देवेंद्र कुमार अफ़ग़ानिस्तान के लिए 100 से अधिक मैचों में कमेंट्री कर चुके हैं • Special Arrangement
'लिटिल फ़ेलॉ हिट बिग फ़ेलॉ फ़ोर ए सिक्स'
राजस्थान के जोधपुर के एक छोटे से गांव चुतरपुरा के 10-वर्षीय देवेंद्र कुमार ने 1998 में जब टोनी ग्रेग की आवाज़ में सचिन तेंदुलकर द्वारा माइकल क्रास्पोविच पर लगाए गए छक्के की यह कॉमेंट्री सुनी थी, तभी उन्होंने तय कर लिया था कि उन्हें कॉमेंटेटर बनना है। वह घर के एक कोने में बैठे अपने फ़ौजी पिता के एनॉलॉग रेडियो को बस ऐसे ही बदल रहे थे कि उन्हें ग्रेग की आवाज़ और उनकी कॉमेंट्री की लय ने आकर्षित कर लिया। यह उन्हें कुछ ख़ास चीज़ लगी और उन्होंने तय कर लिया कि उन्हें ज़िंदगी में कुछ नहीं बस कॉमेंटेटर बनना है।
हालांकि देवेंद्र के लिए यह यात्रा कतई भी आसान नहीं थी। उन्हें ना अंग्रेज़ी आती थी और ना ही उनकी कोई खेल की पृष्ठभूमि थी। इसके अलावा उन्हें नहीं पता था कि उन्हें कॉमेंटेटर बनने के लिए क्या करना होगा। वह बस हर रोज़ रेडियो पर न्यूज़ और कॉमेंट्री सुनकर उसका अभ्यास किया करते थे। उन्हें बीबीसी पर आने वाला तीन घंटे का साप्ताहिक 'स्पोर्ट्स वर्ल्ड' कार्यक्रम बहुत पसंद था, जिसमें वह जॉन मरी और एलन ग्रीन जैसे कॉमेंटेटर्स से फ़ुटबॉल, टेनिस सहित कई खेलों का साप्ताहिक विश्लेषण सुनते थे।
देवेंद्र कहते हैं, "मुझे इस कार्यक्रम से हर शनिवार-रविवार को खेलों की दुनिया की लगभग पूरी ख़बर मिल जाती थी। शुरू में तो मुझे पता भी नहीं चलता था कि वे क्या कह रहे हैं, क्योंकि मुझे अंग्रेज़ी एकदम नहीं आती थी। लेकिन मुझे उनके बात करने का अंदाज़, उनकी आवाज़ की लय, यह सब बहुत आकर्षित करता था। धीरे-धीरे मैं अंग्रेज़ी अख़बार भी पढ़ने लगा ताकि मेरी अंग्रेज़ी मज़बूत हो और मैं उनकी बातों को समझ भी सकूं। इससे मेरी रूचि खेलों व कॉमेंट्री में और बढ़ने लगी और अब यह मेरा 24 घंटे का काम हो गया। इसके अलावा मुझे कुछ दिखता ही नहीं था।"
इस दौरान देवेंद्र की पढ़ाई-लिखाई भी जारी रही और उन्होंने 12वीं के बाद नर्सिंग का कोर्स किया। इस कोर्स के बाद उन्हें अमेरिका में नौकरी का ऑफ़र मिला, लेकिन उन्होंने उस ऑफ़र को ठुकरा दिया क्योंकि वह अब पूरी तरह से कॉमेंट्री को अपनाना चाहते थे। यह बात 2006 की है, जब तेंदुलकर का करियर ढलान पर जा रहा था। देवेंद्र को तेंदुलकर के संन्यास से पहले उनके एक मैच में कॉमेंट्री करनी थी और वह नहीं चाहते थे किसी नौकरी की वजह से उनका यह सपना अधूरा रह जाए।
अब कॉमेंटेटर बनने का सपना लिए देवेंद्र जोधपुर से अपने राज्य की राजधानी जयपुर आ गए। देवेंद्र को लगता था कि जयपुर आने के बाद उनकी राह आसान हो जाएगी और छह महीने के भीतर ही वह अंतर्राष्ट्रीय मैचों में कॉमेंट्री करने लग जाएंगे। लेकिन देवेंद्र के संघर्षों का सिलसिला असल में अब शुरू होने वाला था।
देवेंद्र अब हर रोज सवाई मानसिंह स्टेडियम जाते थे और उन्हें जो भी खेल चलता हुआ दिखता, वहां वह बैठकर, अख़बार को माइक बनाकर कॉमेंट्री करने लगते थे। उन्होंने वहां पर क्रिकेट, फ़ुटबॉल, टेनिस, बास्केटबॉल, हैंडबॉल, वॉलीबॉल, कराटे, कबड्डी और हॉर्स पोलो जैसे कई खेलों की कॉमेंट्री का अभ्यास किया। कई लोगों को देवेंद्र की कॉमेंट्री अच्छी लगती, तो वहीं कई लोग उनका मज़ाक भी बनाते थे। लेकिन देवेंद्र को इससे ज़्यादा कुछ फ़र्क़ नहीं पड़ता था। वह तो बस अपनी धुन में मगन थे, अपने लक्ष्य को पाने के लिए।
