"इस शहर की रफ़्तार कुछ ज़्यादा ही है, अगर आप इसकी रफ़्तार के साथ तालमेल नहीं बैठा पाए तो आप रेस से बाहर हो जाएंगे। यह वाकई निर्मम हो सकता है।"
अपनी छत पर बैठकर ब्रेबोर्न स्टेडियम को निहार रहे
पॉल वल्थाटी के यह विचार मुंबई के बारे में हैं। इससे एक रात ही पहले 700 मीटर की दूरी पर ही स्थित
वानखेड़े स्टेडियम में बतौर अनकैप्ड प्लेयर आईपीएल शतक लगाने का उनका रिकॉर्ड
यशस्वी जायसवाल ने तोड़ दिया।
वल्थाटी ने यशस्वी के बारे में कहा, "यह शब्द (अनकैप्ड) बहुत अधिक दिनों तक उनके साथ नहीं रहेगा। उन्होंने हर प्रारूप में रन बनाए हैं। जिस तरह से उन्होंने आक्रमण किया, ख़ासकर जोफ़्रा (आर्चर) जैसे गेंदबाज़ पर, वह वाकई लाजवाब था। वह एक अद्भुत पारी थी। बतौर अनकैप्ड प्लेयर उनके द्वारा मेरा रिकॉर्ड तोड़े जाने से मैं खुश हुआ क्योंकि एक सॉलिड बल्लेबाज़ ने मेरा रिकॉर्ड तोड़ा। सिर्फ़ इसी साल नहीं वह पिछले कुछ सीज़न से लगातार अच्छा कर रहे हैं। एक ऐसा व्यक्ति जिसने काफ़ी नीचे से शुरू किया उसे इस ऊंचाइयों तक पहुंचता देखना काफ़ी सुखद है।"
वल्थाटी खेल की अस्थिरता से भली भांति परिचित हैं। 12 वर्ष पहले वह आईपीएल के उभरते हुए सितारा था। चेन्नई सुपर किंग्स के ख़िलाफ़ उन्होंने किंग्स इलेवन पंजाब (अब, पंजाब किंग्स) के लिए
120 रनों की पारी खेली थी और उस सीज़न उनके बल्ले से
463 रन निकले थे। हालांकि इसके बाद वह सिर्फ़ सात मुक़ाबले ही खेल पाए। चोट ने उनके पेशेवर करियर को प्रभावित कर दिया।
अपने करियर को लेकर उन्होंने कहा, "मेरे क़रीबी दोस्त और मेरा परिवार जानता है कि मैं अपने करियर को दो हिस्सों में देखता हूं और आईपीएल उनमें से एक है। यह 2002 के पहले की बात है जब मुझे चोट लगी थी।"
वल्थाटी 2002 में
अंडर 19 विश्व कप में भारतीय टीम के लिए ओपनिंग कर रहे थे कि तभी एक गेंद उनकी दाईं आंख पर जा लगी। गेंद ने उनकी रेटिना को प्रभावित किया और उनके करियर अधर में चला गया। चार या पांच लेज़र सर्जरी के बाद वह वापस आए लेकिन उनका विज़न अभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हुआ। वह आज तक डबल विज़न की समस्या से जूझते हैं।
उन्होंने कहा, "जब मैंने दोबारा खेलना शुरू किया तब मैं मिसमैच विज़न के चलते गेंद की डेप्थ का अनुमान नहीं लगा पाता था। हर सेशन के बाद मेरी आंखों में आसूं होते थे।"
ट्रायल में प्रभावित करने के बाद 2009 में साउथ अफ़्रीका में हुए आईपीएल में वल्थाटी को डिफ़ेंडिंग चैंपियंस राजस्थान रॉयल्स के लिए दो ही मैच खेलने का अवसर मिला। हालांकि यह 2011 का साल था जब उन्हें बड़ा ब्रेक मिला। किंग्स इलेवन पंजाब ने सैयद मुश्ताक़ अली ट्रॉफ़ी में मुंबई के लिए उनके प्रदर्शन को देखते हुए उनके साथ अनुबंध किया। पहले मुक़ाबले में
नंबर तीन पर बल्लेबाज़ी करने के बाद चेन्नई के ख़िलाफ़ 190 रनों की चेज़ में उन्हें एडम गिलक्रिस्ट के साथ ओपनिंग में प्रमोट किया गया।
2011 की यादों को ताज़ा करते हुए वल्थाटी कहते हैं, "मुझे पता था कि मुझे किस चीज़ पर पार पाना है। दो तीन महीने पहले से ही मैंने अपने मित्र अभिषेक नायर के साथ काफ़ी अभ्यास किया था। मुझे अंदर ही अंदर यह लगने लगा था कि यह सीज़न मेरे नाम रहने वाला है।"
