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आईपीएल : मुंबई का असंतुलन पड़ रहा भारी, शॉ-वॉर्नर पर निर्भर दिल्ली

कोलकाता ने नाम बड़े और दर्शन छोटे की कहावत को चरितार्थ किया है

आईपीएल में प्रत्येक टीम सभी तरह के विकल्प के साथ लैस होना चाहती है। शीर्ष और मध्य क्रम में मज़बूत बल्लेबाज़ी, हरफ़नमौला खिलाड़ी, विकेटकीपर बल्लेबाज़, स्पिन गेंदबाज़, ऐसे तेज़ गेंदबाज़ जो पावरप्ले में ओवर डालने के साथ-साथ डेथ ओवर्स में भी गेंदबाज़ी कर सकें। हालांकि आईपीएल 2022 में दस टीमों की उपस्थिति ने टीमों के लिए हर तरह के विकल्प से लैस होना संभव नहीं है। वास्तव में, ज़्यादातर टीमों ने अपने एक पक्ष को मज़बूत करने के चक्कर में कम से कम एक पक्ष से समझौता किया है। लगभग सभी टीम की कम से कम एक कमज़ोर कड़ी है। आइए एक नज़र डालते हैं कि इस सीज़न में खेल रही टीमों को किन क्षेत्रों को प्रबंधित करना पड़ा है।
गुजराट टाइटंस : हार्दिक के गेंदबाज़ी न करने पर बिगड़ जाता है टाइटंस का संतुलन
टाइटंस के पास तीन टॉप गेंदबाज़ हैं। दुनिया के सबसे अच्छे बल्लेबाज़ों में शुमार एक युवा बल्लेबाज़ है। इसके साथ ही हार्दिक पंड्या के रूप में एक विश्व स्तरीय ऑलराउंडर भी है। हालांकि टाइटंस के पास भी कई ऐसे क्षेत्र हैं, जहां उन्हें जूझना पड़ रहा है। टाइटंस को अभी भी छठे गेंदबाज़ की तलाश है। राहुल तेवतिया ने इस सीज़न में कम ही गेंदबाज़ी की है। उन्होंने पांच ओवर में बिना कोई विकेट लिए 65 रन खर्च किए हैं। विजय शंकर बल्ले के साथ लय में नहीं नज़र आ रहे हैं। शीर्ष क्रम बल्लेबाज़ों में शुभमन गिल के अलावा और कोई दूसरा बल्लेबाज़ प्रभावित नहीं कर पाया है।
इस वजह से हार्दिक पंड्या टॉप ऑर्डर में बल्लेबाज़ी करने पर मजबूर हुए हैं। इसके अलावा वह गेंदबाज़ी भी कर रहे हैं, वह भी ऐसे वक़्त में जहां यह पक्के तौर पर यह नहीं कहा जा सकता कि उनका शरीर पूरी तरह से उन्हें गेंदबाज़ी की अनुमति दे रहा है। वह इस सीज़न में पहले ही चोटिल होने के कारण एक मैच में बाहर हो चुके हैं। जब हार्दिक वापस आए. तब टाइटंस को मजबूरन एक अतिरिक्त गेंदबाज़ के साथ खेलना पड़ा। ग़नीमत है कि वह सात मुक़बालों में छह जीत के साथ तालिका में शीर्ष पर बने हुए हैं।
टूर्नामेंट के दूसरे चरण में गुजरात टाइटंस के सामने दो सवाल हैं। क्या दूसरे चरण में भी क़िस्मत टाइटंस पर मेहरबान रहेगी? या वह हार्दिक के गेंदबाज़ी न करने की परिस्थिति में अपने लिए एक बेहतर गेंदबाज़ी विकल्प ढूंढ पाएंगे?
