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पायलट बनना चाहते थे लेकिन अब ज़िम्बाब्वे क्रिकेट को आसमान की ऊंचाइयों पर ले जा रहे हैं सिकंदर

पाकिस्तानी मूल के रज़ा कैसे बने ज़िम्बाब्वे के जीत के हीरो

Sikandar Raza leaps in joy after dismissing Shan Masood, Pakistan vs Zimbabwe, Perth, T20 World Cup, October 27, 2022

इस साल रज़ा ने सात (सबसे ज़्यादा) प्लेयर ऑफ़ द मैच का ख़िताब जीता है।  •  Getty Images

फ़ाइटर जेट उड़ाने का प्लान था। पढ़ाई भी उसी हिसाब से की गई लेकिन परीक्षा लेने वाले परीक्षार्थी से कहा, "बेटा तुमसे ना हो पाएगा।" लड़के का नाम था सिकंदर रज़ा और उनका जन्म पाकिस्तान के सियालकोट में हुआ। हालांकि पायलट बनने की परीक्षा में फ़ेल होने के बाद रज़ा ने सॉफ़्टवेयर इंजीनियरिंग की पढ़ाई की।
ख़ैर गीतकार सईद कादरी ने काफ़ी साल पहले ही लिख दिया था कि 'क़िस्मत को था कुछ और मंज़ूर तो क्या कीजे"…(लिरिक्स में बदलाव की माफ़ी के साथ)
अब रज़ा की चर्चा क्यों हो रही है, यह शायद इस साल का सबसे निरथर्क सवाल है। उनका हालिया प्रदर्शन विश्व क्रिकेट में चर्चा का विषय बना हुआ है। रविवार को बांग्लादेश के ख़िलाफ़ वह अपनी टीम को टी20 विश्व कप के सेमीफ़ाइनल की तरफ़ ले जाने में एक और बड़ा क़दम बढ़ाने की प्रेरणा देना चाहेंगे।
अच्छा...तो सबसे पहले ये बता दीजिए कि रज़ा जब इतने ही टैलेंटेड हैं तो पाकिस्तान की टीम में क्यों नहीं खेल लिए?
इस सवाल का ज़वाब उनके ही एक बयान से समझ लीजिए। उन्होंने हाल ही में एक इंटरव्यू में कहा था, "मैंने कभी पाकिस्तान के लिए खेलने के बारे में नहीं सोचा था। मैं पाकिस्तान के लिए एक फ़ाइटर प्लेन पायलट बनना चाहता था लेकिन मैं सफल नहीं हुआ। पाकिस्तान छोड़ने के पीछे क्रिकेट खेलना मेरा लक्ष्य कभी भी नहीं था। मैं मास्टर्स करने की योजना बना रहा था लेकिन मुझे ज़िम्बाब्वे में प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलने का मौक़ा मिल गया और फिर मेरा क्रिकेटिंग सफ़र शुरू हो गया।"
अच्छा लेकिन वह पायलट क्यों नहीं बना पाए?
वह विज़न टेस्ट को पास नहीं कर पाए थे।
इस फ़ाइटर प्लेन उड़ाने का सपना देखने वाले लाइफ़ के बारे में कुछ बताओ, क्या यह निजी ज़िदगी में फ़ाइटर के जैसा ही है?
यह खिलाड़ी ही अद्भुत है भाई, चाहे निजी ज़िंदगी हो या क्रिकेट का मैदान। साल 2021 के मार्च महीने में ज़िम्बाब्वे की टीम यूएई में अफ़ग़ानिस्तान के ख़िलाफ़ एक सीरीज़ खेल रही थी। उस समय रज़ा को कंधे में दर्द हुआ।
कंधे में दर्द? वह तो नॉर्मल है।
हां, रज़ा और टीम को भी यही लगा था। उन्हें लगा कि मांशपेशियों में थोड़ी-मोड़ी समस्या रही होगी। हालांकि दर्द इतना बढ़ता गया कि रज़ा नींद की गोली लिए बिना सो भी नहीं पाते थे। बाद में पता चला कि उनक बोन मैरो (अस्थि मज्जा) में इंफ़ेक्शन है और उसमें ट्यूमर की तरह एक उभार है। डॉक्टर ने उनसे कहा कि यह उनके कंधे को इतना कमज़ोर बना सकता है कि शायद वह एक गेंद तक नहीं फेंक सकते। हालांकि डॉक्टरों के शानदार इलाज, ज़िम्बाब्वे क्रिकेट के सहयोग और रज़ा के साहस ने उन्हें फिर से मैदान पर लाकर खड़ा कर दिया।
ग़ज़ब की कहानी है इस खिलाड़ी की भाई…
फिर बीच में बोल दिए। कहानी ख़त्म कहां हुई है। इसी समस्या के कारण रज़ा को अपनी गेंदबाज़ी के एक्शन में बदलाव करना पड़ा। रज़ा जब सीपीएल खेलने गए तो वह सुनील नारायण से सीख लेते हुए, उनके एक्शन से गेंदबाज़ी कर रहे हैं, जो उनके लिए काफ़ी कारगर साबित हुआ।
