भारतीय क्रिकेट में मैदान पर खेलते हुए अपनी शर्तों पर गेम को अलविदा कहना एक बहुत दुर्लभ बात रही है। आप ख़ुद सोच कर देखिए - राहुल द्रविड़, वीवीएस लक्ष्मण, वीरेंद्र सहवाग, युवराज सिंह, ज़हीर ख़ान, यहां तक की
झूलन गोस्वामी की घनिष्ठ साथी
मिताली राज, क्या किसी को भी एक आखिरी बार दर्शकों को शुक्रिया कहने का अवसर मिला?
जब साल के शुरू में भारत वनडे विश्व कप में साउथ अफ़्रीका से एक रोमांचक मैच हारकर सेमीफ़ाइनल की रेस से बाहर हो गया था तब ऐसा लगा था शायद यही झूलन के साथ भी होगा। ऐसे में यह सुकून की बात है कि झूलन अपने साथियों के बीच
लॉर्ड्स जैसे महान मंच पर शनिवार को अपना आख़िरी मैच खेलेंगीं। शायद सचिन तेंदुलकर के बाद यह किसी भारतीय खिलाड़ी की सबसे उचित बिदाई होगी। और बंगाल की चाकदा की निवासी झूलन से बेहतर शायद ही इस सम्मान का कोई पात्र हो।
लॉर्ड्स में उनकी करियर का समाप्त होना भी एक तरह से उचित होगा क्योंकि इसी मैदान पर पांच साल पहले वह विश्व कप जीतने के बहुत क़रीब आईं थीं और यह उनके और मिताली के करियर की सबसे अनमोल स्मृति बनकर रह जाती। फिर भी वह इस मैच के साथ ही इंग्लैंड में 23 सालों के बाद पहली सीरीज़ जीत का हिस्सा बनने का गौरव लेकर ही अलविदा कह रहीं हैं।
वर्तमान पीढ़ी के लिए झूलन महिला क्रिकेट के बीते हुए कल और आज के बीच एक आख़िरी कड़ी बनी हुईं थीं। उनका नाम मिताली, डायना एडुल्जी और शांता रंगास्वामी के साथ भारतीय महिला क्रिकेट का पर्यायवाची माना जाता है। इंग्लैंड के मौजूदा सीरीज़ के पहले मैच से पहले झूलन ने एक भी वनडे अंतर्राष्ट्रीय नहीं खेला था जिसमें उनके साथ एकादश में मिताली भी ना रहीं हों।
लगभग पांच से सात सालों तक भारतीय तेज़ गेंदबाज़ी की कमान झूलन और शिखा पांडे ने ही संभाल रखी थी। यह हालिया समय में बदलने लगा है जब कुछ उभरते खिलाड़ी तेज़ गेंदबाज़ी में प्रभावित करने लगे हैं, लेकिन उन्हें भी इन दोनों जितनी निरंतरता और विश्वसनीयता दिखाने के लिए और वक़्त लगेगा।
अपने युवा साथियों के लिए उनकी प्यारी 'झुलुदी' बनने से सालों पहले झूलन
ईडन गार्डन्स में 1997 के विश्व कप फ़ाइनल के दौरान ऑस्ट्रेलियाई तेज़ गेंदबाज़ कैथरीन फ़िट्ज़पैट्रिक को देखखर प्रेरित हुईं थीं। 2022 में जब वह लॉर्ड्स में आख़िरी बार गेंदबाज़ी करेंगी तो रेणुका सिंह और मेघना सिंह को भारतीय तेज़ गेंदबाज़ी की ज़िम्मेदारी सौंपेंगी। रेणुका भी ठीक झूलन की तरह 2016 टी20 विश्व कप मैच में धर्मशाला में बॉल-गर्ल के रूप में उनसे प्रेरित हुईं थीं। मेघना ने एक बार झूलन का ऑटोग्राफ़ लेने के लिए घंटों तक कानपुर के एक होटल के लॉबी में इंतज़ार किया था।
मिताली के कुछ ही दिनों के बाद झूलन का संन्यास लेना वास्तव में भारतीय महिला क्रिकेट में एक युग के अंत का संकेत है। बीते दो दशकों में भारत एक क्रिकेट के मोह के लिए खेलने वाली साधारण सी टीम से एक विश्व-स्तर पर सम्मान का पात्र बन चुकी है, जिसके समर्थक भले ही पुरुष टीम के समर्थकों जितने दीवाने ना हो, लेकिन टीम के साथ हमेशा खड़े रहते हैं और हर खिलाड़ी के बारे में काफ़ी सटीक सोच रखते हैं। और इस समर्थन में महिला आईपीएल के आयोजन से और वृद्धि होगी।