सनराइज़र्स हैदराबाद : स्पिनर्स कहां हैं? औसत और इकॉनमी दोनों के मामले में सनराइज़र्स हैदराबाद की तेज़ गेंदबाज़ी इस सीज़न सबसे बेहतर है। उनके पास पारी के हर चरण के लिए तेज़ गेंदबाज़ हैं। लेकिन उनके स्पिनर्स ने अब तक सिर्फ़ 21 फ़ीसदी ओवर डाले हैं। जो कि इस सीज़न में किसी भी टीम द्वारा की गई सबसे कम स्पिन गेंदबाज़ी है। नीलामी के दौरान सनराइज़र्स तेज़ गेंदबाज़ों को खरीदने की तरफ़ गए। इसके साथ ही उन्हें अपनी स्पिन गेंदबाज़ी के प्रमुख विकल्प राशिद ख़ान को जाने देना पड़ा। वॉशिंगटन सुंदर भी हाथ में लगी चोट के कारण पिछले लगातार तीन मुक़ाबलों से प्लेइंग इलेवन का हिस्सा नहीं रह पाए हैं।
वॉशिंगटन सुंदर के विकल्प के तौर पर टीम में जगदीश सुचित को लाया गया। वह टीम की बल्लेबाज़ी में एक अतिरिक्त बल्लेबाज़ के तौर पर भी खेल सकते हैं, लेकिन ज़रूरी नहीं है कि वह टीम के लिए एक विकेट टेकर गेंदबाज़ हों। सीज़न में अब तक इस असुंतलित आक्रमण ने उम्दा प्रदर्शन किया है। तेज़ गेंदबाज़ों के लिए मददगार मुंबई और पुणे की पिचों का सनराइज़र्स के गेंदबाज़ों ने भरपूर फ़ायदा उठाया है। वहीं एक धीमी शुरुआत के बाद सनराइज़र्स की बल्लेबाज़ी भी अब लय में है। टीम की बल्लेबाज़ी में गहराई है। सनराइज़र्स के कप्तान केन विलियमसन ने सभी सात टॉस जीते, जिसने काफ़ी हद तक टीम को फ़ायदा पहुंचाया। हालांकि सवाल सनराइज़र्स के लिए भी हैं। क्या उनके पास अप्रैल मई की गरमी के दौरान स्पिन गेंदबाज़ी के विकल्प मौजूद हैं?
राजस्थान रॉयल्स : क्या जॉस बटलर का फ़ॉर्म जारी रहेगा?
इस सीज़न में राजसथान रॉयल्स के टॉप पर बने रहने में सबसे अहम भूमिका जॉस बटलर ने निभाई है। राजस्थान के सलामी बल्लेबाज़ों ने 47.92 के औसत और 151.5 के स्ट्राइक रेट से रन बनाए हैं। जॉस बटलर ने इस सीज़न में अब तक तीन शतक जड़े हैं। बटलर की बल्लेबाज़ी के कारण ही इस सीज़न में राजस्थान रॉयल्स की बल्लेबाज़ी में गहराई की कमी सामने उभर कर नहीं आ पाई है। वह इस सीज़न में पांच टॉस हार गए, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने बड़े स्कोर खड़े किए। जिसके बाद उनके मज़बूत गेंदबाज़ी आक्रमण ने पूरी दक्षता के साथ लक्ष्य का बचाव कर लिया।
राजस्थान का सबसे मज़बूत पक्ष उसकी गेंदबाज़ी है। क्या होगा अग़र बटलर न चले तो? क्या उनका मध्य क्रम पारी को संभाल पाने में सक्षम है? हालांकि एक मुक़ाबले में बटलर के असफ़ल रहने पर शिमरोन हेटमायर ने टीम को एक अच्छे टोटल तक पहुंचा दिया था। अब तक इस सीज़न में वह ज़्यादातर छह बल्लेबाज़ और पांच गेंदबाज़ों के कॉम्बिनेशन के साथ गए हैं। जो कि अब तक राजस्थान के लिए काम कर रहा है। टूर्नामेंट के आगे बढ़ने के साथ-साथ यह देखना दिलच्सप होगा कि बटलर अपनी फ़ॉर्म को बरकरार रख पाते हैं या नहीं? और ऐसी परस्थिति में राजस्थान की टीम 6-5 के इस कॉम्बिनेशन के साथ खेलना जारी रखती है या नहीं?
रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु : पावरप्ले है बड़ी समस्या
टूर्नामेंट में बल्लेबाज़ी और गेंदबाज़ी दोनों से ही अच्छी शुरुआत न कर पाने के बावजूद रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु ने इस सीज़न अब तक अच्छा प्रदर्शन किया है। इस टूर्नामेंट में पावरप्ले के दौरान सबसे ख़राब बैटिंग (21) और गेंदबाज़ी औसत (47.12) बेंगलुरु का ही रहा है। इस सीज़न में पावरप्ले के दौरान बेंगलुरु ने आठ विकेट ही लिए हैं, जो कि आगे उनके लिए परेशानी का बड़ा सबब बन सकती है।
बेंगलुरु का टॉप ऑर्डर भी लय में नहीं है। टॉप तीन बल्लेबाज़ों के प्रदर्शन में निरंतरता की कमी साफ़ तौर पर झलक रही है। मध्य क्रम और निचले क्रम ने बेंगलुरु की बल्लेबाज़ी को बचा कर रखा हुआ है। सनराइज़र्स हैदराबाद के ख़िलाफ़ बेंगलुरु का मध्य क्रम और निचला क्रम नहीं चल पाया, जिसके परिणामस्वरूप वह सिर्फ़ 68 के स्कोर पर ऑल आउट हो गए। जब तक वह जीत रहे हैं, तब तक वह आउट ऑफ़ फ़ॉर्म खिलाड़ियों को झेल सकते हैं। हालांकि कुछ मुक़ाबलों में हार उन्हें खिलाड़ियों की भूमिका दोबारा तय करने पर मजबूर कर सकती है। पिछले दो सीज़न में भी बेंगलुरु ने पहले चरण में अच्छी शुरुआत की, लेकिन वह अंक तालिका में टॉप दो में बने नहीं रह पाए। वह जल्द से जल्द अपनी कमज़ोर कड़ी को मज़बूत करना चाहेंगे।
लखनऊ सुपर जायंट्स : ऑलराउंडर्स की भरमार है दो धारी तलवार
सीज़न की शुरुआत से पहले ईएसपीएनक्रिकइंफ़ो ने लखनऊ सुपर जायंट्स को एक ऐसी टीम के तौर पर रेट किया था जिसके पास हर क्षेत्र में पर्याप्त विकल्प मौजूद हैं। टीम में ऑलराउंडर की भरमार उन्हें गहराई और लचीलापन दोनों प्रदान करती हुई दिख रही थी। हालांकि उनके पहले विकल्प के तौर पर मौजूद खिलाड़ियों के राष्ट्रीय कर्तव्य पर होने ने लखनऊ के लिए मुसीबत खड़ी कर दी। उन्हें जल्द ही इस समस्या का निदान निकालना होगा। इस सीज़न में लखनऊ ने चार मुक़ाबलों में जीत की है, जबकि उन्होंने तीन क़रीबी मुक़ाबले हारे हैं।
इस टीम को जिस तरह से डिज़ाइन किया गया है, यह किसी भी परिस्थिति और टीम के ख़िलाफ़ खेलने में सक्षम है। लखनऊ के पास ऑलराउंडर की भूमिका अदा करने वाले बहुतेरे खिलाड़ी हैं, लेकिन क्रुणाल पंड्या ने इस सीज़न में पांचवें गेंदबाज़ की भूमिका अदा की है, जो कि अब तक आईपीएल में छठे गेंदबाज़ की भूमिका निभाते हुए आ रहे थे। जबकि मार्कस स्टॉयनिस और दीपक हुड्डा ने उनके लिए छठे गेंदबाज़ की भूमिका निभाई है। ज़्यादा से ज़्यादा लचीलापन अच्छी बात है, लेकिन कभी-कभी यह लचीलापन भारी भी पड़ सकता है। लखनऊ के खेमे में एक बड़ी समस्या यह रही है कि खिलाड़ियों के बीच उनकी भूमिका को लेकर स्पष्टता नहीं है। यही वजह है कि आप नंबर आठ के बल्लेबाज़ को नंबर तीन पर प्रमोट होता देखते हैं।
