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क्रिकेट साउथ अफ़्रीका के इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है एसजेएन सुनवाई

इस सुनवाई में भी कई ख़ामियां थी, लेकिन इसने साउथ अफ़्रीकी क्रिकेट को बेहतर बनाने का एक दरवाज़ा खोला है

The South Africa players line up for their national anthem, South Africa vs West Indies, T20 World Cup, Group 1, Dubai, October 26, 2021

2021 टी20 विश्व कप के एक मैच के दौरान साउथ अफ़्रीकी टीम  •  ICC via Getty

साउथ अफ़्रीका में क्रिकेट हमेशा से नस्लवादी है। क्रिकेट साउथ अफ़्रीका (सीएसए) भी हमेशा से नस्लवादी है। यहीं नहीं पूरा साउथ अफ़्रीका अभी भी नस्लवादी है।
वैसे तो यहां पर 27 साल पहले 1993 में ही श्वेत नस्लीय श्रेष्ठता का आधिकारिक अंत हो चुका था। उससे पहले अधिकतर अश्वेत लोग वहां पर वोट नहीं दे सकते थे। हालांकि क्रिकेट में यह सुधार दो साल पहले ही शुरु हो चुका था, जब 1991 में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर क्रिकेट साउथ अफ़्रीका की फिर से वापसी हुई। यह पूरी तरह से श्वेत लोगों की टीम थी, लेकिन अश्वेत लोगों के बीच क्रिकेट को बढ़ावा देने के लिए वहां पर स्थानीय स्तर पर क्रिकेट लीग शुरु किए गए। ख़ुद प्रधानमंत्री सेसिल जॉन रोड्स द्वारा क्रिकेट को बढ़ावा दिया गया और टेस्ट कप्तान रह चुके विलियम मिल्टन को इसकी ज़िम्मेदारी दी गई।
लेकिन साउथ अफ़्रीकी क्रिकेट में अब भी नस्लीय भेदभाव एक सच है। सोशल जस्टिस एंड नेशन बिल्डिंग (एसजेएन) की सुनवाई और अंतिम रिपोर्ट में भी लगभग यही सच सामने आया है, जो दिखाता है कि पिछले 30 सालों में यह क्रिकेट साउथ अफ़्रीका की सबसे गंभीर समस्या रही है।
इस रिपोर्ट में पाया गया है कि सीएसए और उनके कुछ बड़े नाम वाले खिलाड़ी चयन प्रक्रिया के दौरान नस्लीय रूप से पक्षपाती रहे हैं। 2012 की चैंपियन टीम, जिसे लॉर्ड्स के ऐतिहासिक मैदान में टेस्ट चैंपियनशिप का गदा मिला था, इस मामले में सबसे अधिक पक्षपाती थी। इस टीम के कप्तान ग्रैम स्मिथ वर्तमान समय में बोर्ड के क्रिकेट निदेशक हैं, वहीं एक अन्य प्रमुख सदस्य मार्क बाउचर अभी टीम के प्रमुख कोच हैं। इस रिपोर्ट में साउथ अफ़्रीका के अब तक के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ रहे एबी डीविलियर्स के नस्लीय आचरण का भी जिक्र है।
लोकपाल डुमिसा नत्सेबेज़ा ने पाया कि स्मिथ और बाउचर की नियुक्ति की प्रक्रिया में कई तकनीकी ख़ामियां हैं और जबकि ये दोनों बड़े नाम वर्तमान में साउथ अफ़्रीकी क्रिकेट के दो सबसे बड़े पदों पर क़ब्ज़ा किए हुए हैं। उनके निर्णयों से ना सिर्फ़ वर्तमान बल्कि भविष्य भी प्रभावित होता है।
एसजेएन की सुनवाई से पता चला है कि भूत में लिए गए इन नस्लीय निर्णयों के कारण कई अश्वेत खिलाड़ियों का पूरा क्रिकेट करियर ख़राब हो गया है। थामी सोलकिले इसके प्रमुख उदाहरण हैं, जिन्हें एक समय बाउचर का विकेटकीपिंग उत्तराधिकारी माना जा रहा था। लेकिन जब बाउचर रिटायर हुए तो डीविलियर्स ने विकेटकीपिंग की ज़िम्मेदारी अपने ऊपर ले ली। वह 2014 में तब तक विकेटकीपिंग करते रहे, जब तक उन्हें क्विंटन डिकॉक के रूप में एक श्वेत विकेटकीपर नहीं मिल गया।
