॉर्मेट को मिलाकर पंजाब ने पिछले चार सीज़न में छह बार नॉकआउट में जगह बनाई थी, लेकिन फ़ाइनल में नहीं जा पाए थे। हालांकि इस बार ये क्रम टूटा और पंजाब ने केवल फ़ाइनल में जगह ही नहीं बनाई बल्कि सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफ़ी का ख़िताब भी अपने नाम किया। बड़ौदा को फ़ाइनल में 20 रनों से हराते हुए पंजाब ने तीन दशक से चले आ रहे ख़िताबी सूखे को ख़त्म किया है। पंजाब ने जब आख़िरी बार रणजी ट्रॉफ़ी के रूप में कोई ख़िताब जीता था, तब वर्तमान चैंपियन टीम के 17 में से 13 खिलाड़ी पैदा ही नहीं हुए थे।
टीम के कप्तान मंदीप सिंह और हेड कोच आविष्कार साल्वी ने मिलकर इस सूखे को ख़त्म किया है, लेकिन ये इतना आसान नहीं था। मंदीप के मुताबिक पंजाब की टीम ख़ास तौर से युवराज सिंह और हरभजन सिंह के लिए ट्रॉफ़ी जीतना चाहती थी, लेकिन कुछ कारणों से ऐसा हो नहीं पाया। पंजाब की टीम में हमेशा बेहतरीन खिलाड़ी रहे हैं, लेकिन एक टूर्नामेंट जीतने के लिए जैसी निरंतरता और एकजुटता की ज़रूरत होती है वो शायद उनके अंदर नहीं दिख रही थी। मंदीप इस ख़िताब का पूरा श्रेय कोच साल्वी को ही देते हैं।
सितंबर 2022 में साल्वी टीम के कोच बने थे और पहले सीजन में ही टीम को तीनों फ़ॉर्मेट में नॉकआउट तक ले गए थे। सैयद मुश्ताक़ अली ट्रॉफ़ी का सेमीफ़ाइनल तो वहीं विजय हज़ारे ट्रॉफ़ी और रणजी ट्रॉफ़ी का क्वार्टर-फ़ाइनल टीम ने खेला था। पंजाब की टीम में नए कोच के आते ही फिटनेस को काफ़ी महत्व दिया जाने लगा। पिछले सीजन यो-यो टेस्ट में 16.1 का स्कोर था जिसे अब बढ़ाकर 16.5 कर दिया गया है।
2012-13 में पंजाब के कप्तान बनने वाले मंदीप ने 2021 में ख़िताब नहीं जीत पाने की निराशा में कप्तानी छोड़ दी थी, लेकिन साल्वी के आते ही उन्हें दोबारा कप्तानी शुरु करनी पड़ी।
मंदीप ने बताया, "जूनियर लेवल पर मैंने तीन-चार ट्रॉफ़ियां जीती हैं। हालांकि सीनियर लेवल पर जब ट्रॉफ़ी नहीं जीत पाया तो लोग बोलने लगे कि ये केवल जूनियर लेवल पर ही ट्रॉफ़ी जीत सकता है। धीरे-धीरे यह चुभने लगा। पिछले साल जब कोच साब (साल्वी) आए तो उन्होंने मुझसे ये सब नहीं सोचने को बोला। ईमानदारी से कहूं तो उन्होंने मुझे कोई विकल्प नहीं दिया था।"
साल्वी के मुताबिक, "मंदीप को चुनना कोई बड़ी बात नहीं थी क्योंकि उनके काम करने का तरीक़ा काफ़ी बढ़िया है। वह कई सारे युवा खिलाड़ियों को प्रेरित करते हैं और उनका प्रदर्शन भी काफ़ी अच्छा था।"
जुलाई में पंजाब क्रिकेट एसोसिएशन ने अपने टी-20 लीग भी शुरु की थी। शेरे पंजाब टी-20 कप नाम से टूर्नामेंट आयोजित किया गया था और इससे भी टीम की तैयारियों में काफ़ी मदद मिली थी। पंजाब की टीम के बहुत सारे खिलाड़ी आईपीएल टीमों का हिस्सा थे, लेकिन अधिकतर को खेलने के बहुत मौके़ नहीं मिले थे। हालांकि पंजाब की इस टी-20 लीग ने उन्हें अच्छा गेमटाइम दिया। एक छोटे से ब्रेक के बाद साल्वी ने मोहाली में एक ऑफ़-सीजन कैंप लगवाया था।