चेन्नई के ख़िलाफ़ खेली शतकीय पारी को लेकर उन्होंने कहा, "पिच बल्लेबाज़ी के लिए अच्छी थी और मैंने अपने ज़ेहन से क्राउड को हटाकर बल्लेबाज़ी पर ध्यान केंद्रित करने की सोची। पहला चौका जड़ने के बाद मुझे मिड ऑफ़ पर
एल्बी मॉर्केल के हाथों जीवनदान मिल गया। इसके बाद मैं किसी मशीन की तरह काम करने लगा। मैं गेंदबाज़ और फ़ील्डर को देखते हुए अपनी पारी को आगे बढ़ाने लगा।"
52 गेंद पर शतक पूरा करते ही क्राउड की प्रतिक्रिया के बारे में बात करते हुए वल्थाटी ने कहा, "इससे पहले पूरा क्राउड एमएस धोनी के लिए चीयर कर रहा था क्योंकि भारत ने हाल ही में विश्व कप जीता था। लेकिन उन्होंने अचानक मेरा नाम लेना शुरू कर दिया। डीके (दिनेश कार्तिक) मेरे पास आए और ज़ोर से गले लगा लिया। लेकिन उन्होंने मुझे अपना ध्यान न भटकने देने की सलाह दी क्योंकि मैच जीतना अभी भी बाक़ी था। अचानक ही अब मैं आकर्षण का केंद्र बिंदु हो गया था।"
सचिन तेंदुलकर से हुई मुलाक़ात के बारे में उन्होंने कहा, "मुंबई इंडियंस के ख़िलाफ़ खेलने से पहले मैं जिम में अपने सेट्स कर रहा था तभी अचानक सचिन मेरे सामने आ गए और उन्होंने मुझसे मराठी में कहा, 'मैंने तुम्हारी बल्लेबाज़ी देखी है। तुम बहुत अच्छा कर रहे हो, ऐसे ही आगे बढ़ते रहो। मुंबई के हम सभी लोगों को तुम पर गर्व है।' यह हमेशा मेरे दिल के क़रीब रहेगा। वह हमेशा से ही मेरे रोल मॉडल रहे थे। हमारे कोच हमेशा उनकी बैटिंग देखने और उनकी हर चीज़ को कॉपी करने की सलाह देते थे। ऐसे में उनका ख़ुद सामने से आकर मुझे बधाई देना मेरे लिया काफ़ी स्पेशल था।"
वल्थाटी के लिए उस सीज़न में सबकुछ उनके पक्ष में जा रहा था। अगले मुक़ाबले में उन्होंने चार विकेट झटके और 75 रन भी बनाए। हालांकि जब वह 2011 के चैलेंजर ट्रॉफ़ी के किया चयनित हुए तो उन्हें कलाई में चोट लग गई।
वल्थाटी इन अवसरों को गंवाना नहीं चाहते थे। इसलिए उन्होंने भारत के पूर्व फ़ीज़ियोथेरेपिस्ट जॉन ग्लॉस्टर का रुख़ किया लेकिन उन्होंने ऑपरेशन के बजाय इंजेक्शन का सहारा लेना अधिक मुनासिब समझा।
जब 2012 का आईपीएल सीज़न आया तब वल्थाटी अपनी फ़ॉर्म खो चुके थे। वह बल्ला भी ठीक से पकड़ नहीं पा रहे थे। वह छह पारियों में सिर्फ़ 30 रन ही बना पाए, जिसमें लगातार पांच बार तो वह दहाईं के आंकड़े को भी छू नहीं पाए। इसके बाद उन्होंने लंदन में सर्जरी ज़रूर करवाई लेकिन 2013 में उन्हें सिर्फ़ एक बार ही खेलने का मौक़ा मिला।
वल्थाटी ने कहा, "बस निकल चुकी थी। मुझे पता कि मुंबई मेरा इंतज़ार नहीं करेगा। बिना किसी को दोष दिए, मुझे लगता है कि मेरी फ्रेंचाइज़ी, मेरा राज्य मुझे और अच्छी तरह से हैंडल कर सकते थे। लेकिन शायद भगवान को कुछ और ही मंज़ूर था।"
मुंबई के बाहरी इलाके कांदिवली और ठाणे में अपनी दो एकेडमी संचालित करने वाले 39 वर्षीय वल्थाटी ने कहा, "मैं अपने जीवन से ख़ुश और संतुष्ट हूं। क्रिकेट मेरे प्रति काफ़ी दयालु रहा है। शहर के उपनगरीय हिस्से का रहवासी होने के चलते हमारे पास बहुत सारे क्रिकेट मैदान नहीं थे। अगर युवा खिलाड़ियों को उनके आसपास ही जगह मिल जाए तो इससे उनका काफ़ी समय बच जाएगा।"
और कौन जानता है? आने वाले समय में इन्हीं युवा खिलाडियों में से कोई एक यशस्वी का रिकॉर्ड तोड़ दे?
मैट रोलर ESPNcricinfo में असिस्टेंट एडिटर हैं।