उसी साल खाया ज़ॉन्डो को वनडे सीरीज़ में डेब्यू का मौक़ा नहीं मिला और उनकी जगह डीन एल्गर को खिलाया गया, जो मूल रूप से शुरुआती दल में शामिल नहीं थे। पूर्व चयनकर्ता हुसैन मानक ने इस सुनवाई के दौरान कहा कि ऐसा करने के लिए उन पर डीविलियर्स द्वारा दबाव बनाया गया था। डीविलियर्स ने भी इसे स्वीकार किया लेकिन उन्होंने कहा कि ऐसा उन्होंने किसी अन्य नहीं बल्कि क्रिकेटिंग कारणों से किया था। रिपोर्ट कहती है कि इस दौरान डीविलियर्स ने पूरी तरह से भेदभावपूर्ण व्यवहार किया, हालांकि डीविलियर्स अब भी इसे मानने को तैयार नहीं हैं।
सोलकिले को तब टेस्ट टीम में जगह नहीं दी गई तो उनकी प्रथम श्रेणी औसत 40 से ऊपर की थी, वहीं ज़ॉन्डो भी उस समय एल्गर से बेहतर घरेलू क्रिकेट के अनुभव के साथ टीम में रिज़र्व बल्लेबाज़ के रूप में उपलब्ध थे। यह ठीक उसी तरह है जब 2015 विश्व कप सेमीफ़ाइनल में श्वेत काइल एबॉट की जगह अश्वेत और अनफ़िट वर्नोन फ़िलेंडर को जगह दी गई। आज भी उस घटना की चर्चा गाहे-बगाहे हो जाती है लेकिन सोलकिले और ज़ॉन्डो की चर्चा कौन करता है?
एसजेएन की रिपोर्ट बताती है कि क्रिकेट साउथ अफ़्रीका को चयन नितियों को और स्पष्ट बनाने की ज़रूरत है, जिसमें कहा गया है कि घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों मैचों के अंतिम एकादश में कम से कम छह अश्वेत खिलाड़ी होने चाहिए। इन छह में से भी तीन खिलाड़ी ऐसे होने चाहिए जो कि अफ़्रीकी मूल के काले खिलाड़ी हों। इस नीति में यह भी स्पष्ट होना चाहिए कि अगर समान क्षमता के दो खिलाड़ी अलग-अलग वर्णों के उपलब्ध हों, तब क्या करना चहिए। तब कैसे चयन में उठने वाली इन समस्याओं का उपाय करना चाहिए।
भारत के ख़िलाफ़ वर्तमान सीरीज़ का ही उदाहरण लेते हैं। साउथ अफ़्रीका ने अपने 21 सदस्यीय टेस्ट दल में आठ तेज़ गेंदबाज़ों का चयन किया है। चोट की समस्या ना हो तो कगिसो रबाडा और अनरिख़ नॉर्खिये निश्चित रूप से अंतिम एकादश में रहने वाले हैं। वहीं लुंगी एनगिडी और डुएन ऑलिवियेर तीसरे तेज़ गेंदबाज़ी विकल्प के रूप में होंगे। बाक़ी के खिलाड़ी बैक-अप के तौर पर दल में हैं। अब बताइए एनगिडी और ऑलिवियेर के चुनाव में चयनकर्ता और टीम प्रबंधन की क्या नीति होनी चाहिए?
अगर पूर्व के प्रदर्शन को देखा जाए तो पहला मौक़ा एनगिडी को मिलना चाहिए, उन्होंने वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ साउथ अफ़्रीका के आख़िरी टेस्ट सीरीज़ में बढ़िया प्रदर्शन किया था। वहीं फ़ॉर्म और फ़िटनेस को देखा जाए तो ऑलिवियेर को मौक़ा मिलना चाहिए। वह इस साल प्रथम श्रेणी क्रिकेट में सर्वाधिक विकेट लेने वाले गेंदबाज़ हैं, जबकि एनगिडी ने जून, 2021 से ही लाल गेंद ही नहीं बल्कि कोई भी प्रतिस्पर्धी क्रिकेट नहीं खेला है।
दूसरी बात यह है कि कोलपैक डील को साइन करके ऑलिवियेर ने साउथ अफ़्रीकी क्रिकेट से संन्यास ले लिया था, लेकिन ब्रिटेन के यूरोपियन यूनियन से निकलने के बाद उनका यॉर्कशायर के साथ कॉन्ट्रैक्ट ख़त्म हो गया और उन्होंने फिर से साउथ अफ़्रीकी क्रिकेट में वापसी की। ऐसे में क्या उन्हें पहला मौक़ा मिलना चाहिए ?