देवेंद्र बताते हैं कि यह सिलसिला अगले 10 सालों तक जारी रहा। वह सुबह तीन बजे उठते और 'वाइस ऑफ़ अमेरिका' नाम का रेडियो प्रोग्राम सुनते, जो अंग्रेज़ी सीखने का एक रेडियो कार्यक्रम है। इसके बाद वह स्टेडियम के लिए चार बजे घर से पैदल निकल लेते ताकि पांच बजे तक स्टेडियम पहुंचकर अलग-अलग खेलों को ऑब्ज़र्व कर उनकी कॉमेंट्री कर सकें।
देवेंद्र केहते हैं, "यह मेरा रोज़ का रूटीन बन गया था। मैं दिवाली, होली, गर्मी, बारिश कुछ नहीं देखता था। मैं स्टेडियम जाता और जहां भी कोई खेल होता दिखता, अपनी कॉमेंट्री करने लगता था। कुछ लोग मेरा मज़ाक उड़ाते थे, कुछ लोग सिरफ़िरा भी कहते थे, लेकिन कुछ लोगों को मेरी कॉमेंट्री पसंद भी आती थी। इस कारण मुझे थोड़ा-बहुत काम भी मिलने लगा था। अब जयपुर में टूर्नामेंट कराने वाले लोग मुझे कॉमेंट्री के लिए बुलाने लगे थे और मुझे इसके बदले 500 रूपये हर दिन का मिलता था। अगर महीने में तीन-चार दिन का भी काम मिल गया तो भी मेरा महीने का ख़र्चा चल जाता था क्योंकि मैं जिस कमरे में रहता था, उसका किराया सिर्फ़ 500 रूपये महीना था। बाक़ी के भी ख़र्चे बचे पैसों से चल जाते थे।"
स्कूल और लोकल टूर्नामेंट्स से बाहर अब धीरे-धीरे आकाशवाणी, ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन जयपुर में भी देवेंद्र को काम मिलने लगा था। वह जयपुर में होने वाले रणजी मैचों के लिए रेडियो डिस्पैच भी करने लगे थे। इसके अलावा उन्हें डीडी स्पोर्ट्स के लिए जयपुर में होने वाले पोलो मैचों के लिए कॉमेंट्री भी मिलने लगी थी।
2009 में जब चैंपियंस लीग टी20 भारत में हो रहा था, तब तत्कालीन IPL चेयरमैन और राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन से जुड़े ललित मोदी ने देवेंद्र की कॉमेंट्री के प्रति जुनून को देखकर उन्हें इंटर्नशिप के लिए दिल्ली भेजा। वहां देवेंद्र पहली बार एलन विल्किंस से मिले और बाद में विल्किंस ही देवेंद्र के मेंटॉर बने। इस दौरान देवेंद्र की भेंट कई अन्य कॉमेंटेटर्स से भी हुई और जब अफ़ग़ानिस्तान क्रिकेट बोर्ड (ACB) को कॉमेंटेटर की ज़रूरत थी, तो इनमें से ही किसी ने ACB को देवेंद्र का नाम सुझाया।
अब देवेंद्र ACB के आधिकारिक कॉमेंटेटर हैं और 2016 से उनके लगभग हर एक अंतर्राष्ट्रीय मैच की कॉमेंट्री कर चुके हैं। 1998 के जिस शारजाह से देवेंद्र कॉमेंट्री के प्रति आकर्षित हुए थे, वहीं से उन्होंने अपने कॉमेंट्री करियर की शुरूआत की। 5 दिसंबर 2017 को आयरलैंड और अफ़ग़ानिस्तान के बीच हुआ वनडे मुक़ाबला कॉमेंटेटर के रूप में उनका पहला अंतर्राष्ट्रीय मुक़ाबला था।
उस दिन को याद करते हमेशा मुस्कुराने हुए देवेंद्र भावुक हो जाते हैं। वह कहते हैं, "मुझे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं उस कॉमेंट्री बॉक्स में बैठा हूं, जहां पर टोनी ग्रेग ने सचिन के डेज़र्ट स्टॉर्म को दुनिया के सामने परोसा था। मुझे यह विश्वास करने में एक पारी लग गई और जब मैं दूसरी पारी की कॉमेंट्री के लिए जा रहा था, तब मुझे लगा कि मेरा एक सपना पूरा हो गया है। फिर मैंने अपनी सोशल मीडिया पर पोस्ट किया, 'I am making my international cricket debut.'"