साल्वी ने बताया, "उन 14 दिनों में मैं खिलाड़ियों को रणनीति, तकनीक, शारीरिक, मानसिक और जीवनशैली को लेकर खु़द को चैलेंज करते देखना चाहता था। सुबह से लेकर शाम तक कई सारी चीजे़ं कराई जाती थीं और उन्हें अलग-अलग चुनौतियां दी जाती थीं।"
सफेद और लाल गेंद दोनों को साथ में लेकर अभ्यास कराया जा रहा था। सफेद गेंद से मध्यक्रम के बल्लेबाज़ को बोला जाता था कि पावरप्ले के अंतिम ओवर से लेकर पूरे 15 ओवर तक खेलना है। उन्हें फ़ील्ड और तीन गेंदबाज़ भी बताए जाते थे। इसके तुरंत बाद उन्हें लाल गेंद वाली नेट पर बुलाया जाता था। यहां उनके सामने ऐसा दृश्य बनाया जाता जिसमें वे 10 नंबर के बल्लेबाज़ के साथ खेल रहे हैं और उन्हें पहली चार गेंदों पर आक्रमण करने के बाद आख़िरी गेंद पर सिंगल लेना है।
टीम में सनवीर सिंह और रमनदीप सिंह जैसे हिटर्स भी मौजूद थे और उन्हें भी उनकी शैली से एकदम विपरीत चुनौती दी जाती थी। इन हिटर्स को लाल गेंद की नेट पर मैच बचाने की परिस्थिति में बल्लेबाज़ी कराई जाती थी। पंजाब ने मुश्ताक अली ट्रॉफ़ी में हार के साथ शुरुआत की थी, लेकिन इसके बाद उनका खेल एकदम से बदल गया। अभिषेक शर्मा ने आंध्र प्रदेश के ख़िलाफ़ 51 गेंदों में 112 रनों की पारी खेली जिसकी बदौलत पंजाब ने टूर्नामेंट इतिहास का सर्वोच्च स्कोर (275/6) बनाया था। इसके बाद अभिषेक ने 38 गेंदों में 82, 26 गेंदों में 53 और 56 गेंदों में 112 रनों की पारियां भी खेलीं।
क्वार्टर-फ़ाइनल में उत्तर प्रदेश के ख़िलाफ़ 170 रनों के लक्ष्य का पीछा करते हुए पंजाब ने 14 के स्कोर पर तीन विकेट गंवा दिए थे। अनमोलप्रीत सिंह और नेहाल वढेरा ने पारी को संभाला और अंत में सनवीर तथा रमनदीप ने टीम को जीत दिलाई। दिल्ली के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में भी उन्होंने तीन विकेट शुरुआत में ही गंवा दिए थे। हालांकि अभिषेक और मंदीप की बदौलत उन्हें जीत मिली थी। फ़ाइनल में बड़ा स्कोर बनाने के बावजूद पंजाब की सांसें 18वें ओवर तक अटकी हुई थी। सिद्धार्थ कौल ने 18वें ओवर में 24 रन खर्च कर दिए थे और मैच फंसा हुआ लग रहा था।
12 गेंदों में 33 रनों की जरूरत होने पर अर्शदीप सिंह ने 19वें ओवर में केवल चार रन ख़र्च किए तीन विकेट भी चटका दिए। मंदीप ने एक और चीज़ बताई कि उनकी टीम ने शुरु में ही तय कर लिया था कि वे टूर्नामेंट में दबदबा बनाने के इरादे से खेलेंगे। उनका ये निडर अंदाज़ उनके खेल में दिखा भी। उनके सात नियमित बल्लेबाज़ों में से पांच का स्ट्राइक-रेट 160 से अधिक का था। टीम के रूप में उन्होंने हर 10वीं गेंद पर छक्का लगाया तो वहीं हर चौथी गेंद पर चौका आया।

हेमंत बराड़ ESPNcricinfo में सब-एडिटर हैं, अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के एडिटोरियल फ्रीलांसर नीरज पाण्डेय ने किया है।