कुछ लोग यह भी कह सकते हैं कि विविधता को आधार बनाया जाए तो इन दोनों की जगह बाएं हाथ के युवा तेज़ गेंदबाज़ मार्को यानसन को टीम में मौक़ा मिलना चाहिए। वहीं कई लोग यह भी कह सकते हैं कि साउथ अफ़्रीकी क्रिकेट को ग्लेंटन स्टुरमैन की निरंतरता की ज़रूरत है। चयनकर्ताओं को तीसरे तेज़ गेंदबाज़ का चयन करने से पहले इन सभी कारकों का ध्यान रखना होगा और चयन किसी का भी हो, कुछ लोग इन चयनों से ज़रूर ख़ुश नहीं होंगे।
एसजेएन की सुनवाई यह भी बताती है कि श्वेत लोग अब भी मानते हैं कि अश्वेत लोगों में कुशलता की कमी होती है। इससे अश्वेत लोगों को शुरुआती दौर में ही क्रिकेट खेलने में दिक़्क़त होती है, उन्हें बेहतर स्त्रोत और विकल्प नहीं मिलते हैं। ज़मीनी स्तर पर भले ही हमें छिपी हुई प्रतिभाओं को ढूंढ़ना है, लेकिन श्वेत नस्लीय श्रेष्ठता का विचार होने के कारण इसे बेहतर ढंग से लागू करने में काफ़ी कठिनाई आती है। अगर सत्ता में बैठे लोग यह विश्वास नहीं देंगे कि सीनियर लेवल पर अश्वेत क्रिकेटरों का बेहतर भविष्य हो सकता है, तो कौन अपने बच्चों को शुरु से क्रिकेट खेलने भेजेगा?
साउथ अफ़्रीका में लगभग सभी अश्वेत खिलाड़ियों के साथ कोई ना कोई भेदभाव की कहानी रही है। 1992 में ओमार हेनरी को विश्व कप में खेलने का मौक़ा नहीं मिला, वहीं हाशिम अमला जैसे बेहतरीन बल्लेबाज़ को सिर्फ़ इसलिए कप्तानी से हटना पड़ा क्योंकि उन्होंने महसूस किया कि श्वेत खिलाड़ी उनके रंग के कारण उन्हें कप्तानी के लायक़ समझते ही नहीं हैं। वहीं मखाया एनटिनी जैसे देश के सर्वश्रेठ गेंदबाज़ को भी टीम बस की जगह पैदल ही ग्राउंड से टीम होटल जाना पड़ता है, क्योंकि कोई टीम का सदस्य उन्हें टीम बस में देखना नहीं चाहता था। कुछ-कुछ ऐसा ही वर्नोन फ़िलेंडर के साथ भी हो चुका है। हालांकि एसजेएन सुनवाई में इनमें से किसी भी क्रिकेटर ने अपने पक्ष को नहीं रखा।
ठीक इसी तरह आरोपी क्रिकेटर भी एसजेएन सुनवाई के दौरान मौखिक रूप से उपस्थित नहीं हुए। स्मिथ, बाउचर और डीविलियर्स ने सुनवाई के दौरान सिर्फ़ अपना लिखित जवाब दिया। अगर वे सुनवाई के दौरान लोकपाल के समक्ष उपस्थित होते तो यह एक बेहतर संवाद होता और वे भी शायद लगे आरोपों पर अपनी बेहतर सफ़ाई दे सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा करने से इनकार कर दिया। इससे कई विवाद भी पूरी तरह शांत होने से रह गए।
हालांकि यह सुनवाई भी काफ़ी बेवक़्त हुई। जिस समय सुनवाई चल रही थी, उस समय टी20 विश्व कप भी चल रहा था। वहीं पूरी रिपोर्ट 16 दिसंबर को पेश की गई, 1995 में इसी दिन देश ने नस्लीय भिन्नता को भूलाकर एकता और भाईचारे का संदेश दिया था। लेकिन यह सुनवाई बताती है कि यह देश और इस देश का क्रिकेट उस संदेश से काफ़ी दूर है। हालांकि एसजेएन ने एक दरवाज़ा खोला है। इस सुनवाई में कई ख़ामिया भी हैं, लेकिन यह क्रिकेट साउथ अफ़्रीका के इतिहास में सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक है।

फ़िरदौस मूंडा ESPNcricinfo की साउथ अफ़्रीकी संवाददाता हैं, अनुवाद ESPNcricinfo हिंदी के दया सागर ने किया है