आज देवेंद्र, अफ़ग़ानिस्तान क्रिकेट की आवाज़ हैं और 2016 के बाद से हुए अफ़ग़ानिस्तान के लगभग हर अंतर्राष्ट्रीय मैच की कॉमेंट्री कर चुके हैं। अंतर्राष्ट्रीय मैचों के अलावा देवेंद्र ACB के घरेलू लिस्ट ए और T20 टूर्नामेंट्स में भी कॉमेंट्री करते हैं और इसके लिए उन्हें हर साल दो से तीन बार काबुल भी जाना होता है। देवेंद्र अब लगभग नौ से 10 बार काबुल जा चुके हैं और उनके लिए अब काबुल दूसरे घर के जैसा हो गया है। अफ़ग़ानिस्तान के क्रिकेटर्स और क्रिकेट फ़ैंस देवेंद्र को काबुल आने पर उन्हें सिर आंखों पर बिठाते हैं और उन्हें वहां 'काबुल की आवाज़ (Voice of Kabul)' भी कहा जाने लगा है।
देवेंद्र कहते हैं, "जब मुझे काबुल जाने का प्रस्ताव मिला, तब दुनिया के सामने बहुत सारे सवाल थे, लेकिन मेरे पास नहीं। मुझे अपने काम से बहुत प्यार है और मैं इसे करने के लिए कहीं भी जा सकता हूं। इसलिए मुझे काबुल जाने में भी कोई दिक्कत नहीं हुई। एक बार तो ऐसा हुआ कि एक घरेलू T20 मैच की कॉमेंट्री करने के दौरान स्टेडियम में ही विस्फ़ोट हो गया। कई लोग मैच को रद्द कराने के पक्ष में थे, वहीं कई विदेशी (पाकिस्तानी) खिलाड़ी रातों-रात अपने घर चले गए। लेकिन मैंने ना सिर्फ़ उस मैच में कॉमेंट्री की, बल्कि पूरे टूर्नामेंट के दौरान काबुल में रहा। मैं एक फ़ौज़ी का बेटा हूं, तो मुझे इन सबसे डर भी नहीं लगता।"
2013 में तेंदुलकर के संन्यास लेने के बाद देवेंद्र का उनकी बल्लेबाज़ी पर कॉमेंट्री करने का सपना अधूरा रह गया था। लेकिन 2023 के वनडे विश्व कप के दौरान उन्होंने दिल्ली के भारत-अफ़ग़ानिस्तान मैच में BBC टेस्ट मैच स्पेशल के लिए कॉमेंट्री की। देवेंद्र अब नहीं चाहते कि उनके कोई और भी सपने अधूरे रहे। वह क्रिकेट के बाद अब दूसरे खेलों की तरफ़ रूख़ करना चाहते हैं, जहां उनका सपना फ़ुटबॉल विश्व कप और फ़्रेंच ओपन में टेनिस की कॉमेंट्री करना है। देवेंद्र को पूरा विश्वास है कि अपने जुनून और मेहनत के दम पर वह अपने इस सपने को भी पूरा कर लेंगे।