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कोविड से उबर कर यश ढुल ने दिखाया मज़बूत चरित्र

ढुल ने सेमीफ़ाइनल में शानदार शतक लगाया था

सेमीफ़ाइनल में शतक बनाने के बाद यश ढुल  •  ICC via Getty Images

सेमीफ़ाइनल में शतक बनाने के बाद यश ढुल  •  ICC via Getty Images

अगर आप भारत अंडर 19 विश्व कप की कप्तानी से अपने शुरुआती क्रिकेटिंग करियर की शुरुआत करते हैं, तो इससे बेहतर कुछ नहीं हो सकता। आपका नाम तुरंत इतिहास में दर्ज हो जाता है। यश ढुल को भी इसका भान था। वेस्टइंडीज़ पहुंचने के बाद वह हर रोज अपने बचपन के कोच राजेश नागर से अपने खेल के बारे में बात करते हैं, ताकि पता चल सके कि वह सब कुछ अच्छा कर रहे हैं।
लेकिन 19 जनवरी को उनके बातचीत का विषय क्रिकेट नहीं कोरोना था। ढुल अपने टीम के कुछ अन्य सदस्यों के साथ कोरोना पॉज़िटिव हो चुके थे और एक बार तो ऐसा लगा कि उनके पिछले तीन साल का मेहनत धुएं में मिल जाएगा।
ढुल अब अकेले और निराश थे। उन्हें इस सच्चाई को स्वीकार करने में एक दिन लगा। नागर ने ढुल को फिर से वही सलाह दी, जो वह उन्हें बचपन से देते आए हैं- 'उन्हें ही नियंत्रण करने की कोशिश करें, जिनको आप नियंत्रण कर सकते हैं।'
आइसोलेशन के तीसरे दिन से ढुल ने अपनी तैयारी फिर से शुरू की। वह अब अपने कमरे में हर दो घंटे शैडो-बल्लेबाज़ी का अभ्यास करते थे, उसे रिकॉर्ड करते थे और फिर से उन्हें देखते थे। उन्हें वीवीएस लक्ष्मण से भी संदेश प्राप्त हुआ कि वह ठीक होने के बाद तुरंत मैदान में उतरने के लिए तैयार रहें।
क्वार्टर फ़ाइनल में उन्होंने वापसी की और महत्वपूर्ण नाबाद 20 रन बनाए। इसके बाद उन्होंने ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ सेमीफ़ाइनल में 110 रन की ज़बरदस्त पारी खेली। उनकी इस पारी में क्लास की झलक थी और उत्तर भारत में इसी को 'विलक्षण प्रतिभा' का धनी कहते हैं।
ढुल ने अपने क्रिकेटिंग करियर की शुरुआत 10 साल की उम्र से शुरू की थी, जब उन्होंने द्वारका के बाल भवन स्कूल से अपनी पढ़ाई और कोचिंग चालू की। इस स्कूल की क्रिकेट एकेडमी को दिल्ली कैपिटल्स द्वारा चलाया जाता है।
छठी कक्षा से उन्होंने हर महीने कम से कम 15 मैच खेलना शुरू किया। ढुल अब तक 2000 मैच खेल चुके हैं। 16 साल की उम्र तक वह श्रीलंका, मलेशिया और नेपाल तक का दौरा कर चुके थे। 15 साल की उम्र में ही वह एक अंडर-19 टूर्नामेंट के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी थे।
16 साल की उम्र में वह दिल्ली अंडर-19 टीम में अपनी जगह पक्की कर चुके थे। तीन नंबर पर बल्लेबाज़ी करते हुए उन्होंने विराट कोहली को अपना आदर्श बनाया और उनसे सीखने की कोशिश की कि कैसे 50 ओवर तक लगातार टिक कर रन बनाया जा सकता है।
नागर बताते हैं, "वह कोहली की ही तरह सिंगल-डबल से पारी की शुरुआत करते हैं और फिर बीच में उसे तेज़ करते हैं। उनकी तकनीक कोहली जैसी नहीं है लेकिन पारी को आगे बढ़ाने का तरीक़ा वही है। जब वह खेलते हैं, तो गेम को नियंत्रित करते हैं।"
उनकी कप्तानी के बारे में नागर बताते हैं कि वह अपने स्कूल टीम के उपकप्तान थे और जब भी कप्तानी का मौक़ा मिलता था, वह बिल्कुल मैदान में वही करते थे, जो नागर कोच के रूप में मैदान के बाहर से सोचते थे।

अनुवाद ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो हिंदी के दया सागर ने किया है