दिल्ली कैपिटल्स : वॉर्नर और शॉ पर अधिक निर्भरता
दिल्ली कैपिटल्स की टीम ने इस सीज़न में तीन मुक़ाबलों मे जीत दर्ज की है, जबकि चार मुक़ाबलों में उन्हें हार झेलनी पड़ी है। जीते हुए तीन मुक़ाबलों में डेविड वॉर्नर और पृथ्वी शॉ की जोड़ी ने सबसे अहम भूमिका निभाई। हालांकि दिल्ली कैपिटल्स का मध्य क्रम और निचला क्रम कुछ खास कमाल नहीं दिखा पाया है। ललित यादव और अक्षर पटेल ने मुंबई इंडियंस के ख़िलाफ़ पहले मुक़ाबले में बल्ले से अच्छा प्रदर्शन ज़रूर किया, लेकिन उसके बाद वह चल नहीं पाए। दिल्ली कैपिटल्स की टीम इस वक़्त वॉर्नर और शॉ पर अधिक निर्भर नज़र आ रही है। हालांकि मिचेल मार्श की टीम में वापसी कैपिटल्स की इन दोनों पर निर्भरता को कम ज़रूर कर देगी।
कोलकाता नाइट राइडर्स : नाम बड़े और दर्शन छोटे
इस सीज़न में कोलकाता नाइट राइडर्स ने अब तक आक्रामक बल्लेबाज़ी का मुज़ाहिरा किया है, लेकिन उनकी यह रणनीति अब तक टीम के लिए नाकाम साबित रही है। जिस वजह से वह अब तक कुल आठ मुक़ाबलों में सिर्फ़ तीन मुक़ाबले ही जीत पाए हैं। पैट कमिंस और वरुण चक्रवर्ती ज़रूरत से ज़्यादा खर्चीले साबित हुए हैं। वहीं वेंकटेश अय्यर का न चल पाना टीम के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है।
हालांकि आंद्रे रसल बल्लेबाज़ी में ताकतवर बने हुए हैं, लेकिन गेंदबाज़ी के लिए उनकी फ़िटनेस ने उन्हें टीम के लिए एक जटिल विकल्प बना दिया है। कोलकाता का प्रबंधन भी यह सुनिश्चित नहीं कर पा रहा है कि वह रसल से डेथ ओवर्स में कितनी गेंदबाज़ी करवा सकता है। कोलकाता के बल्लेबाज़ अब तक अपने भूमिकाओं को ठीक से नहीं निभा पाए हैं, लेकिन अंक तालिका में टीम का सकारात्मक रन रेट यह दर्शा रहा है कि वह अपने प्रदर्शन को जीत में तब्दील कर सकते हैं।
पंजाब किंग्स : कमज़ोर गेंदबाज़ी आक्रमण
पंजाब किंग्स के बल्लेबाज़ों का आक्रामकता के साथ खेलना इस टूर्नामेंट में चर्चा का बड़ा विषय रहा है। पंजाब किंग्स के बल्लेबाज़ों को इसके लिए तारीफ़ और आलोचना दोनों ही झेलनी पड़ी है। पंजाब किंग्स की आक्रामकता के साथ बल्लेबाज़ी के कारण टीम तीन मैच में 115,137 और 151 पर ऑल आउट हो गयी। इस आक्रामकता की आलोचना का सबसे बड़ा आधार पंजाब किंग्स का गेंदबाज़ी आक्रमण है, जो