झूलन के करियर में आपको एक दृढ प्रतिबद्धता, बेहतर होने की अटूट कोशिश, और हर व्यवधान पर जीत हासिल करने की आदत हमेशा दिखेंगी। उनको पीठ, एड़ी, कंधा, टखना और घुटने के चोट से लड़ना पड़ा लेकिन उन्होंने ऐसा किया।उनकी सफलता भारत के छोटे शहरों और गावों में मौजूद प्रतिभा के लिए भी सांकेतिक जीत रही है।
आप अक्सर सुनेंगे कि झूलन क्रिकेट और जीवन में सहजता की प्रतिमूर्ति हैं। उनमें पुरानी सोच और आधुनिक विचार का अच्छा मिश्रण था। उनकी सोच रहती थी कि जिम में फ़िटनेस प्राप्त करने से बेहतर है आप कुछ और समय तक गेंदबाज़ी करिए। लेकिन उन्होंने समय के साथ अपनी गेंदबाज़ी में नए तरक़ीबों को कभी नज़रअंदाज़ नहीं किया ताकि वह नए प्रारूपों में भी प्रासंगिक रहें।
बतौर गेंदबाज़, उन्होंने अपने पूरे करियर में एक रूढ़िवादी "टॉप ऑफ़ ऑफ़", यानी ऑफ़ स्टंप के ठीक ऊपरी हिस्से को लक्ष्य बनाकर गेंदबाज़ी की। अपने करियर के शुरू से ही वह इनस्विंग के लिए विख्यात थीं लेकिन बाद में उन्होंने उस गेंद को जोड़ा जो टप्पा खाकर अंदर आने के बजाय सीधी जाए, या हल्की सी बाहर भी निकल जाए। इसके एक ज़बरदस्त नमूने से
2017 विश्व कप सेमीफ़ाइनल में ऑस्ट्रेलियाई कप्तान मेग लानिंग बोल्ड हुईं थीं।
घरेलू क्रिकेट में कहा जाता है कि झूलन की बाउंसर काफ़ी ख़तरनाक हुआ करती थी। अगर उनकी गेंदबाज़ी पर किसी से मिसफ़ील्ड हो जाती तो उनसे नज़रें ना मिलाने में ही समझदारी रहती। लेकिन मैदान से बाहर निकलकर झूलन उन्हीं खिलाड़ियों के साथ नाचती, जाती, और भारत के जीतने पर उन्हें आइस-क्रीम और मिठाई ख़रीद कर खिलाती। झूलन ने हमेशा टीम के सबसे युवा सदस्यों को टीम के साथ मिलकर रहने में मदद करने की पहल शुरू की। हारने पर उनका कथन रहता, "कोई बात नहीं, यह खेल है जंग नहीं।" उनके अनुसार जब आप कई तरह के बलिदान करके एक मुक़ाम हासिल करते हैं तो आप को हर पल का जश्न मनाना आना चाहिए।
मैदान पर वह खड़े होकर हमेशा विरोधी टीम को यही जताना चाहती थी कि उनकी टीम किसी और से कम नहीं। 2017 के उस सेमीफ़ाइनल में भी विपक्ष के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाज़ को उखाड़कर उन्होंने यही बताया था। शनिवार को जब आख़िरी रन बनेगा या आख़िरी विकेट का पतन होगा, तो भारतीय ड्रेसिंग रूम में कुछ नम आंखों का होना लाज़मी है। दो दशकों से झूलन ने कप्तान, बड़ी बहन, दोस्त, मार्गदर्शक, दार्शनिक, हर संभव भूमिका का पालन किया है।
पुरुष टीम के कप्तान रोहित शर्मा के शब्दों में वह "पीढ़ी में एक बार आने वाली" खिलाड़ी हैं। भारत उनके श्रम को मैदान पर मिस ज़रूर करेगा, लेकिन अगर क्रिकेट टीम उन्हें गुरु और मेंटॉर बनाकर उनकी कार्य प्रणाली अगली पीढ़ी को सिखा देती है तो यह बहुत अच्छी बात होगी।