भारत की दूसरी पारी के दौरान 11 में से दस बल्लेबाज़ो ने 275 गेंदों पर 70 रन बनाए। इन दस में विराट कोहली भी शामिल हैं, जिन्होंने 143 गेंदों का सामना किया और 29 रन बनाए।
इससे आप समझ सकते हैं कि केपटाउन की पिच पर रन बनाना आसान नहीं था। यह भी स्पष्ट नहीं था कि चौथी पारी के लिए कितना स्कोर सुरक्षित है। चौतरफ़ा साउथ अफ्रीकी तेज़ गेंदबाज़ी आक्रमण नियमित रूप से स्विंग और उछाल दोनों प्राप्त करने में सक्षम हो रहा था। यहां तक कि पहली पारी में 201 गेंदों का सामना कर 79 रन बनाने वाले कोहली को भी रन बनाने में परेशानी हो रही थी।
इसी पिच पर और इसी गेंदबाज़ी आक्रमण के सामने भारत के ही एक खिलाड़ी ने 139 गेंदों में नाबाद 100 रन बनाए। वह खिलाड़ी कोई और नहीं बल्कि ऋषभ पंत थे, जिन्हें देखकर लग रहा था कि वह केपटाउन में नहीं अलग ही दुनिया में बल्लेबाज़ी कर रहे हैं।
पुछल्ले बल्लेबाज़ों के साथ बल्लेबाज़ी करते हुए पंत का शॉट नियंत्रण प्रतिशत 83% तक गिर गया, लेकिन जब तक भारत ने अपना सातवां विकेट नहीं खोया था, तब तक उन्होंने 95 गेंदों का सामना किया था और केवल आठ गेंदों पर बीट हुए थे। उन्होंने लगभग 79 के स्ट्राइक रेट से रन बनाते हुए इस तरह का नियंत्रण दिखाया।
जोहैनेसबर्ग में दूसरे टेस्ट की दूसरी पारी में शून्य पर आउट होने के बाद उन पर सवाल खड़े हो रहे थे। लेकिन गुरुवार को पंत की पारी में आत्मविश्वास की कोई कमी नहीं दिखी।
उनके रक्षात्मक खेल में भी विश्वास की कोई कमी नहीं दिखाई दी। उन्होंने ऑफ़ स्टंप पर आती हुई अधिकांश गेंदों को डिफ़ेंड किया और कई ऑफ़ स्टंप से बाहर जाती गेंदों को छोड़ा भी। हालांकि अधिकांश गेंदों पर वह आक्रामक ही थे। वह निश्चित रूप से कोहली जितना गेंदों को नहीं छोड़ने वाले थे, लेकिन वह लाइन और लेंथ को अच्छी तरह से जज कर रहे थे।
निर्णय लेने की यह स्पष्टता पारी की शुरुआत से ही स्पष्ट थी। उन्होंने अपनी पहुंच से दूर की गेंदों का पीछा नहीं किया और ड्राइव करने से भी परहेज किया। हालांकि जब भी शॉर्ट गेंद आ रही थी, तब वह कूद कर उसे मारने जा रहे थे।
पहले दो चौकों ने उनकी पारी को आकार दिया। रबाडा अपने सुबह के स्पेल का अंत कर रहे थे, जिसमें उन्होंने अजिंक्य रहाणे को मैच में दूसरी बार आउट किया था। उन्होंने पंत को एक अच्छी शॉर्ट गेंद दी, जो उनके पिछले कंधे पर आ रही थी। वहां से गेंद को नियंत्रित ढंग से पुल करना कभी आसान नहीं होता, लेकिन पंत ने इसे अच्छी तरह से डीप स्क्वेयर लेग पर हिट किया। इसके बाद रबाडा ने एक और छोटी गेंद फेंकी जो उनके पहुंच से भी बहुत दूर थी। पंत ने उछलते हुए गेंद को कवर प्वाइंट पर मारा।
कुछ ही समय में पंत 41 गेंदों पर 36 रन बना चुके थे। लंच से थोड़ी देर पहले साउथ अफ़्रीका ने स्पिनर केशव महाराज को लाया। महाराज पंत पर शुरु से ही लेग साइड बॉउंड्री पर तीन फ़ील्डर रखे हुए थे। लेकिन फिर भी वह उनकी गेंद पर आगे निकले, हालांकि पूरी तरह पहुंच नहीं पाए, शॉट खेला और इतना टाइमिंग हो गया कि गेंद लांग ऑन बॉउंड्री से पार पहुंच जाए।
लंच के बाद भी महाराज की गेंदबाज़ी जारी रही। दो ओवर तक तो पंत शांत रहे लेकिन फिर धावा बोलते हुए लगातार गेंदों पर स्वीप और मिड ऑफ़ के ऊपर से स्लॉग खेला।
पंत, महाराज के ख़िलाफ़ जोखिम उठा रहे थे, जबकि मैच अब भी भारत के पकड़ से बहुत दूर था। लेकिन यह नाप-तोल कर लिया गया निर्णय था। महाराज का स्पेल ख़त्म होने तक भारत का स्कोर 151 रन पर चार विकेट था, जबकि बढ़त 164 रन तक पहुंच गई थी। यहां पर भारत के लिए 250 रन का बढ़त संभव लग रहा था। लेकिन साउथ अफ़्रीका की बेहतरीन गेंदबाज़ी और भारतीय पुछल्ले बल्लेबाज़ों के दो ख़राब शॉट के कारण ऐसा संभव नहीं हो पाया।
ख़ैर, पंत अब सिर्फ़ भारत के ही नहीं एशिया के पहले ऐसे विकेटकीपर बल्लेबाज़ बन गए हैं, जिनके नाम इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और साउथ अफ़्रीका में शतक है। यह 'पंत मोमेंट' है, जिसे लंबे समय तक क्रिकेट प्रेमी याद रखेंगे।