कि एक लो स्कोरिंग टोटल का बचाव कर पाने में सक्षम नहीं दिखाई दिया है। दूसरी तरफ़ छह मुक़ाबलों में पांच बार वह टॉस हार गए। जिस मैच में टॉस जीते उस मुक़ाबले में भी उन्हें 206 रनों का विशाल लक्ष्य मिला। ओडीन स्मिथ पंजाब किंग्स के लिए डेथ ओवर्स में हिटर और गेंदबाज़ी में पांचवें गेंदबाज़ी की भूमिका को बखूबी निभा सकते हैं, लेकिन इस सीज़न में वह अधिकतर मौक़ों पर असफ़ल ही रहे हैं। इस टूर्नामेंट में किंग्स का मिलाजुला प्रदर्शन रहा है, लेकिन अगर टूर्नामेंट के दूसरे चरण में पंजाब किंग्स टॉस के मामले में खुशकिस्मत रहती है तब उनकी आक्रामकता की यह रणनीति टीम को अच्छे परिणाम दे सकती है।
चेन्नई सुपर किंग्स : चेन्नई का चौथा विदेशी खिलाड़ी कौन है?
इस सीज़न में चेन्नई सुपर किंग्स के सभी विदेशी खिलाड़ियों को कम से कम एक बार मौक़ा मिल चुका है। जिस वजह से यह सवाल खड़ा हो गया है कि आख़िर चेन्नई का चौथा विदेशी खिलाड़ी कौन है? हालांकि टीम में तीन विदेशी खिलाड़ियों की जगह पक्की मानी जा रही है। महेश थीक्षना और ड्वेन ब्रावो ने गेंदबाज़ी से अच्छा प्रदर्शन किया है। वहीं ड्वेन प्रिटोरियस ने लखनऊ सुपर जायंट्स और मुंबई इंडियंस के ख़िलाफ़ यह साबित किया है कि वह संकट की घड़ी में गेंद और बल्ले दोनों से कमाल दिखा सकते हैं। इन सबके बीच चेन्नई के लिए चौथे विदेशी खिलाड़ी के तौर पर विकल्प चुनना एक ऐसी समस्या है जिससे उन्हे जल्द से जल्द निपटना होगा। चेन्नई की टीम अपने खिलाड़ियों को बैक करने के लिए जानी जाती है, लेकिन मुंबई के ख़िलाफ़ पिछले मुक़ाबले में मोईन अली और मिचेल सैंटनर को बाहर बैठाना सबको चकित कर गया।
मुंबई इंडियंस : संतुलन की भारी कमी
टीम की सलामी जोड़ी रोहित शर्मा और इशान किशन अब तक लय नहीं प्राप्त कर पाए हैं। पांववें से 11वें नंबर के बल्लेबाज़ों का 17.93 का औसत भी काफ़ी निराशाजनक रहा है। हार्दिक पंड्या के रोल को अदा करने के लिए उन्होंने टिम डेविड को 8.25 करोड़ में खरीदा। मुंबई को उनसे उम्मीद थी कि डेविड कायरन पोलार्ड के साथ मिलकर मिडिल और डेथ ओवर्स में टीम की बागडोर संभालेंगे, लेकिन वह टीम में अपनी जगह के लिए ही संघर्ष कर रहे हैं। टिम डेविड के बेंच पर बैठाने के कारण जयदेव उनादकट नंबर सात की भूमिका निभा रहे हैं। ज़ाहिर तौर पर टीम में ऑलराउंडर की कमी है और यह टीम का संतुलन न बन पाने का एक बड़ा कारण है।

गौरव सुंदररमन ESPNcricinfo में सीनियर स्टैट्स विश्लेषक हैं। अनुवाद ESPNcricinfo में एडिटोरियल फ़्रीलांसर नवनीत झा ने किया है।