पिछले साल टी20 विश्व कप में एमसीजी में भारत बनाम पाकिस्तान का मुक़ाबला कौन भूल सकता है? दरअसल भारत-पाकिस्तान राइवलरी ही ऐसी रही है कि इनके हर मैच में किसी ना किसी को हीरो बनने का पूरा मौक़ा मिलता है और ऐसे खिलाड़ियों के नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखे जाते हैं।
14 अक्तूबर को विश्व कप 2023 के मैच में इस सूची में क्या किसी नए हीरो का नाम जुड़ेगा? फ़िलहाल आपको पांच ऐसे यादगार किरदारों के बारे में याद दिला देतें हैं जिन्होंने विश्व कप के बाहर हुए भारत-पाकिस्तान मुक़ाबलों में अपनी छाप छोड़ी।
आक़िब जावेद (पाकिस्तान), 1991
1991 में शारजाह की चैंपियंस ट्रॉफ़ी में भारत ग़ज़ब फ़ॉर्म में था। पाकिस्तान और वेस्टइंडीज़ दोनों को हराते हुए उन्होंने फ़ाइनल में अपनी जगह पक्की की। फ़ाइनल में 263 के लक्ष्य के सामने भारतीय टीम 47 पर एक के स्कोर पर सुरक्षित नज़र आ रही थी, जब आक़िब जावेद ने रवि शास्त्री को पगबाधा आउट किया। अगली दो गेंदों पर उन्होंने मोहम्मद अज़हरुद्दीन और सचिन तेंदुलकर को भी पगबाधा आउट किया।
प्लेयर ऑफ़ द सीरीज़ संजय मांजरेकर के साथ उन्होंने कुल सात बल्लेबाज़ों को पवेलियन भेजते हुए उस युग के सर्वश्रेष्ठ वनडे विश्लेषण अपने नाम किए। उनके 7/37 के रिकॉर्ड को तोड़ने में मुथैय्या मुरलीधरण को नौ साल लगे।
जावेद मियांदाद (पाकिस्तान), 1986
यूएई में शारजाह नामक एक नए वेन्यू में शुरुआत के तीन सालों में भारत का दबदबा क़ायम था। 1986 के ऑस्ट्रेलेशिया कप फ़ाइनल में भी जब भारत ने 245 रन बनाए और जवाब में पाकिस्तान के चार विकेट 110 पर गिर गए तो लगा कि यही सिलसिला जारी रहेगा। एक छोर पर जावेद मियांदाद डटे रहे और रन बनाते रहे।
भारत के लिए तीन विकेट लेकर चेतन शर्मा दिन के सफलतम गेंदबाज़ थे, लेकिन उनकी आख़िरी गेंद पर चार की आवश्यकता थी। उन्होंने यॉर्कर का प्रयास किया लेकिन मियांदाद ने क्रीज़ की गहराई से इसे फ़ुल टॉस में तब्दील किया। मिडविकेट के ऊपर लगे उस छक्के के बाद शारजाह में पाकिस्तान ने इस राइवलरी को काफ़ी एकतरफ़ा बना दिया।
सौरव गांगुली (भारत), 1998
1998 के बांग्लादेश की मेज़बानी में खेले गए इंडिपेंडेंस कप के बेस्ट-ऑफ़-थ्री फ़ाइनल्स में भारत और पाकिस्तान 1-1 की बराबरी पर थे। पाकिस्तान ने पहले बल्लेबाज़ी करते हुए 314 बनाए, जवाब में सौरव गांगुली एक अलग ही लय में नज़र आए।
उन्होंने तेज़ गेंदबाज़ी की पिटाई तो की ही, लेकिन सक़लैन मुश्ताक़ को भी बेहतरीन तरीक़े से खेलकर 124 रनों की पारी खेली। इस मैच को ऋषिकेश कानितकर के चौके के लिए याद किया जाता है, जिससे भारत ने वनडे इतिहास में तब तक का सर्वाधिक सफल चेज़ पूरा किया।
सईद अनवर (पाकिस्तान), 1997
1997 में आज़ादी के 50 सालों के जश्न के तहत भारत ने भी इंडिपेंडेंस कप की मेज़बानी की। चेन्नई में खेले मुक़ाबले में सईद अनवर शुरू से ही ज़बरदस्त मूड में दिखे। उन्होंने भारतीय गेंदबाज़ों पर जमकर प्रहार किया। हालांकि चेन्नई के गर्मी में क्रैंप के चलते उन्हें परेशानी भी हुई और भारतीय कप्तान सचिन तेंदुलकर ने उन्हें पारी के शुरुआती क्षणों में ही रनर रखने की अनुमति दी।
अनवर आख़िर विश्व रिकॉर्ड 194 रन बनाकर तेंदुलकर की ही गेंद पर आउट हुए। यह रिकॉर्ड 13 सालों तक बना रहा, जिसके बाद तेंदुलकर ने ख़ुद पुरुष वनडे अंतर्राष्ट्रीय मैच में पहला दोहरा शतक जमाते हुए इसे तोड़ा।
विराट कोहली (भारत), 2012
कई मायने में इसे विराट कोहली की महानता का आग़ाज़ माना जाता है। ढाका में पाकिस्तान ने एशिया कप के एक अहम मैच में 330 का लक्ष्य रखा और भारत ने दूसरी गेंद पर गौतम गंभीर का विकेट गंवाया। बस यहां से कोहली के बल्ले ने आग उगलना जारी किया और 183 रनों की पारी खेली जिसमें उन्होंने पाकिस्तान के लिए मैच में वापसी के सारे रास्ते बंद कर दिए।
कुछ हद तक इस मैच के बाद भी भारत-पाकिस्तान मैच उतना ही एकतरफ़ा बन गए हैं, जो कभी मियांदाद की शतकीय पारी के बाद हुआ था।