वाह… लेकिन शुरुआत के बारे में बताओ कुछ, रज़ा को पहली बार ज़िम्बाब्वे के लिए खेलने का मौक़ा कब मिला?
रज़ा ने सबसे पहले 2007 में ज़िम्बाब्वे के प्रथम श्रेणी क्रिकेट में अपना पांव रखा। यहीं से उन्होंने ज़िम्बाब्वे क्रिकेट में अपनी अलग पहचान बनाई। उन्होंने अपना पहला वनडे और टी20 मैच बांग्लादेश के ख़िलाफ़ 2013 में खेला और इसी साल उन्होंने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अपना टेस्ट डेब्यू भी किया।
अब ये बताओ कि रज़ा का पिछले एक साल में कैसा प्रदर्शन रहा है?
जबर। जानदार। अप्रतीम। अदभुत। शक्तिमान टाइप।
संख्या का सहारा लेकर समझाओ बंधु।
देखो भाई… पिछले एक साल में रज़ा टी20 हो या वनडे, सब जगह बेहतरीन फ़ॉर्म में हैं। बांग्लादेश के ख़िलाफ़ घरेलू धरती पर तो उन्होंने कई ऐसे मैच जिताए, जहां जीत की संभावना न के बराबर थी। उस सीरीज़ के दूसरे मैच में बांग्लादेश ने ज़िम्बाब्वे के सामने 291 रनों का लक्ष्य रखा था। जवाब में ज़िम्बाब्वे के चार विकेट 49 के स्कोर पर गिर गई। इसके बावजूद रज़ा (119) और रेजिस चकाब्वा (102 ) की पारियों ने उन्हें जीत दिला दी।
टी20 क्वालीफ़ायर में उन्होंने पांच मैचों में 57 की औसत से 228 रन बना कर दूसरे स्थान पर थे।
पिछले एक साल में सिकंदर रज़ा ने कुल 21 टी20 मैच खेले हैं, जिसमें उन्होंने 661 रन बनाए हैं और 23 विकेट लिए हैं। साथ ही उन्होंने 15 वनडे में 49.61 की औसत से 645 रन बनाए हैं। इस टी20 विश्व कप में वह 28 अक्तूबर तक सर्वाधिक रन बनाने वाले के मामले में तीसरे नंबर पर हैं और विकेट लेने के मामले में भी उनका स्थान तीसरा है।
इस कहानी का सार इससे समझ लो कि इस विश्व कप में तीन बार प्लेयर ऑफ़ द मैच का ख़िताब ले चुके हैं। साथ ही इस साल उन्होंने सात (सबसे ज़्यादा) प्लेयर ऑफ़ द मैच का ख़िताब जीता है। एक साल में इस मामले में उन्होंने विराट कोहली के रिकॉर्ड को तोड़ा है।
तब तो सिकंदर रज़ा का ज़िम्बाब्वे क्रिकेट में अलग ही जलवा होगा?
हां, अब तो उन्हें काफ़ी सम्मान मिल रहा है। हालांकि एक समय ऐसा भी था जब रज़ा को ज़िम्बाब्वे क्रिकेट में सेंट्रल कांट्रैक्ट भी नहीं मिला था।
ऐसा क्या हो गया था?
2018 में रज़ा को ज़िम्बाब्वे क्रिकेट (ज़ेडसी) द्वारा केंद्रीय अनुबंध की पेशकश नहीं की गई थी। बोर्ड का दावा था कि रज़ा ने बोर्ड के साथ अपने पिछले समझौते की शर्तों का उल्लंघन किया था। हालांकि कुछ दिनों के बाद इस समस्या का हल निकाल लिया गया था।
रज़ा की कहानी तो कमाल की है। पिछले विश्व कप में उनका प्रदर्शन कैसा रहा था?
पिछले विश्व कप में ज़िम्बाब्वे की टीम को हिस्सा लेने का मौक़ा ही नहीं मिला था।
क्यों?
आईसीसी ने उनकी टीम को प्रतिबंधित कर दिया था। उस फ़ैसले के कारण ज़िम्बाब्वे किसी भी टूर्नामेंट का हिस्सा नहीं बन सकती थी। इसका सबसे बड़ा कारण ज़िम्बाब्वे की सरकार का क्रिकेट बोर्ड के फ़ैसलों में दखल देना था। और इस प्रतिबंध से ठीक पहले ज़िम्बाब्वे 2019 50-ओवर विश्व कप में क्वालिफ़ाई करने ही वाला था लेकिन यूएई के ख़िलाफ़ रज़ा के आउट होने के बाद वह अपना आख़िरी मैच डीएलएस प्रणाली से तीन रन से हार गए। नहीं तो आपको उस विश्व कप में अफ़ग़ानिस्तान के स्थान पर रज़ा और ज़िम्बाब्वे दिखते।
यही कहानी तो 2022 की इस टीम की जद्दोजहद को और भी मज़ेदार बनाती है।

राजन राज ESPNcricinfo हिंदी में सब एडिटर हैं